खजुराहो के मंदिर का आध्यात्मिक रहस्य : Yogesh Mishra

आज से 2000 साल पहले जब पूरे के पूरे आर्यावर्त में बौद्ध धर्म का प्रभाव इतना अधिक बढ़ गया था कि सनातन जीवन शैली की आश्रम व्यवस्था का अधिकांश लोग परित्याग करके बौद्ध भिक्षु बन बौद्ध विहारों में रमण करने लगे थे ! पूरी की पूरी सामाजिक और पारिवारिक व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो गई थी !

लोगों का वंश परंपरा से विश्वास उठ गया था और आर्यावर्त का युवा गृहस्थ जीवन के स्थान पर सर मुंडवा कर भगवा वस्त्र पहन कर जंगलों और बौद्ध विहारों में भटकने लगा था ! उस समय नव दंपत्ति भी संतान उत्पत्ति के स्थान पर बौद्ध प्रवचन देने और सुनने में व्यस्त था !

ऐसी स्थिति में आदि गुरु शंकराचार्य का प्रादुर्भाव हुआ ! उन्होंने मंडन मिश्र के साथ मिलकर भारत में नागा सेना का निर्माण किया और चार पीठों की स्थापना की फिर चारों पीठों के मध्य से पूरे के पूरे बौद्ध धर्म को उखाड़ फेंका और सनातन धर्म की पुनः स्थापना की ! वर्ण व्यवस्था और आश्रम व्यवस्था को पुनः स्थापित करके मात्र 32 वर्ष की अल्प आयु में उन्होंने केदारनाथ में समाधि ले ली !

ऐसी स्थिति में भारत में सनातन धर्म की स्थापना तो हो गई थी लेकिन जो लोग बौद्ध धर्म अपनाकर बौद्ध विहारों में मस्त थे ! वह बौद्ध विहार उजड़ जाने के कारण घूम घूम कर समाज में अपराध करने लगे ! तब इन बौद्ध धर्मियों को वापस उनको दांपत्य जीवन की ओर कैसे मोड़ा जाये ! यह समाज के लिये एक बहुत बड़ा चिंतन का विषय था !

जिसको चंदेल वंश की शुरुआती राजा भगवान चंद्रदेव ने स्वीकार किया ! उनकी प्रेरणा से उनके पुत्र ने जेजाक भुक्ति जिन्होंने बुंदेलखंड की स्थापना की थी ! उन्होंने सम्राट अशोक के तर्ज पर जैसे उन्होंने आजीवक संप्रदाय के लिये बिहार के जहानाबाद (पुराना गया जिला) में पहाड़ियों में सात गुफाओं का निर्माण कर उन्हें आजीवकों को समर्पित कर दिया था ! ठीक उसी तर्ज पर बौद्ध विहार के पूर्व बौद्धों को सौपने के लिये खजुराहो के अनेक मंदिर का निर्माण करवाने की जिम्मेदारी ली ! जिसमें बाहर तो गृहस्थ जीवन के कामुक मूर्तियाँ थी लेकिन अन्दर सनातन देवी-देवता और चार पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की व्याख्या करने वाली मूर्तियां थी ! जो सनातन धर्म की जीवन शैली का मूल दर्शन है !

इन 85 मंदिरों का निर्माण 950 से 1050 ई0 के बीच धंगदेव, गंडदेव, विद्याधर के समय में हुआ था ! प्रसिद्ध कंदरिया महादेव के मंदिर को चंदेल नरेश विद्याधर ने महमूद गजनवी को पराजित करने के उपलक्ष्य में बनाया था ! खजुराहो के मंदिर को मंदिरों का नगर कहते हैं !

यहां विष्णु, शिव, लक्ष्मी, सूर्य, लक्ष्मण के साथ ही पार्श्वनाथ और चौसठ योगिनी के मंदिर बनाये गये हैं ! खजुराहो के मंदिरों के निर्माण के बाद चन्देलो ने अपनी राजधानी खजुराहो से महोबा स्थानांतरित कर दी थी लेकिन इसके बाद भी खजुराहो का महत्व बना रहा !

खजुराहो के मंदिर पर काम कला का प्रदर्शन विश्व प्रसिद्ध है ! यह मंदिर यह सन्देश देता है कि काम (वासना) चार पुरुषार्थों, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष में से एक है ! मंदिरों में काम का चित्रांकन पहली बार दक्षिण भारत के एलोरा के मंदिर पर हुआ था ! जिसका विस्तार बाद में उत्तर भारत के खजुराहो के मंदिर में देखा गया ! काम ही मैथुनी सृष्टि का आधार है ! यह सिर्फ मनोरंजन के लिये न होकर सृष्टि सृजन की आवश्यक प्रक्रिया का अंग है ! काम के समय आपकी जैसी भावना होगी संतान भी उसी तरह की प्राप्त होगी !

जो संसार में भ्रम से निकल कर वासनाओं और कामनाओं की नदी पार करेगा ! जो वाह्य स्तर को प्रदर्शित करती है ! वही ईश्वर से एकाकार कर पायेगा ! जैसे ही आप में मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश किया ! वैसे भगवान का शिवलिंग दिखा है ! न समझ वासना में डूबा हुआ व्यक्ति जब मंदिर के वाह्य दृश्य में अर्थात सांसारिक वासना में फंस कर रह जायेगा तो उसे हर जगह कामना और वासना ही दिखेगी !

लेकिन जब वह गर्भ गृह में दुनिया की भाग दौड़ से शान्त होकर बैठेगा तो उसे भगवान और बस सिर्फ भगवान के ही दर्शन होंगे ! यही इस मंदिर के निर्माण कला का सन्देश है !

किन्तु आज कल लोग खजुराहो के मंदिर में वासना देखने जाते हैं ! यह मानवता का दुर्भाग्य है कि गर्भ गृह का भगवान उन्हें दिखाई नहीं देता है ! फिर भी हम अपने आपको बुद्धिजीवी कहते हैं

!!

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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