विश्व में धर्मांतरण का विस्तृत इतिहास अवश्य पढ़ें : Yogesh Mishra

क्या आप जानते हैं कि कुछ यहूदी लोग भूमध्यसागरीय विश्व के बाहर यहूदी धर्म में धर्मांतरित हुये लोगों के भी वंशज हैं ! यह ज्ञात है कि पहले कुछ कज़ार, एडोमाइट, ईथियोपियाई और साथ ही अनेक अरब, विशिष्ट रूप से येमन में, अतीत में यहूदी धर्म में धर्मांतरित हुये थे; आज पूरी दुनिया में लोग यहूदी धर्म में धर्मांतरित होते हैं !

मूल रूप से “नवदीक्षित” शब्द यहूदी धर्म में धर्मांतरित होने वाले ग्रीक व्यक्ति का उल्लेख करने के लिये प्रयोग किया जाता था ! छठीं सदी तक भी पूर्वी रोमन साम्राज्य अर्थात बाइज़ेन्टाइन साम्राज्य यहूदी धर्म में धर्मांतरण के विरूद्ध आदेश जारी करता रहा था, जिससे स्पष्ट है कि यह कार्य उस समय भी हो रहा था !

हालिया समय में, रिफॉर्म ज्यूडाइज़्म आंदोलन के सदस्यों ने अंतर्धार्मिक विवाह करने वाले अपने सदस्यों के गैर-यहूदी जीवन-साथियों तथा यहूदी धर्म में रूचि रखने वाले गैर-यहूदियों को यहूदी धर्म में धर्मांतरित करने के लिये एक कार्यक्रम की शुरुआत की ! उनका तर्क यह है कि यहूदियों के नरसंहार के दौरान इतने अधिक यहूदी मारे गये कि अब नये नवागतों को ढूंढना व उनका स्वागत करना अनिवार्य हो गया है !

आर्थोडॉक्स व कंज़र्वेटिव यहूदियों द्वारा इस पद्धति को अवास्तविक तथा खतरनाक कहकर अस्वीकार कर दिया गया है ! उनका कहना है कि इन प्रयासों के द्वारा यहूदी धर्म अपनाने और पालन करने में सरल दिखाई देता है, जबकि वास्तविकता यह है कि यहूदी धर्म में अनेक कठिनाइयां और त्याग आवश्यक होते हैं !

एक नव-धर्मांतरित मुस्लिम को मुल्लाफ़ कहा जाता है ! इस्लाम के पांच स्तंभ, या आधार हैं, लेकिन इनमें से प्रमुख और सर्वाधिक महत्वपूर्ण यह विश्वास करना है कि ईश्वर व सृष्टिकर्ता केवल एक ही है ! जिसे “अल्लाह” ईश्वर के लिये अरबी शब्द कहते हैं और यह कि इस्लामी पैगंबर, मुहम्मद, उनके अंतिम और आखिरी संदेश-वाहक हैं ! किसी व्यक्ति को उसी क्षण से इस्लाम में धर्मांतरित मान लिया जाता है, जब वह निष्ठापूर्वक विश्वास की घोषणा करता है, जिसे “शाहदा” कहते हैं !

ईसाईयत में होने वाला धर्मांतरण किसी पूर्व गैर-ईसाई व्यक्ति का ईसाईयत के किसी रूप में होने वाला धार्मिक परिवर्तन है ! इसकी सटीक आवश्यकताएं विभिन्न चर्चों व संप्रदायों के अनुसार भिन्न-भिन्न होती हैं ! मुख्यतः इसमें पाप की स्वीकारोक्ति और प्रायश्चित्त तथा ईसा मसीह की प्रायश्चित्त के लिये हुई मृत्यु और पुनरूत्थान में विश्वास के द्वारा एक ऐसा जीवन जीने का निर्णय शामिल होता है, जो ईश्वर को स्वीकार्य हो तथा पवित्र हो ! यह सब संबंधित व्यक्ति की इच्छा से किया जाता है और एक सच्चे धर्मांतरण के लिये विशिष्ट आवश्यकता है !

इस प्रकार, स्वाभाविक रूप से किसी का सच्चा धर्मांतरण बलपूर्वक नहीं किया जा सकता ! जहां तक ईसाई विश्वास का प्रश्न है, बलपूर्वक किया जाने वाला धर्मांतरण एक विरोधाभास है क्योंकि सच्चा धर्मांतरण कभी भी किसी मनुष्य पर लादा नहीं जा सकता ! धर्मांतरितों से लगभग सदैव ही बपतिस्मा की उम्मीद की जाती है !

हिंदू धर्म धर्मांतरण का समर्थन नहीं करता और इसमें धर्मांतरण के लिये कोई रस्म मौजूद नहीं है ! यह स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं है कि कोई व्यक्ति हिंदू कब बनता है क्योंकि हिंदू धर्म ने कभी भी दूसरे धर्मों को अपने प्रतिद्वंद्वियों के रूप में नहीं देखा ! अनेक हिंदुओं की धारणा यह है कि ‘हिंदू होने के लिये व्यक्ति को हिंदू के रूप में जन्म लेना पड़ता है’ और ‘यदि कोई व्यक्ति हिंदू के रूप में जन्मा है, तो वह सदा के लिये हिंदू ही रहता है !

