सम्पूर्ण विश्व में रहा है भगवान श्री राम का प्रभाव !! Yogesh Mishra

सम्पूर्ण विश्व में रहा है भगवान श्री राम का प्रभाव !!

विभिन्न देशों की राम कथा यह सिद्ध करती है कि लगभग 3,000 वर्ष पूर्व सम्पूर्ण विश्व में सनातन धर्म ही था ! तभी तो गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में लिखा है कि “हरि अनंत हरि कथा अनंता ! कहहिं सुनहिं बहुबिधि सब संता॥“ अर्थात श्री हरि विष्णु अनंत हैं, उनका कोई पार नहीं पा सकता और इसी प्रकार उनकी कथा भी अनंत है ! सब संत लोग उसे बहुत प्रकार से सुनते और सुनाते हैं !

आज चलिये इसी विषय पर कुछ चर्चा करते हैं !

जैसाकि वाल्मीकि रामायण 24,000 श्लोकों का आदि कवि वाल्मीकि द्वारा संस्कृत में लिखा गया एक अनुपम महाकाव्य है जो कि हिन्दू स्मृति का अभिन्न अंग है ! इसके माध्यम से रघुवंश के राजा राम की गाथा कही गयी है, जिनका समय त्रेतायुग का माना जाता है !

गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित ‘श्री रामचरित मानस’ और वाल्मीकि कृत ‘रामायण’, दोनों ही भगवान राम को समर्पित दो प्रमुख्य ग्रंथ हैं ! इसके अलावा तमिल भाषा में “कम्बन रामायण”, असम में “असमी रामायण”, उड़िया में “विलंका रामायण”, कन्नड़ भाषा में “पंप रामायण”, कश्मीरी में “कश्मीरी रामायण”, बंगाली भाषा में “रामायण पांचाली,” मराठी भाषा में “भावार्थ रामायण” आज भी भारत के विभिन्न क्षेत्रों में उपलब्ध हैं !

इसके बाद जब हम आधुनिक भारत की सीमाओं के बाहर देखते हैं तो कंपूचिया की “रामकेर्ति या रिआमकेर रामायण,” लाओस फ्रलक-फ्रलाम “रामजातक”, “ख्वाय थोरफी”, “पोम्मचक” (ब्रह्म चक्र) और श्रीलंका में “नाई रामायण,” मलेशिया में “हिकायत सेरीराम रामायण,” थाईलैंड में “रामकियेन रामायण” और नेपाल में “भानुभक्त कृत रामायण” के साथ-साथ कई अन्य देशों में वहां की भाषा में रामायण लिखी गई हैं !

इस प्रकार दुनियाभर में 300 से ज्यादा रामायण प्रचलित हैं ! जिनमें वाल्मीकि रामायण, कंबन रामायण, रामचरित मानस, अद्भुत रामायण, अध्यात्म रामायण और आनंद रामायण की चर्चा सबसे ज्यादा होती है !

नेपाल, लाओस, कंपूचिया, मलेशिया, कंबोडिया, इंडोनेशिया, बांग्लादेश, भूटान, श्रीलंका, बाली, जावा, सुमात्रा और थाईलैंड आदि देशों की लोक-संस्कृति व ग्रंथों में तथा दुनियाभर में बिखरे शिलालेख, भित्तिचित्र, सिक्के, रामसेतु, अन्य पुरातात्विक अवशेष, प्राचीन भाषाओं के ग्रंथ आदि से राम के होने की पुष्टि होती है और पता चलता है कि रामकथा और राम का प्रभाव एक समय संपूर्ण धरती पर था !

कुमार दास (512-21ई.) जो कि लंका के राजा थे, उन्होंने भारतीय महाकाव्यों की परंपरा पर आधारित ‘जानकी हरण’ की रचना की थी ! जबकि इससे पहले 700 ईसापूर्व में ‘मलेराज की कथा’ श्रीलंका के सिंहली भाषा में जन-जन में प्रचलित रही है ! जो राम के जीवन से जुड़ी है !

