वैष्णव धर्म ग्रंथों के अनुसार भारत में जब वैष्णव जीवन शैली अपने पूर्ण प्रसार पर थी ! तब दो महायुद्ध हुए ! एक राम रावण का युद्ध और दूसरा महाभारत का धर्म युद्ध और यह दोनों ही युद्ध धर्म और संत समाज की रक्षा के लिए हुए ! ऐसा बतलाया जाता है !
मगर आश्चर्य की बात यह है कि इन दोनों ही युद्धों में कहीं कोई भी साधु-संत न तो राम के साथ युद्ध लड़ने गया और न ही कृष्ण के साथ !
जबकि युद्ध धर्म और वैष्णव संत समाज की रक्षा के लिए ही हुआ थे ! क्योंकि राक्षस लोग इनकी तपस्या में विघ्न डालते थे तथा इन्हें यज्ञ आदि नहीं करने दिया करते थे ! ऐसा बतलाया जाता है !
लेकिन इन दोनों ही महायुद्ध में मरने वाले या तो इंसान थे या जंगलों के अंदर रहने वाले वन नर ! जिन्हें बाद को गोस्वामी तुलसीदास में वानर कह दिया !
एक विद्वान अध्ययनशील दार्शनिक प्रवक्ता ने तो यहां तक बतलाया है कि जब रावण सीता का अपहरण कर रहा था ! तब उस समय जंगल के निवासी पंचवटी के अंदर रहने वाले साधु संतों के पास रावण से सीता की रक्षा के लिए गुहार करने गये !
तब वहां पर संत के एक समूह ने जवाब दिया कि हम तो आध्यात्मिक पुरुष हैं ! हम अभेदवादी हैं, हमारे लिए न कोई अपना है, न कोई पराया है, न कोई राम है, न कोई रावण है ! हम तो सबको समान दृष्टि से देखते हैं ! सीता राम के पास रहे या रावण के पास हमारे लिए कोई भेद नहीं है ! इसलिए हमें किसी से किसी की रक्षा करने की क्या आवश्यकता है !
तब वह वनवासी दूसरे समूह के संतो के पास गए और उनसे सीता के रक्षा की गुहार लगाई !
तब उन्होंने जवाब दिया कि यह पूरा संसार माया है, एक प्रपंच है, सब एक ही ब्रह्म का अंश है, राम भी ब्रह्म है, सीता भी ब्रह्म है, रावण भी ब्रह्म है ! सब एक ही ब्रह्म से उपजे हैं ! सब उसी का अंश हैं ! इसलिए एक ब्रह्म दूसरे ब्रह्म का अपहरण कैसे कर सकता है ! इसलिए मुझे इस ब्रह्म के रचे हुए माया में उलझने की क्या आवश्यकता है ?
तब वनवासी तीसरे समूह के संतो के पास गये और उनसे सीता के रक्षा की गुहार लगाई !
तब उन्होंने भी इन वनवासियों को जवाब दिया कि इस संसार में जो भी कुछ हो रहा है, वह सब एक लीला है और ईश्वर की बनाई हुई लीला में मनुष्य को हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है ! इसलिए जो हो रहा है उसे होने दो यही ईश्वर की इच्छा है !
इस तरह से हताश निराश वनवासी समूह जब अपने कबीले के सरदार जटायु के पास गये ! तब जटायु ने रावण को ललकारा और महायुद्ध हुआ ! जिसमें जटायु घायल हो गए और रावण सीता का हरण करके लंका चला गया ! शेष कहानी आप लोगों को मालूम है !
अब प्रश्न यह है कि वही साधु-संत जिन्होंने सीता के हरण के समय आध्यात्मिक बातें करके सीता की मदद नहीं की थी ! वही भगवाधारी साधु-संत अब बड़े-बड़े मंचों पर बैठकर कथा वाचन करके हमें राम कथा सुनाते हैं और हमारे धन का हरण धर्म के नाम पर करते हैं !
यही इन वैष्णव साधु-संतों का वास्तविक चेहरा है ! किसी दोगले व्यक्तित्व के कारण आज हिंदू धर्म रसातल में जा रहा है ! इससे होशियार रहिए और अपने मेहनत के पैसे से पहले अपने परिवार का पोषण करिए !
धन माया नहीं है बल्कि संसार की अनिवार्य आवश्यकता है ! इसी धन से जीवन यापन का साधन है और इसी से बच्चों को उच्च शिक्षा दी जा सकती है ! इसलिए वैष्णव प्रपंचकारिर्यों के चक्कर में फंस अपने मेहनत से अर्जित संपत्ति को इन अवसरवादियों के पीछे नष्ट मत करिए ! यही आज का संदेश है !!