विश्व वैदिक संस्कृति के विकास में सरस्वती नदी का योगदान : Yogesh Mishra

सरस्वती नदी पौराणिक हिन्दु ग्रंथों तथा ऋग्वेद में वर्णित मुख्य नदियों में से एक है ! ऋग्वेद के नदी सूक्त के एक श्लोक (10.75 ) में सरस्वती नदी को यमुना के पूर्व और सतलुज के पश्चिम में बहती हुए बताया गया है ! उत्तर वैदिक ग्रंथों जैसे ताण्डय और जैमिनिय ब्राह्मण में सरस्वती नदी को मरुस्थल में सुखा हुआ बताया गया है ! महाभारत भी सरस्वती नदी के मरुस्थल में विनाशन नामक जगह में अदृश्य होने का वर्णन करता है ! महाभारत में सरस्वती नदी को प्लक्षवती नदी ! वेद स्मृति ! वेदवती आदि नामों से भी बताया गया है !

ऋग्वेद तथा अन्य पौराणिक वैदिक ग्रंथों में दिये सरस्वती नदी के सन्द‍र्भों के आधार पर कई भू-विज्ञानी मानते हैं कि हरियाणा से राजस्थान होकर बहने वाली मौजुदा सुखि हुई घग्गर-हकरा नदी प्राचीन वैदिक सरस्वती नदी की एक मुख्य सहायक नदी थी ! जो 5000 – 3000 ईसा पूर्व पूरे प्रवाह से बहती थी ! उस समय सतलुज तथा यमुना की कुछ धाराए सरस्वती नदी में आकर मिलती थी ! इसके अतिरिक्त दो अन्य लुप्त हुई नदियाँ दृष्टावदी और हिरण्यवती भी सरस्वती की सहायक नदियाँ थी ! लगभग 2000 ईसा पूर्व तक भूगर्भी बदलाव की वजह से यमुना ! सतलुज ने अपना रास्ता बदल दिया तथा दृष्टावदी नदी के भी 2600 ईसा पूर्व सूख जाने के कारण सरस्वती नदी लुप्त हो गयी ! ऋग्वेद में सरस्वती नदी को नदीतमा की उपाधि दी गयी है ! वैदिक सभ्यता में सरस्वती ही सबसे बड़ी और मुख्य नदी थी ! इसरो द्वारा किये गये शोध से पता चला है कि आज भी यह नदी हरियाणा ! पंजाब और राजस्थान से होती हुई भूमि के नीचे से होकर बहती है !

सरस्वती एक विशाल नदी थी ! पहाड़ों को तोड़ती हुई निकलती थी और मैदानों से होती हुई समुद्र में जाकर विलीन हो जाती थी ! इसका वर्णन ऋग्वेद में बार-बार आता है ! कई मंडलों में इसका वर्णन है ! ऋग्वेद वैदिक काल में इसमें हमेशा जल रहता था ! सरस्वती आज की गंगा की तरह उस समय की विशाल नदियों में से एक थी ! उत्तर वैदिक काल और महाभारत काल में यह नदी बहुत सूख चुकी थी ! तब सरस्वती नदी में पानी बहुत कम था ! लेकिन बरसात के मौसम में इसमें पानी आ जाता था ! भूगर्भी बदलाव की वजह से सरस्वती नदी का पानी गंगा मे चला गया ! कई विद्वान मानते है कि इसी वजह से गंगा के पानी की महिमा हुई ! भूचाल आने के कारण जब जमीन ऊपर उठी तो सरस्वती का पानी यमुना में गिर गया ! इसलिए यमुना में सरस्वती का जल भी प्रवाहित होने लगा ! सिर्फ इसीलिए प्रयाग में तीन नदियों का संगम माना गया जबकि यथार्थ में वहां तीन नदियों का संगम नहीं है ! वहाँ केवल दो नदियां हैं ! सरस्वती कभी भी इलाहाबाद तक नहीं पहुंची !