हालांकि, भारतीय कानून किसी भी ऐसे व्यक्ति को हिंदू के रूप में मान्यता प्रदान करता है, जो स्वयं को हिंदू घोषित करे ! हिंदू धर्म के अनुसार, केवल एक ही परम सत्य है (इस सत्य या ब्राह्मण का ज्ञान न होना ही शोक का कारण है और आत्माएं तब तक पुनर्जन्म के शाश्वत चक्र में फंसी रहती है, जब तक उन्हें इस सत्य का ज्ञान न हो जाए) और सत्य तक “पहुंचने” के अनेक पथ, अन्य धर्मों द्वारा पालन किये जाने वाले पथों सहित हैं !

धर्म के लिये संस्कृत शब्द “मार्ग” का शाब्दिक अर्थ पंथ होता है ! धर्मांतरण की अवधारणा ही एक विरोधाभास है क्योंकि हिंदू ग्रंथ वहद तथा उपनिषद संपूर्ण विश्व को एक ही सत्य को देवता मानने वाला एक परिवार मानते हैं !

हिंदू धर्म में आस्था के पुनः प्रवर्तन का सबसे पहला उल्लेख शंकराचार्य के काल में आठवीं शताब्दी का है, जब जैन धर्म और बौद्ध धर्म प्रभावी बन गये थे ! हिंदू धर्म में आक्रमण और सामूहिक धर्मांतरण का कोई प्रमाण मौजूद नहीं है ! अनेक पीढ़ियों के संस्कृतीकरण के बाद गुज्जरों, अहोमों और हूणों सहित कई विदेशी समूह हिंदू धर्म में धर्मांतरित हुये ! पूरी अठारहवीं शताब्दी के दौरान हुये संस्कृतीकरण के परिणामस्वरूप मणिपुर के आदिवासी समुदाय स्वयं को हिंदू मानने लगे !

हाल ही में, हिंदू धर्म से धर्मांतरित हो चुके लोगों का पुनः धर्मांतरण करने की अवधारणा प्रचलित हुई है ! यह पुनः धर्मांतरण सदैव ही अन्य प्रमुख धर्मों के प्रचारीकरण, धर्म-परिवर्तन तथा धर्मांतरण गतिविधियों के खतरे की प्रतिक्रिया के रूप में ही होता रहा है; अनेक आधुनिक हिंदू उनके धर्म से (किसी भी) अन्य धर्म में धर्मांतरण के विचार के खिलाफ़ हैं !

हिंदू पुनर्जागरण आंदोलनों के विकास के परिणामस्वरूप ऐसे लोगों के पुनः धर्मांतरण के कार्य में गति आई है, जो पहले हिंदू थे या जिनके पूर्वज हिंदू रहे थे ! आर्य समाज (भारत) तथा परिषद हिंदू धर्म (इंडोनेशिया) जैसे राष्ट्रीय संगठन ऐसे पुनः धर्मांतरणों के द्वारा हिंदू बनने की इच्छा रखने वालों की सहायता करते हैं !

अमेरिका में जन्मे हिंदू गुरू, सतगुरू शिवाय सुब्रमुनियस्वामी ने हाऊ टू बिकम अ हिंदू अ गाइड फॉर सीकर्स एन्ड बॉर्न हिन्दूज़ शीर्षक से एक पुस्तक लिखी ! इस पुस्तक में, सुब्रमुनियस्वामी ने उस कार्य, जो उनके अनुसार “हिंदू धर्म में एक नैतिक धर्मांतरण” है, के लिये एक व्यवस्थित पद्धति, हिंदू धर्म में धर्मांतरित होने वाले लोगों के कथन, एक हिंदू वास्तव में क्या होता है, इस बारे में हिंदू प्राधिकारियों द्वारा दी गईं परिभाषाएं आदि प्रस्तुत की है !

धर्मांतरण किसी ऐसे नये धर्म को अपनाने का कार्य है, जो धर्मांतरित हो रहे व्यक्ति के पिछले धर्म से भिन्न हो ! एक ही धर्म के किसी एक संप्रदाय से दूसरे में होने वाले परिवर्तन (उदा) और ईसाई बैप्टिस्ट से मेथोडिस्ट या मुस्लिम शिया से सुन्नी आदि) को सामान्यतः धर्मांतरण के बजाय पुनर्संबद्धता कहा जाता है !

