तृतीय विश्व युद्ध से प्रकृति को सुख : Yogesh Mishra

सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ ।
ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि ॥38॥

जय-पराजय, लाभ-हानि और सुख-दुःख को समान समझ कर तू युद्ध के लिये तैयार हो जा ! इस प्रकार युद्ध करने से तू पाप को प्राप्त नहीं होगा ! श्रीमद् भागवत गीता, अध्याय 2, सांख्ययोग श्लोक 38 !

विश्व, देश और राष्ट्रों के जीवन में कई बार ऐसा समय भी आया करता है कि जब उसे चारों ओर से आलस्य, उन्माद, लापरवाही, भय, अराजकता और बिखराव का-सा वातावरण हो जाता है ! तब युद्ध का बिगुल सहसा इन सब दूषणों को एकाएक दूर कर जातियों-राष्ट्रों को सप्राण बना देता है ! युद्ध नई ऊर्जा, नई उत्सुकता, नई व्यवस्था, नया साहस और नया उत्साह लेकर आता है ! और राष्ट्र को नये-नये साधन जुटाने और आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में अग्रसर करता है !

आपने देखा होगा युद्ध काल में व्यक्ति का आपसी घृणा द्वेष समाप्त हो जाता है संपन्न से संपन्न व्यक्ति भी विनम्र हो जाता है लंबे काल से जो व्यक्ति अपने को अस्वस्थ अनुभव करते हैं वह लोग भी प्राया युद्ध काल में नए उत्साह से भर कर अपने को स्वस्थ अनुभव करने लगते हैं योग्य व्यक्ति जो समाज में राजनीतिक कारणों से उपेक्षा का शिकार होते रहते हैं उन्हें भी अपनी प्रतिभा दिखाने का समुचित अवसर प्राप्त होता है !

अस्पतालों में मरने वालों की संख्या कम हो जाती है बाजार में दवाइयों की बिक्री कम हो जाती है व्यक्तियों के आत्महत्या के प्रयास की घटनाएं कम हो जाती है और हर व्यक्ति का ध्यान बस इस बात पर होता है की युद्ध में क्या हो रहा है और युद्ध की घटनाएं हमें किस तरह प्रभावित कर रही है !

अतः समाज के अंदर जो अवसाद घड़ा द्वेष का वातावरण होता है वह युद्ध काल में लगभग समाप्त हो जाता है पुरानी व्यवस्थाएं और परंपरा टूट जाती है समग्र विकास के लिए नई व्यवस्थाओं का जन्म होता है समाज हर समस्या के समाधान के लिए परंपरागत तरीके को छोड़कर नए संसाधनों से नए दृष्टिकोण के साथ समस्या का समाधान ढूंढना शुरू करता है यह युद्ध की सकारात्मकता ही है !

जिन देशों में युद्ध नहीं होते वहां आलस्य और अराजकता के वातावरण के कारण उन देशों का विकास रुक जाता है आप देखिए कि आज विश्व के जितने भी विकसित देश है यह सब वही देश हैं जिन्होंने पूर्व में बड़े-बड़े महायुद्ध झेले हैं

हाँला कि मैं यह मानता हूँ कि युद्ध काल में वैश्विक अर्थव्यवस्था के कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों में पूरी तरह से ठप हो जाती है ! परिवहन जो वैश्विक कार्बन उत्सर्जन का लगभग एक चौथाई हिस्सा बनाता है ! उसमें भी भरी गिरावट आती है ! इस दौरान न तो सड़कों पर वाहन चल रहे होते हैं और न ही आसमान में हवाई जहाज ही उड़ रहे होते हैं !

बिजली उत्पादन और औद्योगिक इकाइयों जैसे अन्य क्षेत्रों में भी भारी गिरावट आती है ! इससे वातावरण में डस्ट पार्टिकल न के बराबर हो जाते हैं और कार्बन मोनोऑक्साइड का उत्सर्जन भी सामान्य से बहुत अधिक नीचे आ जाता है ! इस तरह की हवा मनुष्य व पर्यावरण के लिये बेहद लाभदायक है !

इस पर्यावरणीय पुनः संतुलन के दौरान रुक-रुक कर हुई बारिश भी धूल के कण और कार्बन पार्टिकल को आसमान से जमीन पर नीचे बैठाने का काम करती है ! इससे कई प्रमुख शहरों में जहरीली गैस का उत्सर्जन थमने से वायु गुणवत्ता बेहतर हो जाता है !

