भारतीय न्यायालयों में क्या कर रही है विदेशी न्याय की देवी Yogesh Mishra

कहने को तो देश 15 अगस्त 1947 को आजाद हो गया ! पर भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु जैसे सैकड़ों क्रांतिकारियों की हत्यारी विदेशी न्याय की देवी आज भी भारतीय न्यायालयों में ससम्मान कब्जा किये हुये है !

अगर आप भाग्य या दुर्भाग्य से कभी भारतीय न्याय के मंदिर में गये हों, तो वहाँ बहुधा आपको आंखों पर पट्टी बांधे एक विदेशी न्याय की देवी के दर्शन हुये होंगे ! भाग्य से तब जबकि आप एक स्थापित वकील या जज हों और दुर्भाग्य तब जबकि आप परेशान मुवक्किल या संघर्षरत युवा वकील हों !

और हाँ आपको यह भी बतला दूँ कि हमारा संविधान और भारतीय दंड संहिता जितने अभारतीय और आयातित विधि हैं, उतनी ही आयातित यह विदेशी न्याय की देवी भी हैं !

इनकी आंखों पर पट्टी बंधी रहती है और हाथों में तराजू और दूसरे हाथ में तलवार ! कहीं-कहीं तलवार नहीं भी दिखाई देती है ! जैसा कि हमें बतलाया गया है कि भारतीय दंड संहिता दण्डात्मक नहीं मानवतापरक दृष्टिकोण रखती है ! ठीक उसी तरह यह न्याय की देवी भी विशुद्ध पश्चिमी शासक न्याय व्यवस्था का दृष्टिकोण रखती हैं !

इस न्याय की देवी का जन्म प्राचीन मिस्र में हुआ था ! जहां इन्हें मात़ (Ma’at) कहते थे और तब इनके पास तराजू नहीं था लेकर सिर पर शुतुर्मुर्ग के पंख लगे हुये थे ! जो उस समय सत्य और न्याय का प्रतीक था ! ऐसा माना जाता है कि मजिस्ट्रेट शब्द की उत्पत्ति भी इसी Ma’at शब्द से हुई है ! क्योंकि मात़ (Ma’at) ने ओसाइरिस के न्याय वाले मुकद्दमे में मरे हुये व्यक्ति के हृदय की सत्यता को आंखों पर पट्टियां होने के बाद भी तौल कर बतला दिया था !

यही न्याय की देवी जब ग्रीस पहुंची तो ‘थेमीस’ के नाम से प्रसिद्ध हुईं और उस समय उनके आंखों की पट्टियां हट गई थी ! वहाँ इस देवी की प्रतिष्ठा एक ऐसे रूप में हुई जो भविष्य को स्पष्ट देख सकती थी और सामाजिक तथा जातीय समरसता का निर्माण करती थीं !

कालांतर में यही देवी अब रोम पहुंचीं जहां इनका नाम हुआ “जस्टिशिया” और देवी के एक हाथ में तराजू और आंख पर पट्टी पुनः आ गयी !

वहां से यह न्याय की देवी पोप की कृपा से इंग्लैंड पहुंची और ब्रिटिश संसद के कानूनों के साथ भारत आ गईं !

जबकि भारतीय संदर्भों में वैदिक काल से ही न्याय के देवता सूर्य के दो पुत्र यमराज व शनि माने जाते रहे हैं ! यमराज व्यक्ति के मृत्यु के बाद उसके साथ न्याय करते हैं और शनि देव व्यक्ति के जीवित रहते हुये ही न्याय करते हैं !

अब प्रश्न यह है कि भारत की तथा कथित आजादी के बाद भारतीय न्यायालयों में “मात़” या “थेमीस” या “जस्टिशिया” की जगह शनि का विग्रह रखा जाना चाहिये !

संभवतः इससे देश का “सेक्युलरिजम” खतरे में पड़ जायेगा ! जो देश की राजनीति के वस्त्र या अंतःवस्त्र बनाने में उपयोग होता है !

दरअसल एक छिपी हुई बात यह भी है कि भारतीय विधि अभी उसी उपनिवेश काल के न्याय व्यवस्था को ढो रही है ! जो भुक्तभोगियों से अधिक अपराधी और आतंकवादियों के हितार्थ मानवाधिकार का दुशाला ओढ़े रातो दिन चिंतित और परेशान खड़ी है !

आखिर इस देश में बलात्कारियों का मानवाधिकार है, देशद्रोहियों का मानवाधिकार है ! भ्रष्टाचारियों को खुला संरक्षण है और इन सभी का असली संरक्षक राजनीतिज्ञों के भी अपने अधिकार हैं ! भले उससे देश का सर्वनाश ही क्यों न हो जाये ! इस सड़े गले विदेशी कानून में राष्ट्र प्रेमियों, पीड़ितों, देश के नागरिकों, सैनिकों, देशभक्त आन्दोलनकारियों का कोई मानवाधिकार नहीं है !

संसद और विधान सभाओं में अपराधी बैठे हुये हैं और न्याय प्रिय निरीह जनता उनकी जूठन की तरफ आशा भरी निगाहों से देखने को मजबूर है !

जबकि भारतीय शास्त्र कहते हैं कि
प्रजासुखे सुख राज्ञः प्रजानां च हिते हितम् ! नात्मप्रियं हितं राज्ञः प्रजानां तु प्रियं हितम् ! ! — अर्थशास्त्र-1/19
प्रजासुखे सुखी राजा. तद्दुःखे यश्च दुःखित ! सः कीर्तियुक्तो लोकेस्मिन् प्रेत्य यस्य महीस्यते ! !— विष्णुधर्मसूत्र 3,

अत: न्याय के देवता शनिदेव को इस विदेश न्याय व्यवस्था में न्याय दिलाने हेतु हम प्रार्थना करते हैं !

‘नीलांजन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम् !
छाया मार्तण्ड संम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम् ! !

फिर भी अपवाद हैं वह लोग जिन्हें इस व्यवस्था ने ईमानदार होने के नाते हाशिये पर पहुंचा दिया है ! वह ईमानदार न्यायाधीश, संघर्षरत वकील, परेशान वादकारी जो आज यह जानते हैं कि देश में नेता और नौकरशाहों का अनैतिक नेक्सस एक प्राइवेट कंपनी की तरह काम कर रहा है ! जिसके व्यक्तिगत उद्देश्य बड़े घिनौने हैं ! यह न्याय ही नहीं राष्ट्र को भी बेच देना चाहते हैं ! फिर भी किसी वैचारिक क्रांति के लिये तैयार नहीं हैं !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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