अनेक कारणों से लोग विभिन्न धर्मों में धर्मांतरित होते हैं, जिनमें विश्वास में हुये परिवर्तन के कारण स्वेच्छा से होने वाला सक्रिय धर्मांतरण, द्वितीयक धर्मांतरण, मृत्यु-शैय्या पर होने वाला धर्मांतरण, किसी लाभ के लिये किया जाने वाला तथा वैवाहिक धर्मांतरण एवं बलपूर्वक किया जाने वाला धर्मांतरण शामिल हैं !

ईसाइयों का मानना है कि धर्मांतरण के लिये नई विश्वास प्रणाली को आत्मसात करना आवश्यक होता है ! इसमें धर्मांतरित व्यक्ति की स्वयं की पहचान के लिये एक संदर्भ बिंदु निहित होता है और यह उस धर्म तथा संबद्धता दोनों के विश्वास तथा सामाजिक संरचना का मामला है !

विशिष्ट रूप से इसमें एक नई विश्वास प्रणाली को ईमानदारी से स्वीकार करने की आवश्यकता होती है, लेकिन यह स्वयं को अन्य तरीकों, जैसे किसी पहचान समूह या आध्यात्मिक वंश में शामिल होकर, भी प्रस्तुत कर सकता है !

अपने लाभ के लिये किया जाने वाला धर्मांतरण या पुनर्संबद्धता एक पाखण्ड है, जो कभी-कभी अपेक्षाकृत मामूली कारणों से किया जाता है, जैसे किसी अभिभावक द्वारा अपने बच्चे का धर्मांतरण करवाना ताकि वह किसी विशिष्ट धर्म से जुड़े किसी अच्छे विद्यालय में प्रवहश पा सके, अथवा किसी व्यक्ति द्वारा इसलिये धर्मांतरण किया जाना, ताकि वह उस सामाजिक वर्ग में शामिल हो सके, जिसमें शामिल होने की वह इच्छा रखता है ! जब लोग विवाह करते हैं, तब भी पति या पत्नी में से कोई अपने जीवन-साथी के धर्म में धर्मांतरित हो सकता है !

बलपूर्वक होने वाले धर्मांतरण में किसी जबरदस्ती के तहत दूसरे धर्म को अपनाया जाता है ! संभव है कि इस स्थिति में धर्मांतरित व्यक्ति गुप्त रूप से अपने पूर्व धार्मिक विश्वास को बनाये रखे और, गुप्त रूप से, अपने मूल धर्म की पद्धतियों का पालन जारी रखते हुये बाहरी तौर पर नये धर्म का पालन दिखावह के लिये करता रहे ! हो सकता है कि बलपूर्वक धर्मांतरित किया गया परिवार कुछ पीढ़ियां बीत जाने पर सच्चे दिल से नये धर्म को अपना ले !

लेकिन धर्म विरोधी कानूनों के आलोचकों का मानना है कि इससे जिला प्रशासन को धर्म परिवर्तन के मामलों की पड़ताल के लिए निर्बाध अधिकार मिल जाते हैं ! उदाहरण के तौर पर गुजरात में किसी भी तरह के धर्म परिवर्तन से पहले स्थानीय अधिकारियों से इजाजत लेनी पड़ती है ! इसके अलावा ‘जबरन’ और ‘धोखे’ तथा ‘थोपने’ और ‘प्रलोभन’ जैसे शब्दों की व्याख्या भी अस्पष्ट है !

उत्तर प्रदेश में धर्म जागरण मंच ने जो हालात पैदा किए हैं, उन्हें कई लोग संघ द्वारा बीजेपी को एक केंद्रीय धर्मांतरण विरोधी विधेयक पारित करवाने में मदद करने के प्रयास के रूप में देख रहे हैं ! पूर्व गृह सचिव जी.के. पिल्लै कहते हैं कि अगले 12 महीनों में इस आशय का कानून अस्तित्व में आ सकता है ! लेकिन जब कई राज्यों में धर्मांतरण विरोधी कानून हैं और समय-समय पर विभिन्न अदालतों ने उन्हें मान्यता दी है तो राष्ट्रीय स्तर पर ऐसे कानून की जरूरत पर भी कई लोग सवाल उठा रहे हैं !

राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष नसीम अहमद के मुताबिक, धर्मांतरण पर पूरी तरह प्रतिबंध लाने वाला कानून व्यक्ति के मौलिक अधिकारों के खिलाफ है ! हालांकि वह कहते हैं, “लेकिन धर्म परिवर्तन किसी प्रलोभन, भय या धोखे से नहीं किया जाना चाहिये !” वरिष्ठ वकील के.टी.एस. तुलसी स्थानीय प्रशासन के हाथ में दिये गये अधिकारों का औचित्य नहीं मानते ! वह कहते हैं, “जिला अधिकारी तो वही करेगा जो राज्य का मुख्यमंत्री कहेगा !” तुलसी का यह भी कहना है कि धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी हमारे मौलिक अधिकारों में दी गई है और इसमें धर्म परिवर्तन का अधिकार भी शामिल है, जिसे जबरन धर्म परिवर्तन से अलग रखकर देखा जाना चाहिये !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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