भारतीय मानसिक गुलामों की विशेष प्रजाति : Yogesh Mishra

यह लेख मोदी की तारीफ में नहीं बल्कि नरेन्द्र मोदी जी के माध्यम से पश्चिमी संस्कृति से प्रभावित भारतीय मानसिक गुलामों की विशेष प्रजाति के मानसिक स्थिती का वैचारिक विश्लेषण है ! जो मोदी ही नहीं कोई भी सनातन राष्ट्रवादी सोच के व्यक्ति के विरोधी वर्ग के लोग हैं ! जिनका एक मात्र उद्देश्य भारतीय सनातन संस्कृति का विरोध करना है ! विरोध का प्रतीक मोदी हों या कोई और हो !

देश में मोदी सरकार के पुन: गठन के बाद से एक विशेष श्रेणी के लोगों में अपने अस्तित्व को प्रकट करने की होड़ मची हुई दिखाई दे रही है ! यह अंग्रेज़ों और अंग्रेज़ी के ‘मानसिक गुलामों’ की श्रेणी है ! ‘मानसिक गुलाम’ वह स्वाभिमान-शून्य लोग होते हैं, जिन्हें अपना इतिहास, अपनी भाषा, अपनी संस्कृति, अपना धर्म आदि अपनाने में शर्म महसूस होती है और अपने मालिकों के इतिहास, भाषा, संस्कृति, धर्म आदि के गुणगान में गर्व का अनुभव होता है !

आप यदि ऐसे मानसिक गुलामों को देखना चाहें, तो कहीं दूर जाने की आवश्यकता नहीं है ! ऐसे लोग अक्सर ही भारतीयता, हिंदुत्व, भारतीय संस्कृति, हमारे प्राचीन इतिहास आदि की आलोचना करके और इन सबको मानने वालों का उपहास करके अपनी उपस्थिति का अहसास करवाते रहते हैं !

मानसिक गुलामों की सबसे बड़ी पहचान यह है कि उन्हें भारत के गौरवशाली अतीत से जुड़ी सभी बातों से नफरत होती है ! उन्हें प्राचीन काल के सभी हिन्दू राजा नापसंद हैं और उन्हें ऐसे किस्से पसंद आते हैं कि अंग्रेज़ों ने भारत पर शासन करके हम पर उपकार किया था और उन्होंने ही भारतीयों को सभ्यता सिखाई ! वह प्रायः ऐसी कहानियां लिखते-बताते देखे जा सकते हैं !

राजनीतिक रूप से मानसिक गुलाम मुख्यतः भाजपा के विरोधी होते हैं और इसके सफलतम नेताओं में से एक श्री नरेन्द्र मोदी से वह अत्यधिक घृणा करते हैं ! इसका कारण शायद यह है कि नरेन्द्र मोदी की आस्था राष्ट्रभक्ति, राष्ट्रसेवा और राष्ट्रभाषा के प्रति है ! इन गुलामों के आदर्श नेताओं के विपरीत नरेन्द्र मोदी पश्चिमी विश्व की महानता के गुणगान करने के बजाय भारत के स्वाभिमान की बात कहते हैं ! अतः नरेन्द्र मोदी से घृणा करना इन मानसिक गुलामों के लिये अनिवार्य है !

मोदी से घृणा के अलावा इन मानसिक गुलामों के कुछ अन्य लक्षण भी हैं ! वह हिन्दू धर्म के कट्टर विरोधी और आलोचक होते हैं ! उनकी बातों का सार अक्सर यही होता है कि हिंदुत्व ही संसार की सारी बुराइयों की जड़ है और वही मानवता के लिये सबसे बड़ा खतरा है ! वह खुद को प्रगतिशील वैश्विक नागरिक कहते हैं, जो सभी धर्मों से परे हैं ! यदि आप उन पर भरोसा करें, तो उनका घोषित उद्देश्य अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करना और समाज में समानता लाना है ! लेकिन वास्तव में इन लोगों का प्रयास यही रहता है कि ऐसी स्वतंत्रता और समानता केवल राष्ट्रवादी विचारधारा के विरोधियों के लिये ही आरक्षित रहे ! अपनी बात को सरल रूप में समझाने के लिये मैं कहना चाहूंगा कि मानसिक गुलामों में यह चार लक्षण आम हैं !

उन्हें भारत की संस्कृति, भाषाओं और इतिहास, को अपना कहने में शर्म महसूस होती है और ब्रिटिश (अंग्रेज) संस्कृति, भाषा और इतिहास के गुणगान में गर्व का अनुभव होता है !उनके मन में यह अंधविश्वास होता है कि अंग्रेजी जानना और बोलना ही श्रेष्ठता की पहली कसौटी है ! इसलिये वह अपनी बात बहुत आक्रामक ढंग से और विशेषतः अंग्रेजी में ही कह पाते हैं ! खुद को हीन मानने वाले इन गुलामों को यह भ्रम खुशी देता है कि इस तरह आक्रामक ढंग से अंग्रेजी बोलने करने पर वह भी अपने ब्रिटिश-अमेरिकी स्वामियों की बराबरी पर पहुंच जाएंगे !

