धर्म किसी की रक्षा नहीं करता है जब तक कि …. ! Yogesh Mishra

भगवान उसी की रक्षा करता है जो भगवान के द्वारा बनाये गये नियमों पर चल कर उन नियमों के मर्यादा की रक्षा करता है ! आज हिंदू धर्म में कथावाचकों द्वारा एक भ्रांति फैला दी है कि भगवान को दान दक्षिणा आदि देने से वह आपकी रक्षा करता है और आपके सारे कार्य कर देता है !

क्योंकि उस दान दक्षिणा की आवश्यकता वास्तव में भगवान को नहीं है ! बल्कि मंदिरों के अंदर बैठे हुये उन पंडितों को है या उन कथावाचकओं को है ! जो भगवान के नियमों की गलत व्याख्या करके अपने कथा वाचन की दुकान चला रहे हैं !

उसका परिणाम यह है कि लोग 2 सड़े हुये केले जो मनुष्य के भी खाने लायक नहीं होते हैं ! उसको लेकर मंदिर पर पहुंच जाते हैं और भगवान के सामने रखकर कहते हैं कि हे ईश्वर मुझे संतान दे दे ! हे ईश्वर मेरा मकान बना दे ! हे ईश्वर मुझे पास करवा दे ! हे ईश्वर मेरी फला लड़की के साथ विवाह करा दे ! अरे भगवान भगवान है ! कोई घूसखोर अधिकारी नहीं ! जिसे सड़े हुये दो केले का प्रलोभन देकर तुम अपना वह कार्य करवा लेना चाहते हो ! जो नितांत पुरुषार्थ का विषय है !

वास्तव में भगवान एक ऊर्जा है ! एक दिव्य शक्ति है ! जो सृष्टि की व्यवस्था को संचालित करती है ! वह भगवान जो हममें और आपमें सब में मौजूद है ! यदि हमारे अपने कर्म सही हैं वह प्रकृति की व्यवस्था के अनुकूल हैं तो वह भगवान भी हमारी मदद करेगा !

लेकिन दुर्भाग्य है कि हम प्रकृति की व्यवस्था के अनुरूप कोई कार्य नहीं करना चाहते हैं ! हम चाहते हैं कि हमें सरकारी नौकरी मिल जाये वह भी बिना किसी परिश्रम के इसलिये कि वहां पर मेरे बेईमानी से पैसा कमाने की संभावना बहुत ज्यादा है ! हम चाहते हैं कि हमारे बच्चों का विवाह फलक घर में हो जाये क्योंकि उस घराने के पास संपत्ति बहुत ज्यादा है ! हम चाहते हैं कि हमारा बच्चा विदेश चला जाये, वहां नौकरी करे क्योंकि वहां पर पैसे कमाने की अकूत संभावनाऐ है !

अरे मूर्खों भगवान इस सब कार्य के लिये नहीं बना है ! यह नितांत पुरुषार्थ और प्रारब्ध का विषय है ! आज जो प्रकृति में सदियों से सूर्य अपने समय से उदित होता है और अस्त होता है ! चंद्रमा जो तिथि अनुसार अपने बढ़ते हुये क्रम से अपना आकार बदलते है ! ऋतुयें बदलती है ! भोजन के लिये अन्न पैदा होता है ! यह सब ईश्वरीय व्यवस्था का अंग है ! वह जो इतनी बड़े सिस्टम को संचालित कर रहा है ! उससे तुम क्या कहते हो कि तुम्हारे गाय के बछड़ा की जगह बछिया हो जाये तो तुम उसे घूंस में एक नारियल चढाओगे और अगर भगवान ऐसा नहीं करता है ! तो तुम उस भगवान से नाराज हो जाते हो !

अरे भगवान से खुश या नाराज होने के पहले समझो कि भगवान माने क्या होता है ! भगवान श्रीराम का उदाहरण लो जिन्होंने वनवास के दौरान रावण द्वारा अपनी पत्नी के हरण कर लिये जाने के बाद बिना किसी संसाधन के वहां के क्षेत्रीय लोगों से संवाद और व्यवहार बना कर उन्हें अपनी तरफ जोड़कर एक इतनी बड़ी फौज बनाई कि पूरे विश्व में जिस रावण का शासन था ! उसका समूल वंश नाश कर दिया ! ठीक इसी तरह पांडव को बार-बार वनवास भोगने के बाद भी जब दुर्योधन सुई की नोक के बराबर उन्हें उनकी पैतृक संपत्ति में हिस्सा देने को मना कर दिया तो उस संसाधन विहीन अवस्था में जिस तरह पांडव लोगों ने अपने पैतृक संपत्ति में अधिकार प्राप्त करने के लिये धृतराष्ट्र जैसे सशक्त शासक के विरुद्ध एक बड़ी सेना खड़ी की और उस सेना के द्वारा धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों का विनाश करके अपने उस अधिकार को प्राप्त किया जो उनकी पैतृक संपत्ति में उनका अधिकार था ! वह पलायन करके भागे नहीं ! भगवान श्री कृष्ण ने भी पांडवों की मदद तब की ! जब पांडव मानसिक और शारीरिक रूप से अपने अधिकारों की रक्षा के लिये युद्ध करने को तैयार थे

