अपना अपना राष्ट्रवाद घातक है ! : Yogesh Mishra

“भारत में एकता-अखंडता बची रहे इसके लिये सभी समुदायों को निष्ठा के साथ धर्मनिरपेक्ष रहना होगा” गाँधी के यह शब्द गंभीर सवाल छोड़ गये कि आने वाले वर्षों में भारत किस राह पर चलेगा ! मोहनदास करमचंद गांधी की राह पर या नाथूराम विनायक गोडसे की राह पर !

पिछले कई दशकों से 26 जनवरी को देश में गणतंत्र दिवस मनाया जाता है लेकिन भारतीय गणतंत्र के स्वरूप और धर्मनिरपेक्षता पर चली आ रही बहस एक बार फिर सार्वजनिक विमर्श के केंद्र में आ गई है ! यही नहीं, एक बार फिर इस सच्‍चाई को रेखांकित करने की जरूरत शिद्दत के साथ महसूस की जाने लगी कि यदि भारत को अपनी एकता-अखंडता को बचाये रखना है ! तो उसमें रहने वाले सभी समुदायों को पूरी निष्ठा के साथ धर्मनिरपेक्षता का पालन करना होगा या नहीं !

क्योंकि कोई भी देश जिसमें केवल एक अल्पसंख्यक धार्मिक समुदाय के लगभग बीस करोड़ लोग रहते हों और जिसमें अनेक भाषाएं, खान-पान की अनेक संस्कृतियां और अनेक धार्मिक परंपरायें अपने जीवंत रूप में सक्रिय हों ! वह केवल बहुसंख्यक समुदाय के वर्चस्व के आधार पर नहीं चल सकता ! यदि इस वर्चस्व को बलपूर्वक थोपने की राज्य-समर्थित कोशिश की जायेगी ! तो फिर देश और उसके समाज के जटिल ताने-बाने को बिखरने से कोई नहीं बचा सकता है ! स्पष्ट रूप से ऐसी कोशिश को राष्ट्रवादी नहीं कहा जा सकता है !

लेकिन हिंदुत्व जिसे हिंदू राष्ट्रवाद और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के नाम से भी जाना जाता है ! वह आज यही कोशिश करने पर आमादा है और इसके लिये लगातार नये-नये बहाने खोजता रहता है ! यह कोशिश तब तक पूरी तरह सफल नहीं हो सकती जब तक गांधी की धर्मनिरपेक्ष विरासत पर लगातार हमले करके उसे नष्ट न कर दिया जाये ! दिलचस्प बात यह है कि एक ओर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ गांधी को “प्रातःस्मरणीय” महापुरुषों की श्रेणी में जगह देता है और दूसरी ओर उससे जुड़े व्यक्ति अक्सर उन पर उंगलियां उठाते रहते हैं !

संघ की शाखा से निकले कल्याण सिंह, जो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे और अब राजस्थान के राज्यपाल हैं ! सवाल उठा चुके हैं कि क्या गांधी वास्तव में भारत के राष्ट्र के पुत्र थे या फिर उन्हें राजनैतिक कारणों से मात्र ‘राष्ट्रपिता’ कहा दिया गया है ! जब उन्हें पता चला कि गांधी को सबसे पहले नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने ‘राष्ट्रपिता’ कहा था, तो वह भी निरुत्तर हो गये ! क्योंकि संघ की निगाह में सुभाष राष्ट्र की धरोहर हैं !

एक और दिलचस्प बात यह है कि पूर्ण बहुमत से सत्ता में आने के बाद एक ओर गांधी-नेहरू की विरासत पर लगातार हमले किये जा रहे हैं ! तो दूसरी ओर गांधी के पट्टशिष्य रहे सरदार वल्लभभाई पटेल को बड़े जोर-शोर के साथ अपनाया जा रहा है ! मानो वह संघ के नेता रहे हों ! जबकि हकीकत यह है कि 30 जनवरी, 1948 के दिन गांधी की हत्या होने के बाद तत्कालीन उप-प्रधानमंत्री और गृह मंत्री सरदार पटेल ने ही चार फरवरी, 1948 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबंध लगा कर हजारों संघ कार्यकर्ताओं और नेताओं को जेल की सलाखों के पीछे भेज दिया था !

