जिसके अंदर कोई गहराई नहीं, उसे ही बाहर अपने विस्तार हेतु आडंबर की आवश्यकता है ! आडंबर भी विस्तार का ही एक रूप है !
दुनिया में सबसे कठिन का “यथास्थित” में स्थिर हो जाना है ! इसी को सहज योग कहा गया है ! प्रायः दुनिया में बड़े-बड़े योगी, तपस्वी, सन्यासी, दार्शनिक, चिंतनसील लोग अपने को आडंबर से नहीं बचा पाते हैं !
श्वेतांबर, पीतांबर, भगवा वस्त्र या नग्न घूमना भी आडंबर का ही अंग है ! अंदर से जो व्यक्ति “स्व” की गहराई में उतर चुका है, उसे बाहर का कोई भी विशेष वस्त्र अपनी पहचान के लिए पहनने की आवश्यकता नहीं है !
इस दुनिया में जितने भी लोग भभूत लगाकर, जटा बढ़ाकर, कपाल, त्रिशूल, डमरु, आदि लेकर घूम रहे हैं ! यह सभी आत्म साधना में अंदर से खोखले हैं !
इसीलिए जरा से कटाक्ष इनका अहंकार जाग जाता है ! यह सभी तथाकथिक धार्मिक लोग आडंबरी ही नहीं विलासिता पसंद भी होते हैं !
कहने को तो इन्होंने संसार छोड़ दिया किंतु फिर भी इसी संसार में अपनी आय बढ़ाने के लिये या अपने आश्रम का आकार बढ़ाने में और शिष्यों की संख्या बढ़ाने में यह लोग लगे रहते हैं !
यह लोग मूलतः आध्यात्मिक व्यक्ति नहीं बल्कि धार्मिक व्यवसाई हैं, जो धार्मिक आडंबर के द्वारा समाज का शोषण करना चाहते हैं !
आज दुनिया में जितने भी भंडारे, विद्यालय, अस्पताल आदि चल रहे हैं ! यह सभी “स्व” के विस्तार के लिये चल रहे हैं ! इनको चलाने वाले किसी में आत्म उत्थान या लोक कल्याण का भाव नहीं है !
आत्म उत्थान नितांत व्यक्तिगत साधना का विषय है ! इसके लिये किसी भी विलासिता या बाह्य आडम्बर की आवश्यकता नहीं है ! आत्म उत्थान का जिज्ञासु व्यक्ति सदैव स्व में स्थिर होकर साधना करता है !
सृष्टि के सारे सुख और दुख उसके स्व में ही स्थिर हैं ! जिन से परे जाकर में वह साधक आनंद की प्राप्ति करता है !
या दूसरे शब्दों में कहा जाये तो आनंद व्यक्ति को स्व में ही प्राप्त हो