बर्मा, जिसे पहले ब्रह्मादेश कहा जाता था, उसकी रामकथा पर आधारित प्राचीनतम गद्यकृति ‘रामवत्थु’ है ! संपूर्ण इंडोनेशिया और मलयेशिया में पहले हिन्दू धर्म के लोग रहते थे, लेकिन फिलिपींस के इस्लामीकरण के बाद वहां भी हिन्दुओं का जब कत्लेआम किया गया और फिर सभी ने मिलकर इस्लाम ग्रहण कर लिया तो फिलिपींस की तरह वहां भी रामकथा को तोड़-मरोड़कर एक काल्पनिक कथा का रूप दिया गया !

डॉ. जॉन आर. फ्रुकैसिस्को ने फिलिपींस की मारनव भाषा में संकलित एक विकृत रामकथा की खोज की है जिसका नाम ‘मसलादिया लाबन’ है ! रामकथा पर आधारित इंडोनेशिया के जावा की प्राचीनतम कृति ‘रामायण काकावीन’ है जिसकी रचना कावी भाषा में हुई थी जो कि जावा की प्राचीन शास्त्रीय भाषा है !

मलयेशिया का इस्लामीकरण 13वीं शताब्दी के आस-पास हुआ था और “मलय रामायण” की प्राचीनतम पांडुलिपि बोडलियन पुस्तकालय में 1633 ई. में जमा की गई थी ! इस पर आधरित एक विस्तृत रचना है ‘हिकायत सेरीराम’ जिसका आरंभ रावण की जन्म कथा से हुआ है क्योंकि मलेशिया पर मूलत: रावण के नाना का आधिपत्य था !

चीनी रामायण को ‘अनामकं जातकम्’ और ‘दशरथ कथानम्’ के नाम से जाना जाता है ! जिसके हर पात्र के नाम और रामकथा के मायने भी अलग हैं ! इसके अनुसार राजा दशरथ जंबू द्वीप के सम्राट थे और उनके पहले पुत्र का नाम लोमो था, जिनका जन्म 7,323 ईसा पूर्व हुआ था ! इसकी कथा पूर्णत: वाल्मीकि रामायण पर आधारित है, हालांकि इसकी कथा नायिका विहीन है ! जब हम चीन में प्रचलित ‘अनामकं जातकम्’ के रचनात्मक स्वरूप को देखते है तो राम वन गमन, सुग्रीव मैत्री, सेतुबंधष लंका विजय आदि प्रमुख घटनाओं से इसके रामायण पर आधारित होने का पता चलता है !

चूँकि ये दोनों रचनाएँ बौद्ध धर्म ग्रंथ “त्रिपिटक” के चीनी संस्करण में मिलती हैं, इसलिए आसानी से समझा जा सकता है कि नायिका विहीन ‘अनामकं जातकम्’ में जानकी हरण, बालि वध, लंका दहन, सेतुबंध, रावण वध आदि प्रमुख घटनाओं का वर्णन नहीं मिलता है !

हालांकि ‘दशरथ कथानम्’ के अनुसार राजा दशरथ जंबू द्वीप के सम्राट थे ! राजा की प्रधान रानी के पुत्र का नाम लोमो (राम) था और दूसरी रानी के पुत्र का नाम लो-मन (लक्ष्मण) था ! राजकुमार लोमो में ना-लो-येन (नारायण) का बल और पराक्रम था ! उनमें ‘सेन’ और ‘रा’ नामक अलौकिक शक्ति थी ! तीसरी रानी के पुत्र का नाम पो-लो-रो (भरत) और चौथी रानी के पुत्र का नाम शत्रुघ्न था !

