कैसे मस्ती और अय्याशी के अड्डे बने “धार्मिक अखाड़े” !! Yogesh Mishra

आदि गुरू शंकराचार्य का जन्म आठवीं शताब्दी के मध्य में हुआ था ! तब भारतीय जनमानस की धार्मिक दशा और दिशा अच्छी नहीं थी ! भारत की धन संपदा से खिंचे आक्रमणकारी यहाँ से खजाना लूट लूट कर ले जा रहे थे ! कुछ भारत की दिव्य आभा से मोहित होकर यहीं बस गए ! बौध धर्म का प्रभाव अपनी पराकाष्ठा पर था ! सनातन धर्म विलुप्त हो रहा था !

ऐसे में आदि गुरु शंकराचार्य ने सनातन धर्म की पुनः स्थापना के लिए कई कदम उठाये ! जिनमें से देश के चार कोनों पर–गोवर्धन पीठ, शारदा पीठ, द्वारिका पीठ और ज्योतिर्मठ पीठ की स्थापना की ! इसी दौरान उन्हें लगा कि समाज में धर्म विरोधी शक्तियां सिर उठा रही हैं, तो उनहोंने ऐसे मठों की स्थापित की कि जहां धर्म के साथ-साथ कसरत व हथियार चलाने का प्रशिक्षण भी दिया जाने लगा, ऐसे मठों को बाद में अखाड़ा कहा जाने लगा !

आम बोलचाल की भाषा में जहां पहलवान कसरत के दांवपेंच सीखते हैं उसे अखाड़ा कहते हैं ! कालांतर में कई और अखाड़े अस्तित्व में आये ! शंकराचार्य ने अखाड़ों को सुझाव दिया कि मठ, मंदिरों और श्रद्धालुओं की रक्षा के लिए जरूरत पड़े तो वह अपनी शक्ति का प्रयोग करें ! इस तरह बाहरी आक्रमणों के उस दौर में इन अखाड़ों ने धर्म के लिये एक सुरक्षा कवच का काम किया ! अखाड़ों के युद्ध का इतिहास वीरता से भरा है !

समय-समय पर इन अखाड़ों ने बौध, मुगलों और अंग्रेजों से मोर्चा लेने के लिए शस्त्र उठाये थे और कई निर्णायक युद्ध भी लड़ें ! अखाड़ा से जुड़े महंत, नागा और संन्यासियों ने प्राचीन तीर्थस्थलों एवं मंदिरों की रक्षा के लिए प्राणों की आहुतियां दी हैं ! इतिहास में ऐसे कई गौरवपूर्ण युद्धों का वर्णन मिलता है जिनमें बड़ी संख्या में नागा योद्धाओं ने हिस्सा लिया ! अहमद शाह अब्दाली द्वारा मथुरा-वृन्दावन के बाद गोकुल पर आक्रमण के समय नागा साधुओं ने उसकी सेना का मुकाबला करके गोकुल की रक्षा की थी ! धर्म ध्वजा अखाड़ा की पहचान होती है !

गौरतलब है कि अखाड़ों की दुकानदारी के चलन के कारण शैवों और वैष्णवों अखाड़ों में कालांतर से संघर्ष रहा है ! शाही स्नान के वक्त अखाड़ों की आपसी तनातनी और साधु-संप्रदायों के टकराव खूनी संघर्ष में बदलते रहे हैं ! वर्ष 1310 के महाकुंभ में महानिर्वाणी अखाड़े और रामानंद वैष्णवों के बीच हुए झगड़े ने खूनी संघर्ष का रूप ले लिया था ! वर्ष 1398 के अर्धकुंभ में तो तैमूर लंग के आक्रमण से कई जानें गई थीं ! वर्ष 1760 में अंग्रेजों के षडयंत्र के कारण शैव सन्यासियों और वैष्णव बैरागियों के बीच बड़ा संघर्ष हुआ था ! 1796 के कुंभ में भी शैव सन्यासी और निर्मल संप्रदाय आपस में पुनः भिड़ गए थे और आपसी संघर्ष के कारण धीरे-धीरे इन अखाड़ों की शक्ति क्षीण होने लगी !

