क्या राम दीपावाली के दिन अयोध्या वापस आये थे?
दीपावली को श्रीराम के साथ जोडऩा कि इस दिन वह लंका से अयोध्या लौटे थे, सर्वथा गलत है। इसके लिए हमें रामायण में ही जो तथ्य और प्रमाण मिलते हैं वो इस धारणा को सर्वथा निराधार सिद्घ करते हैं। आप विचार करें कि श्रीराम के वन गमन पर भरत जब उन्हें लौटाने हेतु उनके पास गये और श्रीराम ने भरत के सब प्रकार के अनुनय विनय को सविनय अस्वीकार कर दिया तो भरत को रामचंद्रजी की खड़ाऊं लेकर ही संतोष करना पड़ा। इस समय रामचंद्रजी और अयोध्या के बहुत से लोगों के समक्ष भरत ने कहा था-
चर्तुर्दशे ही संपूर्ण वर्षेदद्व निरघुतम।
नद्रक्ष्यामि यदि त्वां तु प्रवेक्ष्यामि हुताशन।।
अर्थात हे रघुकुल श्रेष्ठ। जिस दिन चौदह वर्ष पूरे होंगे उस दिन यदि आपको अयोध्या में नही देखूंगा तो अग्नि में प्रवेश कर जाऊंगा, अर्थात आत्मदाह द्वारा प्राण त्याग दूंगा। भरत के मुख से ऐसे प्रतिज्ञापूर्ण शब्द सुनकर रामचंद्र जी ने अपनी आत्मा की प्रतिमूर्ति भरत को आश्वस्त करते हुए कहा था-तथेति प्रतिज्ञाय-अर्थात ऐसा ही होगा। उनका आशय स्पष्ट था कि जिस दिन 14 वर्ष का वनवास पूर्ण हो जाएगा मेरे अनुज भरत मैं उसी दिन अयोध्या पहुंच जाऊंगा। रामचंद्रजी अपने दिये वचनों को कभी विस्मृत नही करते थे। इसलिए भाई भरत को दिये ये वचन उन्हें पूरे वनवास काल में भली प्रकार स्मरण रहे। यहां पर हम यह भी देखें कि रामचंद्र जी जब बनवास के लिए चले थे अथवा जब उनका राज्याभिषेक निश्चित हुआ था तो उस समय कौन सा मास था? महर्षि वशिष्ठ ने महाराजा दशरथ से राम के राज्याभिषेक के संदर्भ में कहा था-
चैत्र:श्रीमानय मास:पुण्य पुष्पितकानन:।
यौव राज्याय रामस्य सर्व मेवोयकल्प्यताम्।।
अर्थात-जिसमें वन पुष्पित हो गये। ऐसी शोभा कांति से युक्त यह पवित्र चैत्र मास है। रामचंद्र जी का राज्याभिषेक पुष्प नक्षत्र चैत्र शुक्ल पक्ष में करने का विचार निश्चित किया गया है।
षष्ठी तिथि को ज्योतिष के अनुसार पुष्य नक्षत्र था। रामचंद्र जी लंका विजय के पश्चात अपने 14 वर्ष पूर्ण करके पंचमी तिथि को भारद्वाज ऋषि के आश्रम में उपस्थित हुए थे। ऋषि के आग्रह को स्वीकार करके वहां एक दिन ठहरे और अगले दिन उन्होंने अयोध्या के लिए प्रस्थान किया उन्होंने अपने कुल श्रेष्ठ भाई भरत से पंचमी के दिन हनुमान जी के द्वारा कहलवाया-
अविघ्न पुष्यो गेन श्वों राम दृष्टिमर्हसि।
अर्थात हे भरत! कल पुष्य नक्षत्र में आप राम को यहां देखेंगे।
इस प्रकार राम चैत्र के माह में षष्ठी के दिन ही ठीक समय पर अयोध्या में पुन: लौटकर आए थे ।