क्या आपने कभी विचार किया कि मंदिरों में स्थापित शिव लिंग की बिटिया “ऊर्ध्व दिशा” के रूप में सीधी आकाश की ओर खड़ी क्यों होती है और वैष्णव लिंग अर्थात सामान्य बोलचाल की भाषा में “शालिग्राम” की बिटिया लेटी हुई अवस्था में क्यों होती है ?
“लिंग” का तात्पर्य शास्त्रों में चिन्ह, प्रतीक होता है ! जैसे पुर्लिंग, स्त्री लिंग, उभय लिंग आदि आदि !
असल में यह दोनों ही दो अलग-अलग उपासना पद्धतियां की प्रतीक हैं और अपनी अपनी उपासना पद्धतियों के परिणामों को बतलाती हैं ! शिवलिंग जो “ऊर्ध्व दिशा” की तरफ सीधी खड़ी होती है ! वह यह बतलाती है कि यदि भगवान शिव की उपासना की जाएगी तो इससे व्यक्ति का आत्म उत्थान होगा और व्यक्ति शीघ्र ही प्रकृति की ईश्वरीय शक्तियों से जुड़ जायेगा !
इस तरह प्रकृति की ईश्वरीय शक्तियों से जुड़े हुये व्यक्ति में सांसारिक रूप से बहुत परिवर्तित नहीं दिखेगा, लेकिन साधना और तप के द्वारा वह ऐसी ईश्वरीय शक्तियों को प्राप्त कर लेगा, जिससे उसका आत्मा विकास और आत्म कल्याण होगा !
अर्थात शिव उपासना “ऊर्ध्व उपासना” अर्थात वर्टिकल ऊर्जा की उपासना है ! जिसमें सांसारिक सफलता कम दिखाई देती है लेकिन व्यक्ति का आत्म उत्थान हो जाता है और वह व्यक्ति ईश्वरीय ऊर्जा के निकट पहुंच जाता है !
इसीलिए भगवान शिव को सदैव कम वस्त्रों में बैठे हुये ध्यान अवस्था में ही दिखायी देता हैं, जोकि संसार की भीड़ भाड़ से दूर हैं ! अर्थात सांसारिकता से दूर तपोबल से ईश्वरी ऊर्जा के सन्निकट जाने के लिए शिव उपासना ही श्रेष्ठ है !
इसके विपरीत वैष्णव लिंग अर्थात शालिग्राम की बिटिया सदा लेटी हुई अवस्था में रहती है ! वह इस बात को इंगित करती है कि वैष्णव उपासकों को सांसारिक विषयों में सफलता और संपन्नता शीघ्र ही प्राप्त होती है ! तभी वैष्णव के जितने भी अवतार हैं वह सभी सांसारिक सफलता का प्रतीक “मुकुट” धारण करते हैं और शासन के प्रति “सिंहासन” पर विराजमान होते हैं ! इसीलिए वैष्णव अवतार राम कृष्ण किसी न किसी नगर या राज्य के स्वामी होते हैं !
वैष्णव लिंग यह बताता है कि इसकी उपासना करने से व्यक्ति का “क्षैतिज विकास” होरिजेंटल विकास होता है अर्थात संसार के अंदर जो भी वस्तुएं दिखाई दे रही हैं, उनका विस्तार होता है !
यदि भवन है तो वह बड़ा या संख्या में अधिक हो जाएगा ! यदि वाहन है तो उसका भी आकार बड़ा हो जाएगा या उसकी भी संख्या बड़ जाएगी ! व्यापार, व्यवसाय, कृषि आदि जो भी व्यक्ति कर रहा है उसमें उसे सांसारिक सफलता प्राप्त होगी इसलिए यदि आपको सांसारिक सफलता प्राप्त करनी हो तो आप वैष्णव उपासना पद्धति का अनुकरण करें !
इसीलिए आप देखिये वैष्णव उपासना पद्धति में सबसे ज्यादा जोर इस बात पर दिया जाता है कि यदि आप भगवान विष्णु की “सत्यनारायण की कथा” सुने या राम और कृष्ण का पूजन करें ! तो आपके सारे सांसारिक कष्ट समाप्त हो जाएंगे !
जिस तरह राम ने बाली को मार कर सुग्रीव को बालि का राज्य दे दिया ! रावण को मारकर विभीषण को रावण का राज्य दे दिया ! ठीक उसी तरह यदि आप राम की उपासना करेंगे तो भगवान राम आप के शत्रुओं का विनाश करके आपको अथाह संपत्ति दे देंगे !
इसी तरह यदि आप भगवान श्री कृष्ण की आराधना करते हैं तो जिस तरह भगवान श्री कृष्ण ने निर्बल असहाय पांडवों कि मदद करके सशक्त कौरवों का समूल नाश कर उनका राज्य पाठ पांडवों को दिला दिया या निर्बल असहाय, दरिद्र ब्राह्मण सुदामा की दरिद्रता दूर कर दी ! ठीक उसी तरह भगवान श्री कृष्ण की आराधना करने वाले भक्तों की दरिद्रता का भगवान श्री कृष्ण समूल नाश कर देते हैं !
अर्थात दूसरे शब्दों में कहा जाये तो शिव उपासना ईश्वरी ऊर्जा को प्राप्त करने के लिये है और वैष्णव उपासना सांसारिक सफलता को प्राप्त करने के लिये है !