तीसरी बात यह है कि आमतौर शायद वह महिलाओं को केवल मनोरंजन और यौनाचार की ‘वस्तु’ मानते हैं ! इसलिये इस बात की संभावना ही ज्यादा रहती है कि उनका ध्यान महिलाओं को आकर्षित करके उन्हें गर्लफ्रेंड बनाने और उनसे निकटता पाने में ही ज्यादा रहता है ! उन्हें ‘सेल्फी विथ डॉटर’ से घोर आपत्ति रहती है, लेकिन वह ‘किस ऑफ लव’ की प्रशंसा करते नहीं थकते ! इस तरह की अभद्रता करने के लिये वह न समय देखते हैं और न स्थान ! चाहे लिफ्ट हो या खुली सड़क, वह कहीं भी ऐसे कारनामे दिखा सकते हैं ! दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि वह यौन स्तर पर कुंठित होते हैं !

चौथी बात भारतीय होने और हिन्दी व अन्य भारतीय भाषाओं के प्रति उनके मन में शर्म का गहरा भाव होता है ! वह यह मानते हैं कि श्रेष्ठ और सभ्य लोगों की भाषा केवल अंग्रेजी ही है और भारत की अन्य भाषाएं गरीबों और पिछड़ों की भाषाएं है ! वह यह भी मानते हैं कि भारत की तीसरी दुनिया का, तीसरी श्रेणी के आधारभूत ढांचे वाला देश है और विश्व स्तर पर खेल, विज्ञान, रक्षा या रचनात्मकता के क्षेत्र में उसकी कोई खास उपलब्धियां नहीं हैं ! अपने अज्ञान से उपजी इस शर्म को छिपाने के लिये वह पश्चिमी देशों की उपलब्धियों को रटने, दोहराने और आदर्श कहकर दूसरों पर थोपने में लगे रहते हैं !

संभवतः मानसिक गुलामों ने डॉ. होमी भाभा, डॉ. कलाम, पं. रविशंकर, उस्ताद बिस्मिल्लाह खान, लता मंगेशकर, विश्वनाथन आनंद जैसे वैज्ञानिकों, कलाकारों या खिलाड़ियों और इसरो या डीआरडीओ जैसे संगठनों का नाम कभी सुना ही नहीं है ! इसलिये वह आज भी इसी भ्रम में जी रहे हैं कि विज्ञान, खेल, कला या रक्षा जैसे क्षेत्रों में भारत की कोई उपलब्धियां ही नहीं हैं !

इन मानसिक गुलामों का एक वर्ग इस भ्रम में भी जकड़ा हुआ है कि श्रेष्ठ साहित्य केवल अंग्रेजी भाषा में ही लिखा गया है और लिखा जा सकता है ! कुछ मित्रों की राय है कि अंग्रेजी लेखक चेतन भगत भी इसी श्रेणी में आते हैं ! उन्होंने अपनी लेखन-यात्रा की शुरुआत ‘फाइव पॉइंट समवन’ से की थी, और नीचे उतरते-उतरते वह ‘थ्री मिस्टेक्स…”, “टू स्टेट्स”, “वन नाइट” होते हुए “हाफ गर्लफ्रेंड” तक पहुंच गये !

इन दिनों अखबारों में छपने वाले उनके लेख देखकर कई लोग कहने लगे हैं कि अब ‘हाफ’ से भी नीचे उतरकर ज़ीरो और माइनस की गहराई में जा रहे हैं ! इसी कारण कुछ महीनों पहले उन्होंने अपने एक लेख में हिन्दी को रोमन लिपि में लिखने का उपदेश दिया था और अभी हाल ही में उन्होंने सोशल मीडिया पर भक्तों की प्रजाति के बारे में ज्ञान दिया है ! अंग्रेजों और अंग्रेजी के भक्त श्री चेतन भगत मानसिक गुलाम हैं या नहीं, इस बारे में कोई निष्कर्ष निकालने के बजाय मैं इसका विश्लेषण आप ही के विवेक पर ही छोड़ता हूं !

हिन्दी, हिंदुत्व, भारतीयता, योग, आयुर्वेद या मोदी का विरोध करके अपनी कुंठा प्रकट करने का मानसिक गुलामों का यह प्रयास तो चलता ही रहेगा ! लेकिन हम इस मामले में क्या कर सकते हैं? सबसे अच्छा तो यही है कि मानसिक गुलामों के प्रति क्रोध व्यक्त करने के बजाय उनके प्रति करुणा रखें ! हालांकि उनकी निरंतर मूर्खताओं के बावजूद भी संयम बनाए रखना कठिन हो सकता है, लेकिन उनकी दुखद स्थिति को समझने का प्रयास करें !

यदि आपको ऐसे मानसिक गुलाम दिखाई दें, तो उन्हें समझाएं कि वह अंग्रेजी को श्रेष्ठ समझने और अंग्रेजों की नकल को स्मार्टनेस मानने के भ्रम से बाहर निकलें ! उन्हें सलाह दें कि वह संगीत, साहित्य, कला, खेल, शिक्षा, विज्ञान आदि में भारतीयों की उपलब्धियों के बारे में जानें और अपना अज्ञान दूर करें !

सही जानकारी मिल जाने पर भारतीयता के प्रति उनके मन में गहराई तक जमी हुई शर्मिंदगी की भावना दूर हो जायेगी ! इससे उनका आत्मविश्वास भी बढ़ेगा और उन्हें दुनिया की बराबरी करने का सही मतलब भी समझ आयेगा !!

अपने बारे में कुण्डली परामर्श हेतु संपर्क करें !

योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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