अर्थात कहने का तात्पर्य यह है कि धर्म किसी की रक्षा नहीं करता ! बल्कि यदि हम धर्म के मर्यादाओं की रक्षा करेंगे ! तब ही धर्म हमारी रक्षा करेगा और यदि हम धर्म को व्यवसाय बनायेगे तो वही धर्म हमारे विनाश का कारण होगा ! उस धर्म के व्यवसाय की अग्नि में आप ही नहीं बल्कि संपूर्ण समाज और राष्ट्र जलकर नष्ट हो जायेगा !

जो आज वास्तव में हो रहा है इसलिये आडम्बरी नहीं बल्कि वास्तविक धार्मिक बनो और धार्मिक बनने की पहली शर्त यह है कि पराक्रमी बनो, पुरुषार्थी बनो और धर्म के जो सिद्धांत बताये गये हैं ! उससे डिगो नहीं बल्कि उन सिद्धांतों की स्थापना के लिये पूरे पुरुषार्थ के साथ प्रयास करो ! संसाधन विहीन अवस्था में भी प्रयास करो ! तभी तुम धर्म के निर्देश पर इस दुरव्यवस्था को बदल सकते हो और धर्म को पुनः स्थापित कर सकते हो ! कोई भी मध्य मार्ग नहीं है ! किसी भी भगवान, अवतार या ईश्वर के भरोसे रह कर जो व्यक्ति अपना जीवन यापन करता हैं ! अंत में उनका सर्वनाश ही होता है ! उसके हाथ कुछ भी नहीं लगता है ! ईश्वर में आस्था रखो ! ईश्वर के सहयोग से धर्म की रक्षा के लिये पूरा प्रयास करो ! अपना तन, मन, प्राण तीनों धर्म के रक्षार्थ लगा दो और संसाधन विहीन अवस्था में भी धर्म के पक्ष में खड़े रहो ! तब ही धर्म तुम्हारी रक्षा करेगा !

जैसे यातायात में आपको कोई क्षति न हो ! इसके लिये शासन सत्ता द्वारा कुछ नियम बने गये हैं ! यदि आप उन नियमों का पालन करते हैं ! तो निश्चित रूप से वह नियम आपकी रक्षा करेंगे ! लेकिन यदि आप हठधर्मिता के कारण उन नियमों का पालन नहीं करते हैं ! तो उस स्थिति में आज नहीं तो कल आप निश्चित रूप से यातायात नियमों की अवहेलना करने के कारण क्षतिग्रस्त होंगे और आपकी जान भी जा सकती है !

ठीक इसी तरह हमारे ऋषियों मुनियों ने धर्म के नाम से समाज के संचालन के लिये कुछ नियमों को बनाया है ! यदि हम समाज में रहते हुये उन नियमों की मर्यादाओं का पालन करते हैं तो वह धर्म हमारी और समाज दोनों की रक्षा करेगा और यदि हम धर्म द्वारा स्थापित उन नियमों का पालन हठधर्मिता के कारण नहीं करते हैं ! तो आज नहीं तो कल निश्चित रूप से हम, हमारा समाज और हमारा राष्ट्र यह तीनों ही नष्ट हो जायेंगे !

इसीलिए मैं कह रहा हूं कि धर्म किसी की रक्षा नहीं करता है ! जब तक की हम धर्म के द्वारा स्थापित नियमों के मर्यादाओं का पालन नहीं करते हैं ! इसी को शास्त्र में कहा गया है !

धर्म एव हतो हन्ति, धर्मो रक्षति रक्षितः।
तस्माद्धर्मो न हन्तव्यो मा नो धर्मो हतोऽवधीत्।। (मनुस्मृति 8/15)

अर्थात: धर्म का लोप कर देने से वह धर्म लोप करने वालों का नाश कर देता है और रक्षित किया हुआ धर्म रक्षक की रक्षा करता है ! इसलिए धर्म का हनन कभी नहीं करना चाहिये ! जिससे नष्ट हुआ धर्म कहीं हमको भी समाप्त न कर दे !

इस तरह यदि तुम धर्म से रक्षा चाहते हो तो पहले तुम उस धर्म की रक्षा करो ! अर्थात धर्म के मर्यादा का पालन करो !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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