हिमालय के दिव्य संतों के चमत्कार : Yogesh Mishra

सिद्धि सामान्यतः किसी भी मनचाहे मनोरथ को पूरा करने की क्षमता को व्यक्त करती है ! किंतु आध्यात्मिक एवं परामनोवैज्ञानिक क्षेत्र में इसका अर्थ और व्यापक एवं गूढ़ हो जाता है ! यहाँ यह असाधारण एवं अद्भुत कार्यों को अंजाम देने की क्षमता की पर्याय है ! जनसाधारण के अनुभव इनके सामने बौने सिद्ध होते हैं और बुद्धिजीवियों के तर्क-वितर्क भी असहाय महसूस करते हैं !

उदाहरण के लिये बिना ज्योतिष या अन्य सहारा लिये किसी व्यक्ति का भविष्य बता देना ! बिना किसी साधन के मनचाही वस्तु उपस्थित कर देना ! बिना औषधि के असाधारण रोग से मुक्त कर देना आदि सामान्यजन के लिये असंभव हैं इसलिये इन्हें सिद्धि की श्रेणी में रखा जाता है ! इन्हें संपन्न करने वाला व्यक्ति सिद्धपुरुष कहलाता है !

पूर्वकाल में हमारे ऋषि विशिष्ट सिद्धि संपन्न होते थे ! किंतु कालक्रम के साथ इनका सर्वथा अभाव-सा होता गया ! वर्तमान युग में भी ऐसे क्षमतायुक्त सिद्धपुरुष हुये हैं ! जिन्होंने समय-समय पर अलौकिक क्षमताओं के अस्तित्व को प्रमाणित कर आधुनिक विज्ञान को सोचने व करने के लिये नूतन आधार दिया है और जगत् में इस संदर्भ में व्याप्त अनास्था के बादलों को भी छाँटा है ! हिमालय के दुर्गम क्षेत्र में आज भी ऐसे दिव्य आश्रम एवं तपस्थली हैं ! जहाँ ऐसे सिद्धपुरुष तपस्या में लीन हैं व इनके लिये सिद्धियाँ तो मानो बायें हाथ का खेल हैं !

पुराणों में वर्णित हिमालय अवस्थित कालाप ग्राम ऐसा ही एक दिव्य आश्रम है ! जहाँ हजारों सिद्ध-योगी सूक्ष्मशरीर में विचरण करते हैं और साधना में लीन हैं ! यह आश्रम कैलाश मानसरोवर से भी आगे स्थित है ! जिसे स्थूल दृष्टि से देखा जाना संभव नहीं है ! मात्र दिव्य दृष्टि संपन्न कृपापात्र व्यक्ति ही इसका दर्शन कर सकते हैं ! मीलों लंबा यह दिव्य क्षेत्र स्वयं में अद्वितीय है ! यह ऋतु काल एवं वायुमंडल जैसे भौतिक कारकों से सर्वथा मुक्त है ! यहाँ गरमी सरदी का कोई प्रभाव नहीं पड़ता ! कालप्रवाह के साथ विश्व में सृष्टि निर्माण एवं प्रलय कितनी बार हुआ ! किंतु यह आश्रम अविचल रूप से स्थित है व इसके निवासी कालजयी हैं !

जिसका दर्शन और वर्णन मेरी माता जी के गुरु पंडित श्री राम शर्मा आचार्य ने अनेकों बार अपनी मासिक पत्रिका अखण्ड ज्योति में किया है ! मुझे भी उनके दर्शन का अवसर प्राप्त हुआ था ! उनके द्वारा भेंट की गई पत्रिका से ही में यह अद्भुद और दिव्य लेख लिख रहा हूँ !

अनुभवी जनों के अनुसार वैदिक काल के अनेकों महर्षि, ऋषि, मुनि, संत आदि आज भी इस स्थान पर सशरीर विचरण करते हुये देखे जा सकते हैं ! इस सिद्ध भू-भाग में महायोगी गोरखनाथ ! जगद्गुरु शंकराचार्य आदि योगीजन भी विचरण करते हुये स्पष्ट दिखाई देते हैं ! इसके अतिरिक्त कई अज्ञातनामा योगी भी यहाँ साधनारत हैं ! कुछ योगी तो सैकड़ों वर्षों से यहाँ ध्यानस्थ हैं ! केवल योगी ! साधु और संन्यासी ही नहीं ! अपितु संन्यासिनियों और योगिनियाँ भी इस कालापग्राम में विचरण करती हुई दिखाई देती हैं ! यहाँ पर किसी प्रकार का छल ! कपट ! द्वेष ! व्यभिचार आदि नहीं है ! बल्कि साधना के क्षेत्र में उन्नत ! प्रकृति के अज्ञात रहस्यों की खोज में सभी अपने आप में निमग्न हैं !

