शैव जीवन शैली ही अनादि है और अनन्त है ! : Yogesh Mishra

वैष्णव जीवन शैली लाखों वर्ष बाद विकसित हुई और उसने विश्व पर शैव जीवन शैली को प्रतिस्थापित कर शासन किया !

शिव भक्ति के विषय में प्रारंभिक जानकारी सिंधुघाटी से प्राप्त होती है ! ऋग्वेद में शिव से साम्य रखने वाले देवता को रुद्र कहा गया है ! महाभारत में शिव का उल्लेख एक श्रेष्ठ देवता के रूप में हुआ है !

दक्षिण भारत में शैव धर्म का प्रचार नयनार या आडियार संतों द्वारा किया गया, यह संस्था में 63 थे ! इनके श्लोकों के संग्रह को तिरुमुडै कहा जाता है ! जिसका संकलन नम्बि – अण्डाल – नम्बि ने किया !

इस सम्प्रदाय के अनुयायियों को पंचार्थिक कहा गया ! इस मत के प्रमुख सैद्धांतिक ग्रंथ पाशुपतसूत्र हैं !

शैव सम्प्रदायों का प्रथम उल्लेख पतंजलि के महाभाष्य में शिव भागवत नाम से हुआ !

शैव धर्म ( एक सम्प्रदाय के रूप में ) का प्रारंभ शुंग – सातवाहन काल से हुआ ! जो गुप्त काल में चरम सीमा तक पहुँच गया था ! अर्द्धनारीश्वर तथा त्रिमूर्ति (ब्रह्मा, विष्णु , महेश शिव ) की पूजा गुप्त काल में आरंभ हुई ! समन्वय की यह उदार भावना गुप्त काल की विशेषता है ! अर्द्धनारीश्वर की मूर्ति शिव तथा पार्वती के परस्पर तादात्म्य पर आधारित थी ! ऐसी पहली मूर्ति का निर्माण गुप्तकाल में हुआ !

लिंग पूजा का प्रथम स्पष्ट उल्लेख मत्स्य पुराण में हुआ है ! महाभारत के अनुशासन पर्व में भी लिंगोपासना का उल्लेख है ! हरिहर के रूप में शिव की विष्णु के रूप में सर्वप्रथम मूर्तियां गुप्त काल में बनायी गई ! शिव की प्राचीनतम मूर्ति गुडीमल्लम लिंग रेनगुंटा से मिली है !

कौषितकी तथा शतपथ ब्राह्मण में शिव के 8 रूपों का उल्लेख है – चार संहारक के रूप में तथा चार सौम्य रूप में ! शैव सम्प्रदायों का प्रथम उल्लेख पतंजलि के महाभाष्य में शिव भागवत नाम से हुआ ! कश्मीरी शैव शुद्ध रूप से दार्शनिक तथा ज्ञानमार्गी था ! इसके कापालिकों के घृणित क्रिया कलापों की निन्दा की गई है ! वसुगुप्त इसके संस्थापक थे ! शिव को उन्होंने अद्वैत कहा है !

वामन पुराण में शैव सम्प्रदाय की संख्या चार बतायी गई है जो निम्न लिखित हैं-
1. शैव
2. पाशुपत
3. कापालिक
4. कालामुख

शैव सम्प्रदाय के अनुसार इस संप्रदाय के कर्त्ता शिव हैं, कारण शक्ति तथा उपादान बिंदु हैं ! इस मत के चार पाद या पाश (बंधन) हैं- विद्या, क्रिया, यौग तथा चर्या ! तीन पदार्थ हैं – पति, पशु, पाश !

1. शैव लिंगायत सम्प्रदाय-
दक्षिण भारत में (कर्नाटक) भी शैव धर्म का विस्तार हुआ ! इस धर्म के उपासक दक्षिण में लिंगायत या जंगम कहे जाते थे ! बसव पुराण में इस सम्प्रदाय के प्रवर्तक अल्लभप्रभु एवं उनके शिष्य बसव का उल्लेख मिलता है !

2. पाशुपत सम्प्रदाय-
यह सम्प्रदाय शैव मत का सबसे पुराना सम्प्रदाय है ! इसके संस्थापक लकुलीश या नकुलीश थे, जिन्हें भगवान शिव के 18 अवतारों में से एक माना जाता है ! इस सम्प्रदाय के अनुयायियों को पंचार्थिक कहा गया है ! इस मत के प्रमुख सैद्धांतिक ग्रंथ पाशुपत सूत्र हैं ! पाशुपत सम्प्रदाय का गुप्त काल में अत्यधिक विकास हुआ ! इसके सिद्धांत के तीन अंग हैं- पति(स्वामी), पशु (आत्मा), पाश (बंधन) पशुपति के रूप में शिव की उपासना की जाती थी !

3. कापालिक सम्प्रदाय-
कापालिकों के इष्टदेव भैरव थे ! जो शंकर का अवतार माने जाते थे ! यह सम्प्रदाय अत्यंत भयंकर और आसुर प्रवृत्ति का था ! इसमें भौरव को सुरा और नरबलि का नौवेद्य चढाया जाता था ! इस सम्प्रदाय का मुख्य केन्द्र श्री शैल नामक स्थान था जिसका प्रमाण भवभूति के मालतीमाधव में मिलता है !

4. कालामुख सम्प्रदाय-
इस सम्प्रदाय के अनुयायी कापालिक वर्ग के होते थे, किन्तु वे उनसे भी अधिक अतिवादी तथा प्रकृति वादी थे ! शिव पुराण में उन्हें महाब्रतधर कहा गया है ! इस सम्प्रदाय के अनुयायी नर- कपाल में भोजन, जल तथा सुरापान करते थे ! शरीर पर भस्म लगाते थे !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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