ध्यान की सृजनात्मक शक्ति से ही होगा नये विश्व का निर्माण !! Yogesh Mishra

हम लोगों ने दुनिया को योग का सूत्र दिया है, ध्यान का सूत्र दिया है ! ध्यान करने का मतलब है अपनी शक्ति से परिचित होना, अपनी क्षमता से परिचित होना, अपना सृजनात्मक निर्माण करना, अहिंसा की शक्ति को प्रतिष्ठापित करना ! जो आदमी अपने भीतर गहराई से नहीं देखता, वह अपनी शक्ति से परिचित नहीं होता ! जिसे अपनी शक्ति पर भरोसा नहीं होता, जो अपनी शक्ति को नहीं जानता, उसकी सहायता कोई भी नहीं कर सकता ! अगर काम करने की उपयोगिता है और क्षमता भी है, तो वह शक्ति सृजनात्मक हो जाती है !

आज दुनिया में सुविधावाद एवं भौतिकवाद बढ़ रहा है ! जितनी-जितनी जीवन में कामना, उतनी-उतनी ध्वंसात्मक शक्ति ! जितना-जितना जीवन में निष्काम भाव, उतनी-उतनी सृजनात्मक शक्ति ! दोनों का बराबर योग है ! प्रश्न होगा कि सृजनात्मक शक्ति का विकास कैसे करें ? इसका उपाय क्या है ? सृजनात्मक शक्ति का विकास करने के लिए अनेक उपाय हैं ! शक्ति के जागरण के अनेक साधन हो सकते हैं, पर उन सब में सबसे शक्तिशाली साधन है ध्यान ! हमारी बिखरी हुई चेतना, विक्षिप्त चेतना काम नहीं देती ! ध्यान का मतलब होता है कि विक्षिप्त चित्त को एकाग्र बना देना, बिखरे हुए को समेट देना ! डेनिस वेटली ने अच्छा कहा है- ‘खुशी तक पहुंचा नहीं जा सकता, उस पर कब्जा नहीं किया जा सकता, उसे अर्जित नहीं किया सकता, पहना या ग्रहण नहीं किया जा सकता- वह हर मिनट को प्यार, गरिमा और आभार के साथ जीने का आध्यात्मिक अनुभव है !’

हम अपने प्रति मंगल भावना करें कि मेरी सृजनात्मक-आध्यात्मिक शक्ति जागे और मेरी ध्वंसात्मक शक्ति समाप्त हो, यह मूर्च्छा का चक्र टूटे ! यदि इस तरह की भावना-निर्माण में हम सफल हो सकें तो चेतना का विकास अवश्यंभावी है !

शक्ति के दो रूप हैं- ध्वंसात्मक और सृजनात्मक ! कोई आदमी अपनी शक्ति का उपयोग सृजन में करता है और कोई आदमी अपनी शक्ति का उपयोग ध्वंस में करता है ! बहुत से लोग दुनिया में ऐसे हैं, जो शक्तिशाली हैं, पर उनकी शक्ति का उपयोग केवल ध्वंस में होता है ! वे निर्माण की बात जानते ही नहीं ! वे जानते हैं- ध्वंस, ध्वंस और ध्वंस ! इसी में सारी शक्ति खप जाती है ! हमारी दुनिया में आतंकवादी, हिंसक एवं क्रूर लोगों की कमी नहीं है ! इस दुनिया में हत्या, अपराध और विध्वंस करने वालों की कमी नहीं है ! ये चोरी करने वाले, डकैती करने वाले, हत्या करने वाले, आतंक फैलाने वाले एवं युद्ध करने वाले लोग क्या शक्तिशाली नहीं हैं? शक्तिशाली तो हैं, बिना शक्ति के तो ये सारी बातें हो नहीं सकतीं ! दलाई लामा ने कहा भी है कि ‘प्रेम और करुणा आवश्यकताएं हैं, विलासिता नहीं है ! उनके बिना मानवता जीवित नहीं रह सकती !’