जापान के एक लोकप्रिय कथा संग्रह ‘होबुत्सुशू’ में संक्षिप्त रूप में “रामकथा” संकलित है ! चीन के उत्तर-पश्चिम में स्थित मंगोलिया के लामाओं के निवास स्थल से “वानर-पूजा” की अनेक पुस्तकें और प्रतिमाएं मिली हैं ! मंगोलिया में रामकथा से संबद्ध काष्ठचित्र और पांडुलिपियां भी उपलब्ध हुई हैं ! दम्दिन सुरेन ने मंगोलियाई भाषा में लिखित “चार रामकथाओं” की खोज की है ! इनमें ‘राजा जीवक की कथा’ विशेष रूप से उल्लेखनीय है, जिसकी पांडुलिपि लेलिनगार्द में आज भी सुरक्षित हैं !

तिब्बत, जहाँ के लोग प्राचीनकाल से वाल्मीकि रामायण की मुख्य कथा से सुपरिचित थे, वे रामकथा को “किंरस-पुंस-पा” कहा करते हैं ! तिब्बती रामायण की 6 प्रतियां “तुन-हुआंग” नामक स्थल से प्राप्त हुई थी !

एशिया के पश्चिमोत्तर सीमा पर स्थित तुर्किस्तान के पूर्वी भाग, जिसे “खोतान” कहा जाता है, उसकी भाषा “खोतानी” है ! पेरिस पांडुलिपि संग्रहालय से “खोतानी रामायण” को खोजकर एच. डब्लू. बेली दुनिया के सामने लाये थे !

यह तो रही राम-कथा की सार्वभौमिकता और व्यापकता की बात, लेकिन जब हम ऐतिहासिकता की बात करते है तो वाल्मीकि कृत रामायण सबसे प्राचीन मानी जाती है ! रामायण के अधिकांश पाश्चात्य शोधकर्ता सात कांडों में से, दूसरे से ले कर छटवे तक के कांडों (अर्थात् अयोध्या, अरण्य, किष्किंधा, सुंदर एवं लंका या युद्ध), जिसे ‘आदिकाव्य’ कहा गया है, की रचना स्वयं महर्षि वाल्मीकि के द्वारा बतलाते हैं और शेष दो कांड (अर्थात् पहला बालकांड, एवं सातवा उत्तरकांड) को अन्य द्वारा प्रक्षिप्त मानते हैं !

वाल्मीकि रामायण श्रुति और स्मृति के आधार पर ‘आदिकाव्य’ माना जाता है किन्तु इसका लेखन महाभारत काल के बाद हुआ बताया जाता है ! इस के रचनाकाल के संबंध में विभिन्न शोधकों के अनुसार 5वी शताब्दी ई. पू ,बतलाया जाता है !

इसी प्रकार मुग़ल शासक अकबर की सचित्र रामायण, जो सन 1584 से 1588 के बीच तैयार हुए थीं, वह वर्तमान समय में महाराजा सवाई मानसिंह द्वितीय संग्रहालय जयपुर में सुरक्षित है ! इस रामायण को “मुगल रामायण” के नाम से जाना जाता है ! रामायण की इस प्रति मे सन 1654 से 1658 की शाहजहां की और सन 1661 की औरंगजेब की मुहर लगी हुई है !

इसी प्रकार “कम्ब रामायण” का रचना काल लगभग बारहवी शताब्दी, “रंगनाथ रामायण” का रचना काल लगभग 1380 इस्वी, “तोरवे रामायण” का रचना काल लगभग 1500 इस्वी और गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित श्रीरामचरितमानस का रचना 1574 ईस्वी से 1576 ईस्वी के मध्य है !

इसी प्रकार 18 दिसम्बर 2015 को टाइम्स ऑफ इंडिया में छपे समाचार के अनुसार कोलकाता के एशियाटिक सोसायटी लाइब्रेरी में संयोगवश “वन्हि (अग्नि) पुराण” पर खोज करते हुए, एक हिंदू महाकाव्य रामायण की 6 वीं शताब्दी की पांडुलिपि मिली हैं ! जिसमें केवल पांच कांड ही (अयोध्या, अरण्य, किष्किंधा, सुंदर एवं लंका या युद्ध) हैं !

अतः इस प्रकार सिद्ध होता है कि भगवान राम का प्रभाव सर्वव्यापी था ! जिसे कुछ मूर्ख काल्पनिक मानते हैं !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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