संसार में सफलता आपके हाँथ में है ! : Yogesh Mishra

हमारे जीवन में अब अधिक जागरूकता और बुद्धिमत्ता आ गई है ! यही समय है जब सिर्फ जीवित रहने की भावना को दबा कर असीम बनने की चाह को बढ़ाया जा सकता है ! असीम होने की तीव्रता हममें इसलिये नहीं उठती, क्योंकि आपने जीवित रहने की भावना को सबसे अधिक महत्व दे दिया है !

इस शरीर में दो बुनियादी इच्छाएं हैं ! एक है जीवित रहने की भावना, दूसरी असीम बनने की चाह ! अगर आप जीवित रहने की भावना को प्रबल बनाते हैं, तो जीवन की गति मंद हो जाती है ! क्योंकि जीवित रहने का मतलब बिना जोखिम लिये सुरक्षित चलना है ! अगर आप असीम होने की चाह को प्रबल बनाते हैं, अगर आप असीमित विस्तार चाहते हैं; और अगर आपकी सारी ऊर्जा उसी पर लगी हुई है, तो आपके जीवन में पूर्ण तीव्रता होगी !

जीवित रहने की भावना हर दूसरे जीव में प्रबल है ! यही समय है जब सिर्फ जीवित रहने की भावना को दबा कर असीम बनने की चाह को बढ़ाया जाये ! इन दोनों ताकतों में से एक हमेशा आपके अंदर तीव्रता को बढ़ाने की कोशिश करती है और दूसरी हमेशा आपको सुस्त बनाने की कोशिश करती है ! दुर्लभ संसाधनों को बचाने की जरूरत हो सकती है, लेकिन जीवन तत्व दुर्लभ नहीं है !

शिव आपसे और आपके नाटक से ऊब कर श्मशान में बैठते हैं, वह ऊब जाते हैं क्योंकि हर कहीं नितांत बेवकूफाना नाटक चल रहा है ! असली चीज सिर्फ श्मशान में होती है ! जन्म और मृत्यु के समय ही शायद कोई असली अनुभव घटित होता है ! मैटरनिटी होम और श्मशान ही दो उपयुक्त स्थान हैं, हालांकि आजकल विचारों के जन्म लेने की घटना थोड़ी अधिक घटित हो रही है !

शिव ऐसे स्थान पर बैठे हुये हैं, जहां जीवन सबसे अधिक अर्थपूर्ण है ! लेकिन अगर आप डरे हुये हैं, अगर आप जीवित बने रहने यानी आत्मरक्षा की सोच रहे हैं, तो आप इस बात को समझ नहीं पाएंगे ! अगर आप विस्तार पाने और चरम को छूने की चाह रखते हैं, तभी आप इस बात को समझ पाएंगे ! वह उन लोगों में दिलचस्पी नहीं रखते जो जीवित बने रहना चाहते हैं !

गुजर बसर करने के लिये आपको बस चार हाथ-पैर और दिमाग की कुछ सक्रिय कोशिकाओं की जरूरत होगी ! चाहे वह केंचुआ हो, टिड्डा हो या कोई दूसरा जीव ! यह सब अपना जीवन चला रहे हैं, ठीक-ठाक हैं ! आपको जीवित बने रहने के लिये बस उतने ही दिमाग की जरूरत है ! इसलिये अगर जीवन-रक्षा मोड पर चल रहे हैं, अगर आपके अंदर आत्मरक्षा की भावना सबसे प्रबल है, तो वह आपसे ऊब जाते हैं, वह आपके मरने का इंतजार कर रहे हैं !

वह श्मशान में इंतजार करते हैं ताकि शरीर नष्ट हो जाये, क्योंकि जब तक शरीर नष्ट नहीं होता, आस-पास के लोग भी यह नहीं समझ पाते कि मृत्यु क्या है !

उन्हें संहारक माना जाता है, इसलिये नहीं कि वह आपको नष्ट करना चाहते हैं ! वह श्मशान में इंतजार करते हैं ताकि शरीर नष्ट हो जाये, क्योंकि जब तक शरीर नष्ट नहीं होता, आस-पास के लोग भी यह नहीं समझ पाते कि मृत्यु क्या है ! आपने देखा होगा कि जब लोगों के किसी करीबी की मृत्यु होती है, तो वे शव पर पछाड़ खा कर गिरते हैं, उसे गले लगाते हैं, चूमते हैं, उसे जिन्दा करने की कोशिश करते हैं, बहुत सी चीजें करते हैं ! लेकिन एक बार जब आप शव को आग लगा देते हैं, तो कोई जाकर लपटों को नहीं चूमता ! आत्मरक्षा की उनकी प्रवृत्ति उन्हें बताती है कि यह वह नहीं है !

यह सही और गलत का सवाल नहीं है, बल्कि सीमित समझ के मुकाबले चरम समझ का सवाल है ! क्या सीमित होना गलत है? नहीं ! लेकिन सीमित होना कष्टदायक है ! क्या कष्ट में होना गलत है? नहीं ! अगर आपको उसमें आनंद आता है, तो मुझे क्या परेशानी है? मैं किसी चीज के खिलाफ नहीं हूं ! मुझे सिर्फ यह पसंद नहीं है कि आप जाना एक दिशा में चाहते हैं लेकिन जा उसके विपरीत दिशा में रहे हैं !

जैसे ही कोई परेशानी सामने आती है, आपके दिमाग में शिव आते हैं ! जब जीवन आपकी इच्छा के अनुसार चलता है, तब आप हर तरह के लोगों और हर तरह की चीजों के बारे में सोचते हैं ! अगर कोई आपके सिर पर बंदूक तान दे तो आप कहेंगे ‘शिव, शिव’ ! इस अवसर पर उन्हें पुकारना गलत हैं ! वह श्मशान में इंतजार करते हैं ! अगर कोई आपके सिर पर बंदूक तानता है और आप बचाने के लिये शिव को बुलाते हैं, तो वह नहीं बचायेगे ! इसके लिये खुद ही संघर्ष करना होगा

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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