11 सितंबर, 1948 को संघ के सर्वोच्च नेता सर संघ चालक माधवराव सदाशिव गोलवलकर को लिखे पत्र में सरदार पटेल ने स्पष्ट शब्दों में कहा था कि हिंदुओं को संगठित करना एक बात है और उनके साथ हुई किसी ज्यादती का बदला लेने के लिये निर्दोष और असहाय स्‍त्री-पुरुषों और बच्चों पर हमले करना बिलकुल दूसरी बात ! संघ के सभी नेताओं के भाषण सांप्रदायिक जहर से भरे हुये थे और इस प्रकार का जहर फैलाना हिंदुओं को संगठित करने के लिये कतई जरूरी नहीं है !

पटेल ने इस पत्र में गोलवलकर को यह भी याद दिलाया था कि संघ के कार्यकर्ताओं ने गांधी जी की हत्या की खबर पाकर मिठाई बांटी थी और खुशियां मनाई थी ! इन परिस्थितियों में सरकार के सामने संघ के खिलाफ कार्रवाई करने के सिवा और कोई विकल्प नहीं था ! पटेल ने यह भी लिखा कि सरकार को यह उम्मीद थी कि कुछ समय बीत जाने के बाद इन गतिविधियों में कमी आयेगी लेकिन वह इस बीच और अधिक उग्र हो गये हैं !

सरदार पटेल की यह उम्मीद आज तक पूरी नहीं हुई और संघ तथा हिंदुत्व की विचारधारा से प्रभावित अन्य संगठनों की सांप्रदायिक गतिविधियां आज भी जारी हैं ! आज भी हिंदुओं को मुसलमानों के खिलाफ संगठित कर खड़ा किया जा रहा है ! रोज नये-नये बहाने तलाशे जा रहे हैं ! हल्दीघाटी के मैदान में राणा प्रताप को अकबर पर विजयी दिखाया जा रहा है तो कभी सड़क से औरंगजेब का नाम हटाया जा रहा है !

लेकिन यह अपने अपने तरह का राष्ट्रवाद जिसकी रोज नई-नई परिभाषा नये-नये संगठनों द्वारा बतलाई जा रही है ! यह वास्तव में राष्ट्रवाद को बढ़ावा नहीं है बल्कि राष्ट्रवाद नामक शब्द को विलुप्त करने की साजिश है !

इन संगठनों के कार्य और तथ्यों को देखकर यह महसूस होता है कि यह लोग राष्ट्रवाद पर इतनी परिभाषायें गठित कर देना चाहते हैं कि सामान्य जनमानस यह निश्चय ही न कर पाये कि वास्तविक राष्ट्रवाद है क्या ? जो राष्ट्रवाद की संपूर्ण हत्या के लिये पर्याप्त है !

इसीलिए मेरा अपना यह मत है कि राष्ट्रवाद को यदि उसकी स्वाभाविक अवस्था में छोड़ दिया जाये तो यह राष्ट्रवाद के जीवित रहने का पर्याप्त आधार होगा ! लेकिन यदि नित नये राष्ट्रवाद को परिभाषित करके उसे समाज में बताने की चेष्टा की जायेगी तो कहीं ऐसा न हो कि एक दिन व्यक्ति राष्ट्रवाद नामक शब्द से ही इतना चढ़ने लगे कि उस पर चिंतन ही बंद कर दे ! और यही राष्ट्र्विरोधियों की जीत होगी !!

अपने बारे में कुण्डली परामर्श हेतु संपर्क करें !

योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

 -: सम्पर्क :-
-090 444 14408
-094 530 92553

Check Also

प्रकृति सभी समस्याओं का समाधान है : Yogesh Mishra

यदि प्रकृति को परिभाषित करना हो तो एक लाइन में कहा जा सकता है कि …