अमेरिका के विभिन्न शहरों की यात्रा के दौरान भौतिक विकास के शिखर पर पहुंचे लोगों से बातचीत से जो तथ्य सामने आया, उससे यही निष्कर्ष निकला है कि धन कमाने की आज बहुत सारी विद्याएं प्रचलित हैं ! एक विज्ञान में ही नए-नए विषय सामने आ रहे हैं ! लेकिन आत्मा को छोड़कर केवल शरीर को साधा जा रहा है, आत्मविद्या का अभाव होता जा रहा है ! अध्यात्म विद्या को बिलकुल दरकिनार कर दिया गया है ! परिणाम यह कि आज का मानव अशांत है, दिग्भ्रम है, तनावग्रस्त है, कुंठित है ! पश्चिमी सोच आदमी को कमाऊ बना रही है, लेकिन भीतर से खोखला भी कर रही है ! उपलब्धि के नाम पर आज एक बड़े आदमी के पास कोठी, कार, बैंक- बैलेंस सब कुछ है, लेकिन शांति नहीं है !

आदमी शांति की खोज में है लेकिन स्थूल से सूक्ष्म में गए बिना शांति नहीं मिल सकती ! उन सच्चाइयों से रू-ब-रू नहीं हो सकते, जो सच्चाइयां हमारे जीवन को प्रभावित करती हैं ! सारा ज्ञान पदार्थ की खोज और उसके उपयोग में खर्च हो रहा है, आत्मा की ओर से जैसे आंख मूंद ली गई है ! अमेरिकी लेखक आइजैक एसिमोव कहते हैं, ‘आज जीवन का सबसे दुखद पहलू यह है कि विज्ञान जिस तेजी से जानकारी बटोरता है, समाज उस तेजी से उनकी समझ पैदा नहीं कर पाता !’

स्वस्थ व्यक्ति, स्वस्थ समाज व्यवस्था और स्वस्थ अर्थव्यवस्था- इन तीनों का लक्ष्य रखे बिना चहुंमुखी और संतुलित विकास लगभग असंभव है ! मैंने अनेक कार्यक्रमों में बार-बार इस बात को कहा है कि आज की जो अर्थव्यवस्था है वह केवल कुछ लोगों को दृष्टि में रखकर लागू की जा रही है ! क्या इसका उद्देश्य इतना ही है कि कोरा भौतिक विकास हो? जब तक भौतिक एवं आध्यात्मिक विकास के बीच संतुलन नहीं होगा, यह व्यवस्था विनाश का कारण बनती रहेगी ! जिस तरह बिना प्राण के किसी चीज का कोई मूल्य नहीं होता, आदमी सुंदर है, स्वस्थ है, लेकिन प्राण निकल जाने के बाद वह मुर्दा हो जाता है, ठीक उसी तरह वर्तमान विकास की स्थिति है ! वह आदमी को साधन-सुविधाएं उपलब्ध करा रही है, लेकिन साथ में अशांति एवं असंतुलन भी दे रही है !

व्यक्ति, समाज या राष्ट्र- सबकी शांति, सुरक्षा और सुदृढ़ता का पहला साधन है आध्यात्मिक चेतना का जागरण और अहिंसा की स्थापना ! अस्त्र-शस्त्रों को सुरक्षा का विश्वसनीय साधन नहीं माना जा सकता ! आज कोई भी राष्ट्र अध्यात्म की दृष्टि से मजबूत नहीं है इसलिए वह बहुत शस्त्र-साधन-संपन्न होकर भी पराजित है ! हमें नए विश्व का निर्माण करना है, क्योंकि लेखिका एलएम मॉन्टगोमेरी के शब्दों में, ‘क्या यह सोचना बेहतर नहीं है कि आने वाला कल, एक नया दिन है जिसमें फिलहाल कोई गलती नहीं हुई है !’

नया चिंतन, नई कल्पना, नया कार्य- यह अहिंसा विश्व भारती की नए मानव एवं नए विश्व निर्माण की आधारशिला है ! कभी बनी-बनाई लकीर पर चलकर बड़े लक्ष्य हासिल नहीं होते, जीवन में नए-नए रास्ते बनाने की जरूरत है ! जो पगडंडियां हैं, उन्हें राजमार्ग में तब्दील करना होगा !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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