आंदोलन की ऊर्जा ही राष्ट्र को बचा सकता है !! Yogesh Mishra

जिस तरह एक सोये हुये व्यक्ति के उठने पर उसकी ताजगी के लिये उसे एक कप चाय या जल की आवश्यकता होती है ! ठीक उसी तरह एक निर्धारित अंतराल के बाद राष्ट्र को एक नई ताजगी और संचार के लिए सदैव वैचारिक आंदोलन की आवश्यकता होती है !

आज भारत के अंदर वैचारिक चिंतन और आंदोलन दोनों को ही राजनीतिज्ञों द्वारा योजनाबद्ध तरीके से खत्म कर दिया गया है ! यह स्थिति यह बतलाती है कि देश अब आलस्य की ओर बढ़ रहा है ! जिस तरह एक आलसी व्यक्ति सभी तरह की प्रतिभा, योग्यता, क्षमता रखते हुये भी अपने संपूर्ण व्यक्तित्व को नष्ट कर लेता है ! ठीक उसी तरह जब कोई राष्ट्र आलस्य की ओर बढ़ जाता है, तो उस राष्ट्र में उदासीनता और निरंकुशता का वातावरण पैदा हो जाता है ! कोई भी व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति से संवाद नहीं करना चाहता है ! हर व्यक्ति अपने निर्वाह के लिये निरंतर बिना परिश्रम के धन कमाने में लगा रहता है और परिश्रम करने वाला व्यक्ति निरंतर निर्धन होता चला जाता है !

देश की राजनीति में भ्रष्ट और सिद्धांत विहीन राजनीतिज्ञों का बोल बाला होता है और जनता न्याय के लिए दर-दर ठोकर खाती फिरती है ! संवैधानिक संस्थायें निष्क्रिय हो जाती हैं और कार्यपालिका व विधायिका अपने कर्तव्य बोध से च्युत हो जाते हैं ! परिणामत: न्यायपालिका पर देश को चलाने का संपूर्ण भार आ जाता है और कुछ समय बाद न्यायपालिका भी कार्य की अधिकता के कारण शीघ्र निर्णय देने में सक्षम हो जाती है !

कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि देश की सभी संवैधानिक संस्थाएं निष्प्रभावी और कर्तव्य विहीन हो जाती हैं ! जिससे समाज के अन्दर अराजकता, चोरी और बेईमानी से तेजी से बढ़ने लगती है और समाज का पढ़ा-लिखा मेहनतकश इंसान अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकने में अक्षम हो जाता है !

यह स्थिति किसी भी राष्ट्र के लिये बहुत भयावह होती है ! ऐसी स्थिति में राष्ट्र के अंदर और बाहर राष्ट्र को नष्ट करने वाली षड्यंत्रकारी शक्तियां सक्रिय हो जाती हैं ! जगह-जगह धर्मांतरण करवाये जाने लगते हैं और प्राकृतिक संसाधनों को अपने नियंत्रण में करने के लिए पूंजीपति राजनीतिक दलों को बहुत बड़ी मात्रा में आर्थिक मदद करने लगते हैं ! जिससे राजनीति में आम व्यक्तियों का हस्तक्षेप समाप्त हो जाता है और राजनीतिक दल इन पूंजीपतियों के प्रतिनिधि के रूप में अप्रत्यक्ष रूप से शासन सत्ता चलाने लगते हैं !

योग्य विद्यार्थी आरक्षण के कारण या धन के अभाव में शिक्षण संस्थाओं से बाहर हो जाते हैं और अयोग्य छात्र अपने माता पिता के बेईमानी के धन के कारण इन शिक्षण संस्थाओं से डिग्रियां प्राप्त कर नौकरियां पाने लगते हैं ! परिणाम यह होता है कि अयोग्य लोग जब नौकरी में आते हैं, तो वह नौकरी देने वाली संस्थाओं के अंदर काम करने की जगह राजनीति करने लगते हैं और इस तरह धीरे-धीरे संस्थायें राजनीति के कारण अंदर से खोखला हो जाती हैं और कालांतर में यह संस्थायें बड़े-बड़े घाटों के कारण बंद हो जाती हैं !

कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि इस अवस्था में देश की सभी सामाजिक, शैक्षिक, संवैधानिक और सरकारी व गैर सरकारी संस्थायें पूरी तरह से प्रभावहीन और निरंकुश होने लगती हैं ! यह स्थिती देश को एक बड़े आंदोलन की ओर धकेलना शुरू कर देती हैं ! जिन देशों में नागरिकों के अंदर राष्ट्रीय संस्कार होता है, वहां पर वैचारिक क्रांति शुरू हो जाती है और जिन देश में राष्ट्रीय संस्कार नहीं होता है, वहां पर खूनी क्रांति होने लगती है ! जैसे फ्रांस, रूस, चीन आदि आदि !

किंतु भारत एक आध्यात्मिक पृष्ठभूमि का राष्ट्र है ! यह बात अलग है कि इसमें अब कुछ विधर्मियों ने घुसकर इसके संस्कारों को दूषित करने का प्रयास शासन सत्ता के लिये शुरू कर दिया है ! लेकिन अभी भी बहुत बड़ी संख्या में राष्ट्र के नागरिकों में आध्यात्मिक संस्कार जाग्रत हैं ! परिणामत: भारत में खूनी क्रांति तो नहीं होगी पर भारत आज पूरी तरह से वैचारिक क्रांति की ओर बढ़ चला है !

इस समय राष्ट्र को आवश्यकता भी है एक नये वैचारिक आंदोलन की जो राष्ट्र की सभ्यता, संस्कृति को सुरक्षित रखते हुये राष्ट्र को पुनः नव जीवन प्रदान कर सके ! क्योंकि राष्ट्र आज भयंकर अराजकता के ज्वर से पीड़ित है ! इस समय राष्ट्र को एक सही उपचार की आवश्यकता है ! यदि यह उपचार समय रहते शीघ्र नहीं किया गया तो राष्ट्र का स्वास्थ्य दिन-व-दिन बद से बत्तर होता चला जायेगा, और फिर राष्ट्र को नष्ट करने वाली विदेशी षड्यंत्रकारी शक्तियां सक्रिय हो जायें ! अभी 70 वर्ष पूर्व ही राष्ट्र 700 वर्ष की गुलामी से निकला है और पुनः उसी ओर जा रहा है ! इसलिये राष्ट्र को शीघ्र ही एक बड़े वैचारिक आंदोलन की आवश्यकता है ! क्योंकि आन्दोलन की ऊर्जा अब राष्ट्र को बचा सकती है !!

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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