विज्ञान की द्रष्टि में भैरव तंत्र : Yogesh Mishra

विज्ञान का अर्थ है चेतना ! भैरव का अर्थ वह अवस्था है ! जो चेतना से भी परे है और तंत्र का अर्थ विधि है ! चेतना के पार जाने की विधि ! हम मूर्छित हैं ! अचेतन हैं ! इसलिये सारी धर्म-देशना अचेतन के ऊपर उठने की; चेतन होने की देशना है ! विज्ञान का मतलब है चेतना ! और भैरव एक विशेष शब्द है ! तांत्रिक शब्द ! जो पारगामी के लिये कहा गया है ! इसलिये शिव को भैरव कहते हैं और देवी को भैरवी- वह जो समस्त द्वैत के पार चले गये हैं !

शिव के उत्तर में केवल विधियाँ हैं ! सबसे पुरानी ! सबसे प्राचीन विधियाँ ! लेकिन ! तुम उन्हें अत्याधुनिक भी कह सकते हो ! क्योंकि उनमें कुछ भी जोड़ा नहीं जा सकता ! वह 112 विधियाँ पूर्ण हैं ! उनमें सभी संभावनाओं का समावहश है ! मन को शुद्ध करने के ! मन के अतिक्रमण के सभी उपाय उनमें समायह हुयह हैं और यह ग्रंथ विज्ञान भैरव तंत्र 15 हजार वर्ष से अधिक पुराना है !

तंत्र कहता है कि तुम आदमी को बदलाहट की प्रामाणिक विधि के बिना नहीं बदल सकते ! मात्र उपदेश से कुछ नहीं बदलता ! पूरी जमीन पर यही हो रहा है ! इतने उपदेश ! इतनी नैतिक शिक्षा..पृथ्वी उनसे पटी है ! और फिर भी सब कुछ इतना अनैतिक है! इतना कुरूप है ! ऐसा क्यों हो रहा है ?

उसमें कुछ भी नहीं जोड़ा जा सकता ! कुछ जोड़ने की गुंजाइश ही नहीं है ! यह सर्वांगीण है ! संपूर्ण है ! अंतिम है ! यह सबसे प्राचीन है और साथ ही सबसे आधुनिक व सबसे नवीन ध्यान की इन 112 विधियों से मन के रूपांतरण का पूरा विज्ञान निर्मित हुआ है ! यह विधियाँ किसी धर्म की नहीं हैं ! वह ठीक वैसे ही हिंदू नहीं हैं ! जैसे सापेक्षितवाद का सिद्धांत आइंस्टीन के द्वारा प्रतिपादित होने के कारण यहूदी नहीं हो जाता !

रेडियो और टेलीविजन ईसाई नहीं हैं ! कोई नहीं कहता कि बिजली ईसाई है ! क्योंकि ईसाई मस्तिष्क ने उसका आविष्कार किया है ! विज्ञान किसी वर्ण या धर्म का नहीं है ! और तंत्र विज्ञान है ! तंत्र धर्म नहीं ! विज्ञान है ! इसीलिये किसी विश्वास की जरूरत नहीं है ! प्रयोग करने का महासाहस पर्याप्त है !तंत्र बहुत माना-जाना नहीं है ! यदि माना-जाना है भी तो बहुत गलत समझा गया है ! उसके कारण हैं जो विज्ञान जितना ही ऊँचा और शुद्ध होगा उतना ही कम जनसाधारण उसे समझ पाता है !

हमने सापेक्षतावाद के सिद्धांत का नाम सुना है ! कहा जाता था कि आइंस्टीन के जीतेजी केवल 12 व्यक्ति उसे समझते थे ! यही कारण है कि जनसाधारण तंत्र को नहीं समझा ! और यह सदा होता है कि जब तुम किसी चीज को नहीं समझते हो तो उसे गलत जरूर समझते हो ! क्योंकि तुम्हें लगता है कि तुम समझते जरूर हो !दूसरी बात कि जब तुम किसी चीज को नहीं समझते हो ! तुम उसे गाली देने लगते हो ! यह इसलिये कि यह तुम्हें अपमानजनक लगता है ! तुम सोचते हो मैं और नहीं समझूँ यह असंभव है !

तीसरी बात कि तंत्र द्वैत के पार जाता है ! इसलिये उसका दृष्टिकोण अतिनैतिक है ! कृपा कर इन शब्दों को समझें- नैतिक ! अनैतिक ! अति नैतिक ! नैतिक क्या है ! हम समझते हैं; अनैतिक क्या है ! वह भी हम समझते हैं ! लेकिन जब कोई चीज अतिनैतिक हो जाती है ! नैतिक-अनैतिक दोनों के पार चली जाती है ! तब उसे समझना कठिन हो जाता है ! तंत्र अतिनैतिक है !ऐसे समझो ! औषधि अति नैतिक है ! वह न नैतिक है ! न अनैतिक ! चोर को दवा दो तो उसे लाभ पहुँचाएगी ! संत को दो तो उसे भी लाभ पहुँचाएगी ! वह चोर और संत में भेद नहीं करेगी ! दवा वैज्ञानिक है ! तुम्हारा चोर या संत होना उसके लिये अप्रासंगिक है !

तंत्र तो वैज्ञानिक विधि बताता है कि चित्त को कैसे बदला जाए ! और एक बार चित्त दूसरा हुआ कि तुम्हारा चरित्र दूसरा हो जाएगा ! एक बार तुम्हारे ढाँचे का आधार बदला कि पूरी इमारत दूसरी हो जाएगी !यह 112 विधियाँ तुम्हारे लिये चमत्कारिक अनुभव बन सकती हैं ! शिव ने यह विधियाँ प्रस्तावित की हैं ! इसमें सभी संभव विधियाँ हैं ! यह विधियाँ समस्त मानव जाति के लिये हैं ! और वह उन सभी युगों के लिये हैं जो गुजर गये हैं ! और जो आने वाले हैं ! प्रत्येक ढंग के चित्त के लिये यहाँ गुंजाइश है !

तंत्र में प्रत्येक किस्म के चित्त के लिये विधि है ! कई विधियाँ हैं ! जिनके उपयुक्त मनुष्य अभी उपलब्ध नहीं हैं ! वह भविष्य के लिये हैं ! ऐसी विधियाँ भी हैं ! जिनके उपयुक्त लोग रहे नहीं ! वह अतीत के लिये हैं !अनेक विधियाँ हैं ! जो तुम्हारे लिये ही हैं !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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