कभी सम्पूर्ण विश्व शैव उपासक भी रहा है ! Yogesh Mishra

यह गलत अवधारण है कि पूरा विश्व सदैव से मात्र वैष्णव उपासक ही रहा है ! जबकि सत्य यह है कि वैष्णव उपासना के पूर्व पूरे विश्व में मात्र शैव उपासना ही होती थी ! वैष्णव उपासक क्षत्रियों ने जब वैष्णव उपासना की स्थापना का प्रयास शुरू किया था, तब शैव उपासकों ने इसका जम कर विरोध किया था ! अकेले परशुराम ने 21 बार पूरी पृथ्वी पर क्षत्रिय वैष्णव उपासक राजाओं का विरोध किया था !

परशुराम के संस्कृतिक उतराधिकारी रहे रावण का तो राम से युद्ध ही शैव शासकों को सदैव के लिये समाप्त करने के उद्देश्य से वैष्णव उपासक देव राजाओं के राजा इन्द्र द्वारा करवाया गया था ! यही वजह है कि आज तक शैव अलग तिथियों को त्यौहार मानते हैं तो वही त्यौहार वैष्णव अलग तिथि को मानते हैं !

शिव का अर्थ ‘परम कल्याणकारी शुभ’ और ‘लिंग’ का अर्थ है- ‘सृजन ज्योति’ ! वेदों और वेदांत में ‘लिंग’ शब्द सूक्ष्म शरीर के लिए आता है ! यह सूक्ष्म शरीर 17 तत्वों से बना होता है ! 1. मन, 2. बुद्धि, 3. पांच ज्ञानेन्द्रियां, 4. पांच कर्मेन्द्रियां और पांच वायु ! भृकुटी के बीच स्थित हमारी आत्मा या कहें कि हम स्वयं भी इसी तरह हैं !

शिवलिंग का विन्यास : शिवलिंग के 3 हिस्से होते हैं ! पहला हिस्सा जो नीचे चारों ओर भूमिगत रहता है ! मध्य भाग में आठों ओर एक समान बैठक बनी होती है ! अंत में इसका शीर्ष भाग, जो कि अंडाकार होता है जिसकी पूजा की जाती है ! इस शिवलिंग की ऊंचाई संपूर्ण मंडल या परिधि की एक तिहाई होती है !

ये 3 भाग ब्रह्मा (नीचे), विष्णु (मध्य) और शिव (शीर्ष) का प्रतीक हैं ! शीर्ष पर जल डाला जाता है, जो नीचे बैठक से बहते हुए बनाए गए एक मार्ग से निकल जाता है ! शिव के माथे पर 3 रेखाएं (त्रिपुंड) और 1 बिन्दु होती हैं, ये रेखाएं शिवलिंग पर भी समान रूप से अंकित होती हैं !

सभी शिव मंदिरों के गर्भगृह में गोलाकार आधार के बीच रखा गया एक घुमावदार और अंडाकार शिवलिंग के रूप में नजर आता है ! प्राचीन ऋषि और मुनियों द्वारा ब्रह्मांड के वैज्ञानिक रहस्य को समझकर इस सत्य को प्रकट करने के लिए विविध रूप में इसका स्पष्टीकरण दिया गया है !

शिवलिंग भगवान शिव की रचनात्मक और विनाशकारी दोनों ही तरह की पवित्र शक्तियों को प्रदर्शित करता है ! हालांकि कुछ लोग दुर्भाग्यपूर्ण तरीके से इसका गलत अर्थ निकालते हैं ! उनके अनुसार यह स्त्री और पुरुष के गुप्तांगों का प्रतीक है, जबकि शिवपुराण के अनुसार यह ज्योति का प्रतीक है !

‘लिंग’ का अर्थ ज्योति और शिव का अर्थ शुभ ! ‘शिवलिंग’ का अर्थ है- भगवान शिव का आदि-अनादि स्वरूप ! शून्य, आकाश, अनंत, ब्रह्मांड और निराकार परमपुरुष का प्रतीक होने से इसे ‘लिंग’ कहा गया है !

शिवलिंग को शिश्न के रूप में भगवान शिव का प्रतिनिधित्व मानना या प्रचलित करना हास्यापद है ! स्वामी विवेकानंद ने भी इसे अनंत ब्रह्म रूप में जाना ! शिवलिंग का आकार-प्रकार ब्रह्मांड में घूम रही हमारी आकाशगंगा की तरह है ! यह शिवलिंग हमारे ब्रह्मांड में घूम रहे पिंडों का प्रतीक है !

वेदानुसार ज्योतिर्लिंग यानी ‘व्यापक ब्रह्मात्मलिंग’ जिसका अर्थ है ‘व्यापक प्रकाश’ ! शिवपुराण के अनुसार ब्रह्म, माया, जीव, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी को ज्योतिर्लिंग या ज्योति पिंड कहा गया है !