अनुभवी साधकों के अनुसार यहीं पर सिद्ध योग झील अपने आप में दिव्य ! मनोहर और अद्वितीय है ! मीलों लंबी प्रकृति निर्मित इस झील का पानी निरंतर बहता हुआ निर्मल ! स्वच्छ और स्फटिक के समान है ! शीतलता और पवित्रता की दृष्टि से यह जल अद्वितीय है ! इस जल को स्पर्श करने से ही सारा शरीर दिव्य ! पवित्र और अलौकिक हो जाता है ! इस जल की एक बहुत बड़ी विशेषता यह है कि इसमें स्नान करने से वृद्धता और रोग स्वतः समाप्त हो जाते हैं ! सिद्ध योग झील के किनारे-किनारे स्फटिक से निर्मित नावें पड़ी हैं ! जिन्हें खोलकर कोई भी योगी या साधक झील में विचरण कर सकता है ! सारा प्रदेश सुगंधित पुष्पों से आच्छादित है ! सारी धरती मखमली हरी दूब और द्रुमों से भरी है ! असंख्य प्रकार के पुष्प खिले रहते हैं ! जो हमेशा स्वस्थ ! तरोताजा और सुगंधित बने रहते हैं ! इस दिव्य क्षेत्र में यहाँ के कल्पवृक्षों के नीचे बैठकर साधक जो भी इच्छा करता है ! वह उसी समय पूर्ण हो जाती है !

सूर्य सिद्धाँत महर्षि पतंजलि का महत्त्वपूर्ण सिद्धाँत है ! जिसे उन्होंने सबसे पहले स्पष्ट किया था ! इसके बाद उनके शिष्य सुधन्वा ! प्रियुकु देदेत्त्व आदि ने उसे आगे बढ़ाया ! वर्तमान समय में भी निमिष ! चैतन्य ! लाहिड़ी ! वरोचन ! स्वामी विशुद्धानंद आदि इसमें निष्णात हुये हैं !

पतंजलि ने अपने सूत्रों में स्पष्ट किया है कि सूर्य की किरणों में विभिन्न रंगों से युक्त रश्मियाँ होती हैं ! जिसका समन्वित रूप श्वेत है ! जिसे विशुद्धात्मक तत्त्व कहा जाता है ! इस श्वेत रश्मि को 24 कोणीय स्फटिक के माध्यम से ही पकड़ा जा सकता है ! इस स्फटिक के प्रत्येक कोण एक-दूसरे से वर्तुलावस्था में होते हैं ! जब सूर्य किरण इस स्फटिक लैंस पर पड़ती है ! तो घनीभूत होती हुई एक वर्तुल से दूसरे वर्तुल में प्रवाहमान होती है और जब 24वें 222 में प्रवेश करती है ! तो सर्वथा शुभ्र-स्वेत रंग की होकर रह जाती है और यह रश्मि निकलकर जिस पदार्थ पर पड़ती है ! तो मनोवाँछित पदार्थ परिवर्तन हो जाता है ! पत्थर को हीरे में बदला जा सकता है ! सूर्य सिद्धाँत के ज्ञाता को यह ज्ञान होता है कि प्रकृति का कौन-सा पदार्थ कितने वर्तुलों से युक्त है ! स्वामी अखिलेश्वरानंद जी इस सिद्धाँत का प्रयोग करते हुये अपने शिष्यों को दो मिनट में स्फटिक पत्थर से हीरा बनाकर दिखा देते थे !

अपनी पुस्तक ‘ए सर्च इन सिक्रेट इंडिया’ में पाश्चात्य खोजी मनीषी पाल ब्रंटन ने महायोगी स्वामी विशुद्धानंद जी का उल्लेख किया है ! जो सूर्य सिद्धाँत के मर्मज्ञ थे ! उनके पास सूर्य सिद्धाँत से हजारों प्रकार की सिद्धियाँ प्राप्त थीं ! पतंजलि के ‘जायंतर परिणाम’ अर्थात् एक वस्तु को दूसरे में परिवर्तित कर देने की व्याख्या करते हुये उन्होंने इसका वैज्ञानिक विवेचन प्रस्तुत किया है !

