वीरभद्र के आंसुओं से हुई थी ‘नीलभ भद्राक्ष’ की उत्पत्ति
‘नीलभ भद्राक्ष’ पर गत पांच वर्षों से निरन्तर शोध और उसके परिणामों को देखने से ज्ञात हुआ है कि वर्तमान समय के नकारात्मक परिवेश में यह व्यक्ति के डिप्रेशन, हीनभावना, कार्यों में अरुचि, आत्मविश्वास की कमी, साहस व शक्ति का आभाव, शाररिक समर्थ की कमी, दाम्पत्य जीवन में उत्साह की कमी आदि में अत्यन्त ही प्रभावशाली ढंग से कार्य करता है | यह बुढ़ापे के प्रभाव को भी रोकता है | शत्रुहन्ता समर्थ होने के कारण यह न्यायालय में विजय दिलाता है | शत्रुओं को बराबर दबा कर रखता है | चुनावओं में भी विजय दिलाता है | इसे स्त्री व पुरुष दोनों ही प्रभावशाली ढंग से धारण कर सकते हैं | यह नौकरी, व्यापार, व्यवसाय करने वाले तथा प्रतियोगी परीक्षाओं में भाग लेने वाले छात्रों के लिये भी अत्यन्त प्रभावशाली है | जिन बच्चियों को ससुराल में सम्मान नहीं मिलता है उन्हें अवश्य ही इसे धारण करना चाहिये |
‘नीलभ भद्राक्ष’ की उत्पत्ति की कथा : भगवान शिव की सुरक्षा और उनके आदेश को मानने के लिए उनके गण के रूप में भैरव, वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, जय और विजय। इसके अलावा, पिशाच, दैत्य और नाग-नागिन, पशुओं को भी शिव का गण माना जाता है। ये सभी गण धरती और ब्रह्मांड में विचरण करते रहते हैं और प्रत्येक मनुष्य, आत्मा आदि की खैर-खबर रखते हैं।
शिव पुराण, स्कंद पुराण, देवी पुराण तथा देव संहिता के अनुसार भगवान शिवजी के ससुर दक्ष प्रजापति ने एक विशाय यज्ञ का आयोजन किया था | जिसमें सभी ऋषि, मुनी, देवी और देवताओं को बुलाया था। लेकिन अपने पिता दक्ष प्रजापति की इच्छा के विरुद्ध जा कर माता सती द्वारा भगवान शंकर से विवाह कर लेने के कारण इस यज्ञ में दक्ष प्रजापति ने भगवान शंकर और माता सती को नहीं बुलाया था।
पिता का यज्ञ समझ कर माता सती बिना बुलाए ही यज्ञ में पहुंच गयी थी, किंतु जब उसने वहां जाकर देखा कि न तो उनके पति भगवान शंकर का भाग (यज्ञ के लिए) ही निकाला गया है और न उनका सत्कार किया गया बल्कि पिता ने उनकी ओर देखा तक नहीं तो अपने और अपने पति का घोर अपमान देखकर माता सती ने यज्ञ कुण्ड में कूदकर आत्मदाह कर लिया । यह देखर वहां हाहाकार मच गया।
भगवान शंकर को जब यह समाचार मिला तो वे क्रोधित हो गए। उन्होंने दक्ष, उसकी सेना और वहां उपस्थित उनके सभी सलाहकारों को दंड देने के लिए अपनी जटा से वीरभद्र नामक एक अत्यन्त साहसी और प्रभावशाली गण उत्पन्न किया । उत्पन्न होते ही गण वीरभद्र भगवान शंकर की आज्ञा से तेजी से दक्ष प्रजापति यज्ञ स्थल पहुंचा और उसने वहां की भूमि को रक्त से लाल कर दिया और बाद में दक्ष को पकड़कर उसका सिर धड़ से अलग कर दिया।
बाद में ब्रह्माजी और विष्णुजी फिर कैलाश पर्वत पर गए और उन्होंने महादेव से विनयकर अपने क्रोध को शांत करने को कहा और राजा दक्ष को जीवन देकर यज्ञ को संपन्न करने का निवेदन किया। बहुत प्रार्थना करने के बाद भगवान शिव ने उनकी बात मान ली और दक्ष के धड़ से बकरे का सिर जोड़कर उसे जीवनदान दिया, जिसके बाद यह यज्ञ पूरा हुआ।
भगवान शिव के गण वीरभद्र की दक्षिण भारत में शिवजी की तरह ही पूजा अर्चना होती है। वीरभद्र मंदिर, लेपाक्क्षी गांव में स्थित है। वीरभद्र के आईएस मंदिर को 16 वीं शताब्दी में विजयनगर के राजा के द्वारा बनवाया गया था।
इस घटना के दौरान वीरभद्र के आँखों से जो रक्तांश प्रथ्वी पर गिरे उससे “नीलभ भद्राक्ष” की उत्पत्ति हुई थी | यह अत्यन्त ही प्रभावशाली हैं |