प्रयागराज के अक्षयवट पर अत्याचार की कथा : Yogesh Mishra

मत्स्य पुराण में वर्णन है कि जब प्रलय आता है ! युग का अंत होता है ! पृथ्वी जलमग्न हो जाती है और सब कुछ डूब जाता है ! उस समय भी चार वटवृक्ष नहीं डूबते हैं ! उनमें सबसे महत्वपूर्ण है वह वटवृक्ष जो आज प्रयागराज नगरी में यमुना के तट पर स्थित है ! मान्यता है कि ईश्वर स्वयं इस वट वृक्ष पर बालरूप में रहते हैं और हर बार प्रलय के बाद यहीं से नई सृष्टि की रचना करते हैं ! अपनी इसी विशिष्टता के कारण यह वटवृक्ष अक्षयवट के नाम से जाना जाता है ! अर्थात ऐसा वट जिसका कभी क्षय नही हो सकता है !

बीते 10 जनवरी 2019 को उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस वटवृक्ष को हिन्दू श्रद्धालुओं के लिये खोल दिया था ! इसके साथ ही सरस्वती कूप में देवी सरस्वती की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा भी की गई थी ! जैन मत में यह मान्यता है कि प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव जी ने इसी वटवृक्ष के नीचे तपस्या की थी ! बौद्ध मत में भी इस वृक्ष को पवित्र माना गया है ! वाल्मीकि रामायण और कालिदास रचित ‘रघुवंश’ में भी इस वृक्ष की चर्चा है ! यह वटवृक्ष आशा और जीवन का संदेश देता है ! यह वटवृक्ष भारतीय संस्कृति का एक प्रतीक है ! किंतु प्रश्न है कि इतने महत्वपूर्ण वटवृक्ष से हिंदुओं को 425 वर्षों से दूर क्यों रखा गया था ?

अकबर के जिस कथित गंगा जमुनी तहजीब की दास्तां सुनाई जाती है ! उसके द्वारा प्रयागराज स्थित हर्षवर्धन का कुम्भ क्षेत्र में स्थित यमुना के तट पर निर्मित किला हड़प लेने के बाद उसमें स्थित हिन्दू संस्कृति की आस्था के प्रतीक अक्षयवट वृक्ष और अन्य दर्जनों मन्दिरों में सुरक्षा कारण का हवाला देकर इस किले के अंदर हिन्दुओं का जन प्रवेश वर्जित कर दिया गया ! एक ब्राह्मण हो नहीं माना उसे सभी जनता के सामने हाथी के पैरों के नीचे अपने सामने जिन्दा रेंदावा दिया !

वास्तव में यह अक्षयवट सनातन ही है ! इसका यह प्रमाण है कि इस अक्षयवट को अकबर एक चुनौती मानता था ! इसीलिये उसके आदेश पर वर्षों तक गर्म तेल इस वृक्ष के जड़ों में डाला गया लेकिन यह वृक्ष फिर भी नष्ट नही हुआ ! अकबर के बेटे जहाँगीर के शासनकाल में पहले अक्षयवट वृक्ष को जलाया गया ! फिर भी वृक्ष नष्ट नही हुआ ! इसके बाद जहाँगीर के आदेश पर इस वृक्ष को काट दिया गया ! लेकिन जड़ो से फिर से शाखायें निकल आई !

जहाँगीर के बाद भी मुगल शासन में अनेकों बार इस वृक्ष को नष्ट करने का प्रयास हुआ ! लेकिन यह वृक्ष हर बार पुनर्जीवित होता रहा ! ऐसा प्रतीत होता है मानो यह पवित्र वह वृक्ष बारम्बार पुनर्जीवित होकर इस्लामिक आक्रांताओं को यह कठोर संदेश देता रहा कि तुम चाहे जितने प्रयास कर लो किन्तु सनातन धर्म को समाप्त नही कर सकोगे ! साथ ही अपने आस्तित्व को मिली हर चुनौती से सफलतापूर्वक निबटकर यह सनातनधर्मियों में नवीन आशा का संचार करता रहा !

लेकिन अपने जीवन के उत्तरकाल में शरीर की शक्ति कम पड़ने पर और संतानों के विद्रोह से परेशान अकबर ने जब लोगों से परामर्श लिया तो लोगों ने उसे अक्षयवट का महत्व बतलाया ! इसलिये उसने किले के क्षेत्र में आने वाले मन्दिरों को तो नष्ट कर दिया लेकिन उसमें स्थित मूर्तियों को वहीँ एक तहखाने में रखवा दिया ! जिसे पातालपुरी मन्दिर आज भी देखा जा सकता है !

यह मूर्तियाँ और अक्षयवट वृक्ष का एक तना स्थानीय पुजारियों को पूजा अर्चना हेतु सौंप दिया ! जिससे हिन्दू अन्यत्र पुनः पूजा कर सकें ! इन्ही मूर्तियों और अक्षयवट की शाखाओं से किले के अन्दर आज भी अक्षयवट से अलग पातालपुरी मन्दिर में पूजा होती है ! जहाँ पिछले 425 वर्षों से हिन्दू श्रद्धालू अक्षयवट के अंश का दर्शन करते आ रहे थे ! जबकि असली अक्षयवट वृक्ष किले में हिंदुओं की पहुँच से दूर कर था !

मुगलों के बाद यह किला अंग्रेजों के पास रहा और उन्होंने भी मुगलों द्वारा लगाये प्रतिबन्ध को जारी रखा ! स्वतंत्रता के पश्चात यह किला भारतीय सेना के नियंत्रण में है ! यहाँ आम श्रद्धालुओं का आना सम्भव नही था ! श्रद्धालुओं और सन्तों की लगातार मांग के बाद भी किसी सरकार ने इस वृक्ष के दर्शन के लिये सुलभ बनाने में रुचि नही दिखाई ! किन्तु उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के प्रयासों से आज यह सम्भव हो सका है ! जिसके लिये वह साधुवाद के पात्र हैं !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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