आपने कई बार पढ़ा होगा कि कुछ योगी अपने पुराने वृद्ध शरीर को त्याग कर किसी नवीन युवा आयु के मरे हुये व्यक्ति के शरीर में प्रवेश कर जाते थे या किसी अन्य के मृत व्यक्ति के शरीर में जाकर उसके शरीर का उपयोग कर अपना कार्य सिद्ध कर पुनः अपने शरीर में वापस आ जाते थे ! जैसे-शँकराचार्य का मण्डन मिश्र की पत्नी भारती मिश्र से शास्त्रार्थ में काम विषय में प्रश्न करने पर जब शँकराचार्य जवाब नहीं दे पाये तो प्रश्नों का उत्तर पाने के लिये उन्होंने मृत राजा के शरीर में प्रवेश कर उसकी रानियों संग काम ज्ञान प्राप्त किया और पुनः अपनी देह में लौट कर भारती मिश्र को शस्त्रार्थ में पराजित किया ! इसी तरह के अनेक उदाहरण सनातन योगियों के शास्त्रों में मिलते हैं !
अब प्रश्न यह है कि क्या ये सम्भव है यदि हाँ तो कैसे ?
ज्ञानी योगी जन कहते हैं कि जब योगी की प्राण ऊर्जा साधना द्वारा उसके वश में आ जाती है तो उसका नाभि चक्र खुल जाता है और वह नाभि चक्र के बहत्तर हजार नाड़ियों को नियंत्रित करने लगता है ! जिनसे शरीर और ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति हुयी है ! यह योग क्रिया प्रत्यक्ष दिखाई और अनुभूत की जा सकती है !
इस क्रिया के बाद आगामी चक्र ह्रदय चक्र के जागरण की भी आवश्यक्ता पड़ती है ! इसे मन चक्र भी कहते हैं ! ह्रदय चक्र का जागरण करने पर योगी को मन की मनोवहा नाड़ियों की अनुभूति होती है ! जो समस्त विश्व या ब्रह्माण्ड से योगी को जोड़ता है ! तब योगी को ज्ञानत होता है कि उसके शरीर से अनन्त जाल की भांति विश्व में व्याप्ति ऊर्जा जुड़ी हुई है !
हर व्यक्ति किसी न किसी एक नाड़ी यानि मन रश्मि से जुड़ा हुआ है ! यह मन रश्मि हमारा सम्बन्ध एक दूसरे से कर्म संस्कार के अनुसार बनाये रखता है ! उसे खोजना और जानना ही परकाया प्रवेश की प्रक्रिया का प्रवेश द्वार है ! जब इसकी जानकारी योगी को हो जाती है तो वह उस नाड़ी के माध्यम की सहायता से अपने प्राणों को निकाल कर मृत व्यक्ति के नाड़ी माध्यम से उसके शरीर में प्रवेश कर जाता है और अपने शरीर को त्याग देता है !
कम जानकर योगी दूसरे के शरीर में जा कर फंस भी सकता है क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति के मन नाड़ी रश्मि का जाल अलग-अलग होता है ! जिससे प्राण ऊर्जा के आने जाने का द्वार अलग-अलग होने के कारण भ्रमित हो कर फंस जाना स्वाभाविक है !
साधना द्वारा अन्तर्द्रष्टि खुल जाने पर संसार में कोई भी विषय ऐसा नहीं है जो उसे अपने ही शरीर में ज्ञात नही होगा अर्थात सभी विषय का ज्ञान आत्मा में पूर्व से ही होता है और व योगी अपनी पूर्वजन्म के शरीरों में वह सब भोग और जान चूके होते हैं, उसे केवल उन पूर्व जन्मों के अभ्यास को कर्मो में अपना संयम रखकर यानि गम्भीर ध्यान करके पुनः याद करने की आवश्यकता भर रह जाती है और योगी सहज ही परकाया प्रवेश कर सकता है ! इस साधना का विस्तृत वर्णन “सत्यास्मि योग दर्शन” नामक शास्त्र में मौजूद है !