स्कंदपुराण में कहा गया है कि आकाश स्वयं लिंग है ! धरती उसका पीठ या आधार है और सबके अनंत शून्य से पैदा होकर उसी में लय होने के कारण इसे ‘लिंग’ कहा गया है ! वातावरण सहित घूमती धरती या सारे अनंत ब्रह्मांड (ब्रह्मांड गतिमान है) का अक्स/धुरी ही लिंग है !

शिवलिंग को नाद और बिंदु का प्रतीक माना जाता है ! पुराणों में इसे ज्योतिर्बिंदु कहा गया है ! पुराणों में शिवलिंग को कई अन्य नामों से भी संबोधित किया गया है, जैसे प्रकाश स्तंभ लिंग, अग्नि स्तंभ लिंग, ऊर्जा स्तंभ लिंग, ब्रह्मांडीय स्तंभ लिंग आदि ! लेकिन बौद्धकाल में धर्म और धर्मग्रंथों के बिगाड़ के चलते लिंग को गलत अर्थों में लिया जाने लगा, जो कि आज तक प्रचलन में है !

पुरातात्विक निष्कर्षों के अनुसार प्राचीन शहर मेसोपोटेमिया और बेबीलोन में भी शिवलिंग की पूजा किए जाने के सबूत मिले हैं ! इसके अलावा मोहन-जोदड़ो और हड़प्पा की विकसित संस्कृति में भी शिवलिंग की पूजा किए जाने के पुरातात्विक अवशेष मिले हैं !

सभ्यता के आरंभ में लोगों का जीवन पशुओं और प्रकृति पर निर्भर था इसलिए वह पशुओं के संरक्षक देवता के रूप में पशुपति की पूजा करते थे ! सैंधव सभ्यता से प्राप्त एक सील पर तीन मुंह वाले एक पुरुष को दिखाया गया है जिसके आस-पास कई पशु हैं ! इसे भगवान शिव का पशुपति रूप माना जाता है !

ईसा से 2300-2150 वर्ष पूर्व सुमेरिया, 2000-400 वर्ष पूर्व बेबीलोनिया, 2000-250 ईसापूर्व ईरान, 2000-150 ईसा पूर्व मिस्र (इजिप्ट), 1450-500 ईसा पूर्व असीरिया, 1450-150 ईसा पूर्व ग्रीस (यूनान), 800-500 ईसा पूर्व रोम की सभ्यताएं विद्यमान थीं ! उक्त सभी से पूर्व महाभारत का युद्ध लड़ा गया था ! इसका मतलब कि 3500 ईसापूर्व भारत में एक पूर्ण विकसित सभ्यता थी !

आयरलैंड के तारा हिल में स्थित एक लंबा अंडाकार रहस्यमय पत्थर रखा हुआ है, जो शिवलिंग की तरह ही है ! इसे भाग्यशाली पत्थर कहा जाता है ! फ्रांसीसी भिक्षुओं द्वारा 1632-1636 ईस्वी के बीच लिखित एक प्राचीन दस्तावेज के अनुसार इस पत्थर को 4 अलौकिक लोगों द्वारा स्थापित किया गया था ! काबा में शिव : ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार विक्रम संवत के कुछ सहस्राब्‍दी पूर्व संपूर्ण धरती पर उल्कापात का अधिक प्रकोप हुआ ! आदिमानव को यह रुद्र (शिव) का आविर्भाव दिखा !

जहां-जहां ये पिंड गिरे, वहां-वहां इन पवित्र पिंडों की सुरक्षा के लिए मंदिर बना दिए गए ! इस तरह धरती पर हजारों शिव मंदिरों का निर्माण हो गया ! उनमें से प्रमुख थे 108 ज्योतिर्लिंग ! शिवपुराण के अनुसार उस समय आकाश से ज्‍योति पिंड पृथ्‍वी पर गिरे और उनसे थोड़ी देर के लिए प्रकाश फैल गया ! इस तरह के अनेक उल्का पिंड आकाश से धरती पर गिरे थे ! कहते हैं कि मक्का का संग-ए-असवद भी आकाश से गिरा था !

साउथ अफ्रीका की सुद्वारा नामक एक गुफा में पुरातत्वविदों को महादेव की 6,000 वर्ष पुरानी शिवलिंग की मूर्ति मिली जिसे कठोर ग्रेनाइट पत्थर से बनाया गया है ! इस शिवलिंग को खोजने वाले पुरातत्ववेत्ता हैरान हैं कि यह शिवलिंग यहां अभी तक सुरक्षित कैसे रहा है !!

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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