जानिए अघोर तंत्र साधना क्या है : Yogesh Mishra

एक आम आदमी अघोरी शब्द से ही काँप उठता है ! नशे में डूबी लाल-लाल आँखें ! हाथ में चिमटा ! एक कंधे पर झोला. झोले में खोपड़ी और हड्डी ! रोंगटे खड़ी कर देने वाली इस तस्वीर के साथ-साथ जनमानस में इन्हें लेकर कई धारणाएं प्रचलित हैं ! जैसे –यह मुर्दे का मांस खाते हैं ! श्मशान में रहते हैं ! गंदगी में रहना इन्हें पसंद है ! जिसे यह शाप दे दें ! वह जीवन भर उससे मुक्त नहीं हो सकता है !

यह पिशाचों और चुडैलों को अपना गुलाम बना कर रखते हैं ! पुराने जमाने की एक कहावत भी है कि अघोरी से नहीं उसके थूक से बचो ! कुल मिलाकर अघोर विद्या एक ऐसा शब्द है जिसके बारे में कोई कुछ नहीं जानता, लेकिन हर कोई जानना चाहता है !

दरअसल यह साधना का वामपंथ मार्ग है ! यानी ईश्र्वर को पाने के जो भी सामान्य तरीके है उसके ठीक उलट वाम मार्ग है ! इस मार्ग पर चलने वाला सबसे पहले घृणा और भय को वश में करता है ! वह श्मशान जैसी जगह पर सहजता से रहता है ! वह मल और सड़े मुर्दे आदि भी खा सकता है क्योंकि वह इन्हें सहज और सामान्य मानते हैं ! यह ज्यादातर शिव और काली की साधना करने वाले ही करते हैं !

मान्यता है कि स्वयं शिव से इस वाम मार्ग साधना की उत्पत्ति की है ! दत्तात्रेय इस साधना के मूल गुरु माने जाते हैं ! वैसे दत्तात्रेय भी भगवान् शिव के ही स्वरूप हैं ! अघोर पंथ में प्रचलित विश्वास के अनुसार दत्तात्रेय में ब्रम्हा विष्णु और महेश तीनों शक्तियों का अंश निहित है !

भारत में कुछ धार्मिक स्थल अघोर साधना के लिये प्रसिद्ध हैं ! उसमें पहला स्थान बनारस का है ! गुजरात का गिरनार पर्वत भी प्रसिद्ध है ! जूनागढ़ को अवधूत भगवान दत्तात्रेय के तपस्या स्थल के रूप में जानते हैं।

अघोर साधक मुख्य रूप से तीन प्रकार की साधना करते हैं ! शिव साधना, श्मशान साधना और शव साधना ! इस तरह की साधना प्रायः कामाख्या पीठ श्मशान, त्र्यम्बकेश्वर श्मशान, तारा पीठ शमशान और उज्जैन स्थित चक्रतीर्थ शमशान में की जाती है !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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