वर्ष 1954 के कुंभ में मची भगदड़ के बाद सभी अखाड़ों ने मिलकर अखाड़ा परिषद का गठन किया ! विभिन्न धार्मिक समागमों और खासकर कुंभ मेलों के अवसर पर साधु संतों के झगड़ों और खूनी टकराव की बढ़ती घटनाओं से बचने के लिए “अखाड़ा परिषद” की स्थापना की गई ! वर्तमान में इन सभी अखाड़ों का संचालन लोकतांत्रिक तरीके से कुंभ महापर्व के अवसरों पर चुनाव के माध्यम से चुने गए पंच और सचिवगण करते हैं !

“अखाड़ा परिषद” के गठन के बाद भारत के संविधान में भारत को जब एक धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित किया गया तो भारतीय राजनेताओं के प्रभाव में इन अखाड़ों ने अपना सैन्य चरित्र त्याग दिया ! इन अखाड़ों के प्रमुख ने जोर दिया कि उनके अनुयायी भारतीय संस्कृति और दर्शन के सनातनी मूल्यों का अध्ययन और अनुपालन करते हुए संयमित जीवन व्यतीत करने पर ! देश में फिलहाल शैव सम्प्रदाय के सात, वैष्णव के तीन और उदासीन पंथ के तीन, अर्थात कुल 13 मान्यता प्राप्त अखाड़े हैं !

कालांतर में राजनेताओं की कृपा से इनमें कई राजनैतिक अखाड़ों का समावेश भी हो गया है ! वैसे वर्तमान में शैव संन्यासी संप्रदाय के अखाड़े-पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी, पंच अटल अखाड़ा, पंचायती अखाड़ा निरंजनी, तपोनिधि आनंद अखाड़ा, पंचदशनाम जूना अखाड़ा,पंचदशनाम आवाहन अखाड़ा, पंचदशनाम, पंच अग्नि अखाड़ा तथा बैरागी वैष्णव संप्रदाय के अखाड़ों में दिगम्बर अणि अखाड़ा,निर्वानी अणि अखाड़ा,पंच निर्मोही अणि अखाड़ा एवं उदासीन संप्रदाय के अखाड़ों में पंचायती बड़ा उदासीन अखाड़ा, पंचायती अखाड़ा नया उदासीन और निर्मल पंचायती अखाड़ा शामिल हैं !

उसी का परिणाम है कि धर्म के रक्षार्थ आदि गुरु शंकराचार्य ने जिन अखाड़ों की स्थापना की थी ! वह अब गांजा पीने और करतब दिखाने में व्यस्त हैं ! तभी तो आज आपको कैलाश मानसरोवर जाने के लिए नेपाल के माध्यम से जाना पड़ता है ! तीर्थ स्थानों पर विधर्मियों की दारू और मांस की मंडियां सजी हुई है ! सनातन संस्कृति के धर्म स्थल अब लव प्वाइंट और पर्यटन स्थलों के रूप में परिवर्तित हो गये हैं !

भगवान राम 28 वर्षों से त्रिपाल में बैठे हैं और सनातन धर्म के अनुयायियों का खुलेआम धर्मांतरण हो रहा है ! शासन सत्ता में बैठे हुए लोग विधर्मीयों से मत प्राप्त करने के लिये हिंदुओं के ऊपर निरंतर कानूनी हमला कर रहे हैं ! हिंदू समाज को धर्म और जाति के आधार पर खंड-खंड कर दिया गया है और यह सारे के सारे अखाड़े मात्र राजनैतिक सुविधा पाने के लिये मौन होकर अपनी मस्ती और अय्याशी में डूबे हुए हैं !

फिर भी सनातन धर्म के प्रतीक 13 अखाड़ों का वैभव सिर्फ कुंभ पर्व में ही नजर आता है ! अखाड़े के महंत, नागा संन्यासी हर किसी के आकर्षण का केंद्र होते हैं ! धूनी रमाए नागाओं की तपस्या और उनका अद्भुत करतब हर किसी को सम्मोहित करता है ! दुनियाभर के लोग उनकी रहस्यमयी जीवनशैली को जानना-समझना चाहते हैं !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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