पराशर की तप स्थली रही ‘पराशर झील’ : Yogesh Mishra

माना जाता है कि जबसे सृष्टि का निर्माण हुआ तभी यह झील भी बनी ! 9,100 फीट की उंचाई पर बनी इस झील में पानी कहां से आता है और कहां जाता है किसी को नहीं पता, लेकिन यह पानी ठहरा हुआ भी नहीं है ! इस झील के बीच में एक भूभाग है और यही भूभाग यहां किसी दैवीय शक्ति के होने का प्रमाण देता है ! यह भूभाग एक प्रकार से पृथ्वी के अनुपात को भी दर्शाता है !

मंदिर जाने वाले श्रद्धालु झील से हरी-हरी लंबे फर्ननुमा घास की पत्तियां निकालने हैं ! इन्हें बर्रे कहते हैं और छोटे आकार की पत्तियों को जर्रे ! इन्हें देवता का शेष (फूल) माना जाता है ! इन्हें लोग अपने पास श्रद्धापूर्वक संभालकर रखते हैं ! मंदिर के अंदर प्रसाद के साथ भी यही पत्ती दी जाती है ! पूजा कक्ष में ऋषि पराशर की पिंडी, विष्णु-शिव व महिषासुर मर्दिनी की पाषाण प्रतिमाएं हैं ! पराशर ऋषि वशिष्ठ के पौत्र और मुनि शक्ति के पुत्र थे ! पराशर ऋषि की पाषाण प्रतिमा में गजब का आकर्षण है ! इसी प्राचीन प्रतिमा के समक्ष पुजारी आपके हाथ में चावल के कुछ दाने देता है !

श्रद्धालु श्रद्धा से आंखें मूंदें मनोकामना करते हैं ! फिर आंखें खोल दाने गिनते हैं ! यदि दाने तीन, पांच, सात, नौ या ग्यारह हैं तो कामना पूरी होगी और यदि दो, चार, छह, आठ या दस हैं तो नहीं ! मनोकामना पूरी पर अनेक श्रद्धालु बकरु (बकरी या बकरा) की बलि मंदिर परिसर के बाहर देते देखे जा सकते हैं ! यदि इस क्षेत्र में बारिश नहीं होती तो एक पुरातन परंपरा के अनुसार पराशर ऋषि गणेश जी को बुलाते हैं ! गणेश जी भटवाड़ी नामक स्थान पर स्थित हैं जो कि यहां से कुछ किलोमीटर दूर है ! यह वंदना राजा के समय में भी करवाई जाती थी और आज सैकडों वर्ष बाद भी हो रही है ! झील में मछलियां भी हैं जो अपने आप में एक आकर्षण हैं !

वर्षों पहले यह भूभाग सुबह पूर्व की तरफ होता था और शाम को पश्चिम की तरफ ! इसके चलने और रूकने को पुण्य और पाप के साथ जोड़कर देखा जाता है ! हालांकि अब यह भूभाग कभी कुछ महीनों के लिए एक ही स्थान पर रूक भी जाता है और कभी चलने लग जाता है ! इलाके के दर्जनों देवी-देवता इस पवित्र झील के पास आकर स्नान करते हैं ! पुजारी देवलुओं के साथ देवरथों को झील के पास लाते हैं और यहां के पानी से देवरथों का स्नान करवाते हैं !

पराशर झील एक छोटी-सी खूबसूरत झील है, जो पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र है ! इस झील की एक ख़ास बात है कि इसमें एक ‘टहला’ रहता है ! ‘टहला’ एक छोटा-सा द्वीप है, जिसकी विशेषता यह है कि यह झील में ही टहलता रहता है, इसीलिये इसे ‘टहला’ कहते हैं ! पराशर झील के आसपास कोई वृक्ष नहीं है ! इसके चारों ओर बस हरी-हरी घास ही है, जो दिसम्बर के महीने में पीले रंग की हो जाती है !

झील के निकट ही पराशर ऋषि का मंदिर है ! एक अनुमान के अनुसार इस मंदिर का निर्माण तेरहवीं शताब्दी में तत्कालीन मंडी नरेश बाणसेन द्वारा करवाया गया था ! मंदिर में की गयी काष्ठ कला इतनी बेजोड़ है कि कला प्रेमी वाह–वाह किये बिना नहीं रहता ! मंदिर में महर्षि पराशर की भव्य पाषाण प्रतिमा के अतिरिक्त भगवान विष्णु, महिषासुरमर्दिनी, शिव व लक्ष्मी की कलात्मक प्रस्तर मूर्तियाँ भी स्थित हैं ! झील का सौंदर्यावलोकन करने आये पर्यटक स्वयंमेव ही इस मंदिर में आकर नतमस्तक हो जाते हैं !

कहा जाता है कि जिस स्थान पर मन्दिर है, वहाँ ऋषि पराशर ने तपस्या की थी ! पिरामिडाकार पैगोडा शैली के गिने-चुने मन्दिरों में से यह एक है और काठ निर्मित है ! तिमंजिले मन्दिर की भव्यता अपने आप में एक मिसाल है ! पारम्परिक निर्माण शैली में दीवारें चिनने में पत्थरों के साथ लकड़ी की कड़ियों के प्रयोग ने पूरे प्रांगण को अनूठी व नायाब कलात्मकता प्रदान की है ! मन्दिर के बाहरी तरफ़ व स्तम्भों पर की गई नक्काशी अदभुत है !

इनमें उकेरे गए देवी-देवता, सांप, पेड़-पौधे, फूल, बेल-पत्ते, बर्तन व पशु-पक्षियों के चित्र क्षेत्रीय कारीगरी के सुन्दर नमूने हैं ! श्रद्धालु झील से हरी-हरी लम्बे फर्ननुमा घास की पत्तियाँ निकालते हैं ! इन्हें ‘बर्रे’ कहते हैं और छोटे आकार की पत्तियों को ‘जर्रे’ ! इन्हें देवता का ‘शेष’ (फूल) माना जाता है ! इन्हें श्रद्धा के साथ संभालकर रखा जाता है ! मंदिर के अन्दर प्रसाद के साथ भी यही पत्ती दी जाती है !

झील में मछलियाँ भी हैं, जो नन्हें पर्यटकों को खूब लुभाती हैं ! पराशर झील के निकट हर वर्ष आषाढ़ की संक्रांति व भाद्रपद की कृष्ण पक्ष की पंचमी को विशाल मेले लगते हैं ! भाद्रपद में लगने वाला मेला पराशर ऋषि के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है ! पराशर स्थल से कई किलोमीटर दूर कमांदपुरी में पराशर ऋषि का भंडार है, जहाँ उनके पांच मोहरे हैं ! यहाँ भी अनेक श्रद्धालु दर्शन के लिये पहुंचते हैं !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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