उनके अनुसार विश्व में हर जगह सत्ता मात्र रूप या शाश्वत रूप में सभी चीजें विद्यमान् हैं ! पर सब व्यक्त नहीं हैं ! जिस पदार्थ की मात्रा अधिक विकसित व अधिक प्रस्फुटित होती है वही व्यक्त होता है ! वही दिखाई पड़ता है ! उदाहरण के लिये ! लोहे का टुकड़ा मात्र लोहे का टुकड़ा नहीं होता ! उसमें सब पदार्थ अव्यक्त रूप में उपस्थित रहते हैं ! इसमें स्वर्ण तत्त्व भी विद्यमान् होता है ! किंतु सूक्ष्म रूप में ! किंतु यदि इसके विलीन भाव को प्रबुद्ध किया जाए और उसकी मात्रा बढ़ा दी जाए ! तो लौह भाव दब जायेगा और स्वर्ण का विलीन भाव प्रबुद्ध होने से लोहे का टुकड़ा सोने का हो जायेगा !

वास्तव में न लोहा नष्ट हुआ और न सोने की नवीन सृष्टि हुई ! दोनों पहले भी विद्यमान् थे और अब भी हैं ! अंतर मात्र इनके अनुपात एवं घनत्व का है ! इस अव्यक्त एवं व्यक्त के अंतर के ठीक-ठीक रहस्य व क्रिया-कौशल को जानकर किसी भी स्थान पर ! किसी भी वस्तु का आविर्भाव किया जा सकता है ! यही योग शक्ति के माध्यम से पदार्थ की सत्ता के रूपांतरण का रहस्य है और यही सूर्य विज्ञान की सहायता से भी किया जा सकता है !

एक पदार्थ को दूसरे रूप में रूपांतरण करना जहाँ सूर्य सिद्धाँत द्वारा संभव है ! वहीं योगबल से भी इस कार्य को बिना किसी स्फटिक यंत्र का सहारा लिये किया जा सकता है ! योगबल की व्याख्या करते हुये स्वामी अखिलेश्वरानंद ‘हिमालय के महायोगियों की गुप्त सिद्धियाँ’ पुस्तक में लिखते हैं ! बाहर विश्व में सूर्य देदीप्यमान है ! उससे करोड़ों गुना तेज और ताप लेकर एक सूर्य हमारे अंदर निहित है ! किंतु उसका तेजस् एवं ताप बिखरा हुआ है ! योग साधनाओं के माध्यम से इसकी रश्मियों को घनीभूत करके व नेत्रों के माध्यम से पदार्थ पर उनका प्रभाव डालकर मनोवाँछित पदार्थ में इसे रूपांतरित किया जा सकता है !

इसी प्रकार इस पुस्तक में परकाया प्रवेश ! रोग निवारण ! मृत्यु निवारण आदि के प्रयोगों का उल्लेख है ! ऐसी ही एक विशिष्ट क्रिया है शून्य मार्ग से यात्रा की ! जिसमें कुछ ही क्षणों में जितना चाहे उतना सामान लेकर एक स्थान से दूसरे स्थान की यात्रा की जा सकती है ! इस प्रक्रिया का गूढ़ रहस्य बताते हुये वे कहते हैं कि इसमें पूरे शरीर को नियंत्रित कर इड़ा व पिंगला को समन्वित करना होता है ! ऐसा होते ही पूरा शरीर वायु से भी अत्यंत हल्का और वेगवान बन जाता है !

इस तरह हिमालय के योगियों की सिद्धियों का संसार अद्भुत एवं विलक्षण है ! जो सहज ही विश्वसनीय नहीं लगता और पर्याप्त कौतुक एवं आश्चर्य का विषय बन जाता है ! किंतु समय-समय पर प्रकट होने वाले प्रामाणिक संदर्भ इसके अस्तित्व पर मोहर लगाते रहते हैं !

हालाँकि सिद्धियों की चकाचौंध में सामान्यतः जो पक्ष उपेक्षित-सा रह जाता है ! वह है इससे अभिन्न रूप से जुड़ा साधना का पक्ष ! साधना के साथ क्रमशः सिद्धियों का प्रस्फुटन भी शुरू हो जाता है ! किंतु जीवन के परम लक्ष्य की प्राप्ति में इनकी चकाचौंध को बाधस्वरूप मानकर हमेशा इनसे बचने का ही निर्देश रहता है !

साधना की परिपक्व अवस्था में सिद्धपुरुषों और योगियों के लिये सिद्धियाँ कौतुक का विषय नहीं रहतीं ! बल्कि अनुचर बनकर रह जाती हैं ! जिनका उपयोग मात्र लोककल्याण के हित ही किया जाता है ! जो भी हो ! सिद्धियों का अस्तित्व अध्यात्म विज्ञान की असीम समर्थता को स्वीकार करने के लिये बाध्य करता है !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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