वर्तमान असंतुलित विकास से ओजोन परत को सबसे ज्यादा नुकसान अंटार्कटिका के ऊपर हो रहा था ! वैज्ञानिकों ने पाया है कि कोरोना वायरस के जैविक विश्व व्यापी हमले से हुये लाक डाउन के कारण ओजोन परत में अब उल्लेखनीय सुधार हो रहा है ! नेचर पत्रिका में प्रकाशित ताजा शोध के अनुसार जो केमिकल ओजोन परत के नुकसान के लिये जिम्मेदार थे ! उनके उत्सर्जन में कमी होने के कारण यह स्वत: प्राकृतिक सुधार हो रहा है !

हाल में कम हुये ओ.डी.एस. के उत्सर्जन से दक्षिण ध्रुव में अंटार्कटिका के ऊपर जो तेज हवाओं का भंवर बनता था ! उसका भी खिसकना बंद होकर विपरीत दिशा में जाने लगा है ! इन पदार्थों की कमी से न केवल ओजन परत सुधर रही है ! बल्कि अंटार्कटिकाके ऊपर का भंवर भी सही जगह वापस आने लगा है ! जो पृथ्वी के ध्रुवीय संतुलन के आवश्यक है !

उल्लेखनीय है कि पृथ्वी को वायुमंडल की पहली परत क्षोभमंडल के ठीक ऊपर ओजोन की परत है ! जो अंतरिक्ष से आने वाले अल्ट्रावॉयलेट (पराबैगनी) किरणों को धरती की सतह तक आने नहीं देती हैं. यह परत भूमध्य रेखा के ऊपर 15 किलोमीटर तो ध्रुवों के ऊपर करीब 8 किलोमीटर मोटी है. पराबैगनी किरणों से हमारी आंखों और त्वचा को खास तौर पर नुकसान होता है. इन किरणों से लोगों में कैसर जैसी बीमारी तक हो सकती है ! जो खतरा परत के पुनः ठीक होने से काफी कम हो जाता है !

इंडस्ट्री बंद होने से प्रदूषण कम होगा ! यातायत और लोगों की आवाजाही भी बंद होगी ! जिससे नदियां स्वत: शुद्ध होंगी ! नदियों के तटों पर मानव गतिविधियां भी बंद होने के कारण गंगा, यमुना नदी का जल स्वत: स्वच्‍छ हो जायेगा ! अब देश की प्रत्येक नदियां निर्मल होकर अविरल बहेगी !

लगातार बढ़ती जनसँख्या भी पूरे विश्व के लिये एक खतरा है ! जिससे जंगल इत्यादि सब समाप्त हो रहे हैं ! पृथ्वी की जल, वायु, समुंद्र सब हमने गंदे कर डाले हैं ! जीवों जंतुओं को बेहताशा खाने व मारने के कारण कई प्रजाति विलुप्त हो गई है ! जिन्हें अब पुनः विकसित होने का अवसर मिलेगा !

अब जीव जंतुओं को भी यह पृथ्वी अपनी लगने लगेगी ! वह भी स्वतंत्र होकर घूमेंगे ! वह भी इस पृथ्वी में अपनी उपस्थिति दर्ज करवायेंगे ! उन्हें भी अपनी सुरक्षा करने का संपूर्ण अधिकार है ! जो उन्हें इस युद्ध के बाद मिलेगा !

अत: सच्चे मन से पृथ्वी व पृथ्वी के हर तत्व, जीव जंतु, पेड़ पौधों को अपना मानकर उनकी रक्षा करें व उन्हें नष्ट न करें तो यह पृथ्वी स्वयं स्वर्ग बन जायेगी ! ऐसा करने से न केवल पृथ्वी का भला होगा बल्कि हमारे लिये भी यह सब बहुत तरह से लाभदायक सिद्ध होगा !

कहने का तात्पर्य यह है कि हमने द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद 75 सालों में आज तक इस प्रकृति को जितना नुकसान पहुंचाया है ! इस तृतीय विश्व युद्ध के दौरान प्रकृति अपने समस्त नुकसान की भरपाई करेगी ! अगर हमें भविष्य में अपने आप को सुरक्षित रखना है तो यह सबक है हमारे लिये ! कि हम अब प्रकृति का और नुकसान न करें वरना हमें ईश्वरीय व्यवस्था के तहत इसी तरह के महायुद्ध झेलने पड़ेंगे !

लेख लम्बा हो गया है आर्थिक और सामाजिक विषयों पर चर्चा अगले लेखों में !!

अपने बारे में कुण्डली परामर्श हेतु संपर्क करें !

योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

 -: सम्पर्क :-
-090 444 14408
-094 530 92553

Check Also

प्रकृति सभी समस्याओं का समाधान है : Yogesh Mishra

यदि प्रकृति को परिभाषित करना हो तो एक लाइन में कहा जा सकता है कि …