अघोर तंत्र का चमत्कारी इतिहास जानिए : Yogesh Mishra

अघोर पंथ के प्रणेता भगवन शिव माने जाते हैं ! कहा जाता है कि भगवन शिव ने स्वयं अघोर पंथ को प्रतिपादित किया था ! अवधूत भगवन दत्तात्रेय को भी अघोरशास्त्र का गुरू माना जाता है ! अवधूत दत्तात्रेय को भगवन शिव का अवतार भी मानते हैं ! अघोर संप्रदाय के विश्वासों के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु और शिव इन तीनों के अंश और स्थूल रूप में दत्तात्रेय जी ने अवतार लिया !

अघोर संप्रदाय के एक संत के रूप में बाबा किनाराम की पूजा होती है ! अघोर संप्रदाय के व्यक्ति शिव जी के अनुयायी होते हैं ! इनके अनुसार शिव स्वयं में संपूर्ण हैं और जड़ ! चेतन समस्त रूपों में विद्यमान हैं ! इस शरीर और मन को साध कर और जड़-चेतन और सभी स्थितियों का अनुभव कर के और इन्हें जान कर मोक्ष की प्राप्ति की जा सकती है !

अघोर पंथ, अघोर मत या अघोरियों का संप्रदाय, हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण व सर्वाधिक प्राचीन संप्रदाय है ! इसका पालन करने वलों को ‘अघोरी’ कहते हैं ! इसके प्रवर्त्तक स्वयं अघोरनाथ शिव माने जाते हैं ! रुद्र की मूर्ति को श्वेताश्वतरोपनिषद में अघोरा व मंगलमयी कहा गया है और उसमें वर्णित अघोर मंत्र गजब के चमत्कारी व प्रसिद्ध हैं ! विदेशों में विशेष रूप से ईरान में भी ऐसे पुराने मतों का पता चलता है तथा पश्चिम के कुछ विद्वानों ने भी उनके चमत्कारों की चर्चा भी की है !

हेनरी बालफोर की खोजों से विदित हुआ है कि इस पंथ के अनुयायी अपने मत को गुरु गोरखनाथ द्वारा प्रवर्तित मानते हैं ! किंतु इसके प्रमुख प्रचारक मोतीनाथ हुयह ! जिनके विषय में अभी तक अधिक पता नहीं चल सका है ! इसकी तीन शाखायें औघर ! सरभंगी तथा घुरे नामों से प्रसिद्ध हैं !

जिनमें से पहली शाखा में कल्लूसिंह व कालूराम हुयह ! जो बाबा किनाराम के गुरु थे ! कुछ लोग इस पंथ को गुरु गोरखनाथ के भी पहले से प्रचलित बतलाते हैं और इसका संबंध शैव मत के पाशुपत अथव कालामुख संप्रदाय के साथ जोड़ते हैं ! बाबा किनाराम अघोरी वर्तमान बनारस जिले के रामगढ़ गाँव में उत्पन्न हुयह थे और बाल्यकाल से ही विरक्त भाव में रहते थे ! इन्होंने पहले बाबा शिवराम वैष्णव से दीक्षा ली थी ! किंतु वह फिर गिरनार के किसी महात्मा द्वारा भी प्रभावित हो गये !

उस महात्मा को प्राय: गुरु दत्तात्रेय समझा जाता है ! जिनकी ओर इन्होंने स्वयं भी कुछ संकेत कियह थे ! अंत में यह काशी के बाबा कालूराम के शिष्य हो गये और उनके अनंतर कृमिकुंड पर रहकर इस पंथ के प्रचार में समय देने लगे ! बाबा किनाराम ने विवहकसार ! गीतावली ! रामगीता आदि की रचना की ! इनमें से प्रथम को इन्होंने उज्जैन में शिप्रा के किनारे बैठकर लिखा था ! इनका देहांत सन् १८२६ में हुआ ! बाबा किनाराम ने इस पंथ के प्रचारार्थ रामगढ़ ! देवल ! हरिहरपुर तथा कृमिकुंड पर क्रमश: चार मठों की स्थापना की थी ! जिनमें से चौथा प्रधान केंद्र है ! इस पंथ को साधारणतः ‘औघढ़पंथ’ भी कहते हैं !

‘विवहकसार’ इस पंथ का एक प्रमुख ग्रंथ है ! जिसमें बाबा किनाराम ने आत्माराम की वंदना और अपने आत्मानुभव की चर्चा की है ! उसके अनुसार सत्य व निरंजन है ! जो सर्वत्र व्यापक और व्याप्य रूपों में वर्तमान हैं और जिसका अस्तित्व सहज रूप है ! ग्रंथ में उन अंगों का भी वर्णन है जिनमें से प्रथम तीन में सृष्टिरहस्य ! कायापरिचय ! पिंडब्रह्मांड ! अनाहतनाद एवं निरंजन का विवरण है !

अगले तीन में योग साधना ! निरालंब की स्थिति ! आत्मविचार ! सहज समाधि आदि की चर्चा की गई है तथा शेष दो में संपूर्ण विश्व के ही आत्मस्वरूप होने और आत्मस्थिति के लिए दया ! विवहक आदि के अनुसार चलने के विषय में कहा गया है !

इसके अनुयायियों में सभी जाति के लोग जहाँ तक कि मुसलमान भी हैं ! विलियम क्रुक ने अघोरपंथ के सर्वप्रथम प्रचलित होने का स्थान राजपुताने के आबू पर्वत को बतलाया है ! किंतु इसके प्रचार का पता नेपाल, गुजरात एवं समरकंद जैसे दूर स्थानों तक भी चलता है और इसके अनुयायियों की संख्या भी कम रही है !

जो लोग अपने को ‘अघोरी’ व ‘औगढ़’ बतलाकर इस पंथ से अपना संबंध जोड़ते हैं उनमें अधिकतर “शव साधना” करते हैं ! वह मुर्दे का मांस खाते हैं ! मुर्दा की खोपड़ी में मदिरा पान करते हैं तथा उन्हें घिनौनी वस्तुओं का व्यवहार व प्रयोग करते देखा गया है ! जो कदाचित् कापालिकों का प्रभाव है !

इनके मदिरा आदि सेवन का संबंध गुरु दत्तात्रेय के साथ भी जोड़ा जाता है ! जिनका मदकलश के साथ उत्पन्न होना भी कहा गया है ! अघोरी कुछ बातों में उन जोगी औघड़ों से भी मिलते-जुलते हैं ! जो नाथपंथ के प्रारंभिक साधकों में गिने जाते हैं और जिनका अघोर पंथ के साथ कोई भी संबंध नहीं है ! इनमें निर्वाणी और गृहस्थ दोनों ही होते हैं और इनकी वहशभूषा में भी सादे अथवा रंगीन कपड़े होने का कोई कड़ा नियम नहीं है ! अघोरियों के सिर पर जटा ! गले में स्फटिक की माला तथा कमर में घाँघरा और हाथ में त्रिशूल रहता है ! जिससे सामान्य दर्शकों को भय लगता है !

अघोर पन्थ की ‘घुरे’ नाम की शाखा के प्रचार क्षेत्र का पता नहीं चलता है ! किंतु ‘सरभंगी’ शाखा का अस्तित्व विशेषकर चंपारन जिले में दीखता है ! जहाँ पर भिनकराम, टेकमनराम, भीखनराम, सदानंद बाबा एवं बालखंड बाबा जैसे अनेक आचार्य हो चुके हैं ! इनमें से कई की रचनायें आज भी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं और उनसे इस शाखा की विचारधारा पर भी बहुत बल मिलता है !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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