प्रत्येक व्यक्ति के चरित्र का निर्माण उसके पूर्व जन्म के संचित संस्कार और वर्तमान परिवेश के अनुरूप होता है ! किंतु एक विषय पर अभी तक मनोवैज्ञानिक चुप हैं कि क्या मनुष्य के द्वारा बोली जाने वाली भाषा का भी मनुष्य के चरित्र निर्माण में योगदान होता है !
मेरी अपनी निजी समझ के अनुसार मनुष्य द्वारा बोली जाने वाली भाषा का मनुष्य के चरित्र निर्माण में बहुत गहरा संबंध है क्योंकि अंक ज्योतिष के अनुसार जिस तरह व्यक्ति के नाम पुकारे जाने पर व्यक्ति के मस्तिष्क से विशेष तरह का निकलने वाला रसायन व्यक्ति के पूरे व्यक्तित्व को ही प्रभावित करता है !
ठीक उसी प्रकार मनुष्य अपने सामान्य जीवन में जिस भाषा का सर्वाधिक प्रयोग करता है ! उस भाषा के प्रयोग के कारण उसके मस्तिष्क के अंदर से निकलने वाला रसायन उस व्यक्ति के चरित्र और व्यक्तित्व निर्माण में गहरी भूमिका अदा करता है !
जैसे संस्कृत जानने वाला व्यक्ति प्रायः अनुशासन प्रिय और व्यवस्थित जीवन जीने वाला होगा ! उसे छल, कपट, द्वेष आदि से घृणा होगी ! सहयोग और सहचार्य का भाव उसमें प्रबल होगा ! क्योंकि संस्कृत भाषा का प्रयोग करने से संस्कृत में जिस व्याकरण का प्रयोग किया जाता है ! वह नितांत व्यवस्थित और सैद्धांतिक है !
अर्थात दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि जो व्यक्ति संस्कृत भाषा का प्रयोग करता है ! उसके दिमाग में सभी निर्णय गणित की तरह स्पष्ट होते हैं या तो वह किसी कार्य के पक्ष में खड़ा दिखाई देता है या फिर विपक्ष में ! वह कभी भी मध्यम मार्ग को नहीं अपनाता है !
ठीक इसी तरह वर्तमान हिंदी भाषा का प्रयोग करने वाला व्यक्ति सामान्यतया मध्यम मार्गी होता है ! वह देश काल परिस्थिति के अनुसार व्यक्ति के साथ सामंजस्य स्थापित करता है ! यदि आवश्यकता पड़ जाये तो वह नितांत कठोर प्रतीत होता है और यदि परिस्थितियां अनुकूल न हों तो वह हिंदी भाषा का जानकार व्यक्ति परिस्थितियों के अनुरूप अपने को ढाल कर परिस्थितियों से समझौता कर लेता है और तत्काल कठोरता को त्याग देता है !
इसी तरह पैशाचिक भाषा अंग्रेजी का जानकार व्यक्ति नितांत धूर्त और अवसरवादी होता है ! उसका व्यवहार देश, काल, परिस्थिति, स्वार्थ के अनुरूप समय-समय पर बदलता रहता है ! ऐसा व्यक्ति किसी भी संबंध को बहुत लंबे समय तक नहीं निभाता है और निजी स्वार्थ की स्थिति में यह व्यक्ति किसी को भी धोखा दे सकता है ! इसीलिये प्राय: आपने जीवन में देखा होगा कि अंग्रेजी भाषा का अत्यधिक प्रयोग करने वाला व्यक्ति संवेदना विहीन हो जाता है ! वह किसी का सगा नहीं होता है !
इसी तरह उर्दू भाषा का भी अपना एक चरित्र है ! जिसका उदाहरण देश की बंटवारे के समय के इतिहास और कश्मीर से कश्मीरी पंडितों के पलायन के समय खुलकर सामने आया था और आज भी जिन क्षेत्रों में उर्दू भाषा का प्रयोग करने वाले अधिक लोग हैं ! वहां पर इस उर्दू भाषा का चरित्र अन्य भाषा के जानकार व्यक्तित्व के साथ किये जाने वाला व्यवहार इनकी पूरी असलियत सामने रख देता है !
मेरा निजी अनुभव है कि विश्व में जितनी भी भाषाएं हैं ! हर भाषाओं को बोलने वाले का चरित्र, व्यक्तित्व अलग अलग तरह से उस क्षेत्र के व्यक्ति के चरित्र को प्रभावित करता है ! इस पर अभी और भी बहुत तरह के शोध किये जाने की आवश्यकता है ! किंतु दुर्भाग्य यह है कि जिनके शोध को प्रमाणित माना जाता है वह अंग्रेजी भाषा बाहुल्य क्षेत्र हैं ! अतः वह लोग इस रहस्य को समाज के सामने नहीं आने देना चाहते हैं क्योंकि इससे उनका और उनकी भाषा का सामाजिक महत्व घट जायेगा !!