सरस्वती नदी का ऋग्वेद की चौथे पुस्तक छोड़कर सभी पुस्तकों में कई बार उल्लेख किया गया है ! केवल यही ऐसी नदी है जिसके लिए ऋग्वेद की छन्द संख्या 6.61 से 60.95 और 7.96 में पूरी तरह से समर्पित भजन दिये गये है ! वैदिक काल में सरस्वती की बड़ी महिमा थी और इसे परम पवित्र नदी माना जाता था ! कयोंकि इसके तट के पास रहकर तथा इसी नदी के पानी का सेवन करते हुए ऋषियों ने वेदों को रचा औ‍र वैदिक ज्ञान का विस्तार किया ! इसी कारण सरस्वती को विद्या और ज्ञान की देवी के रुप में भी पूजा जाने लगा ! ऋग्वेद के नदी सूक्त में सरस्वती का इस प्रकार उल्लेख है कि ‘इमं में गंगे यमुने सरस्वती शुतुद्रि स्तोमं सचता परूष्ण्या असिक्न्या मरूद्वधे वितस्तयार्जीकीये श्रृणुह्या सुषोमया’ सरस्वती ऋग्वेद में केवल ‘नदी देवी’ के रूप में वर्णित है (इसकी वंदना तीन सम्पूर्ण तथा अनेक प्रकीर्ण मन्त्रों में की गई है) ! किंतु ब्राह्मण ग्रथों में इसे वाणी की देवी या वाच् के रूप में देखा गया ! क्योंकि तब तक यह लुप्त हो चुकी थी परन्तु इसकी महिमा लुप्त नहीं हुई और उत्तर वैदिक काल में सरस्वती को मुख्यत: ! वाणी के अतिरिक्त बुद्धि या विद्या की अधिष्ठात्री देवी भी माना गया है और ब्रह्मा की पत्नी के रूप में इसकी वंदना के गीत गाये गए है ! ऋग्वेद मे सरस्वती को नदीतमा की उपाधि दी गयी है ! उसकी एक शाखा 2.41.16 मे इसे “सर्वश्रेष्ठ माँ !सर्वश्रेष्ठ नदी !सर्वश्रेष्ठ देवी” कहकर सम्बोधित किया गया है ! यही प्रशंसा ऋग्वेद के अन्य छंदों 6.61, 8.81, 7.96 और 10.17 मे भी की गयी है ! ऋग्वेद के श्लोक 7.9.52 तथा अन्य जैसे 8.21.18 मे सरस्वती नदी को “दूध और घी” से परिपूर्ण बताया गया है ! ऋग्वेद के श्लोक 3.31.1 मे इसे गाय की तरह पालन करने वाली बताया गया है ! ऋग्वेद के श्लोक 7..36.6 मे सरस्वती को सप्तसिंधु नदियों की जननी बताया गया है !

ऋग्वेद के बाद के वैदिक साहित्यों में सरस्वती नदी के विलुप्त होने का उल्लेख आता हैं ! इसके अतिरिक्त सरस्वती नदी के उद्गम स्थल की प्लक्ष प्रस्रवन के रुप मे पहचान की गयी है जो कि यमुनोत्री के पास ही स्थित है ! यजुर्वेद यजुर्वेद की वाजस्नेयी संहिता 34.11 में कहा गया है कि पांच नदियाँ अपने पूरे प्रवाह के साथ सरस्वती नदी में प्रविष्ट होती हैं ! यह पांच नदियाँ पंजाब की सतलुज ! रावी ! व्यास ! चेनाव और दृष्टावती हो सकती हैं वी ! एस वाकंकर के अनुसार पांचों नदियों के संगम के सुखे हुए अवशेष राजस्थान के बाड़मेर या जैसलमेर के निकट पंचभद्र तीर्थ पर देखे जा सकते है ! रामायणवाल्मीकि रामायण में भरत के केकय देश से अयोध्या आने के प्रसंग में सरस्वती और गंगा को पार करने का वर्णन है- ‘सरस्वतीं च गंगा च युग्मेन प्रतिपद्य च ! उत्तरान् वीरमत्स्यानां भारूण्डं प्राविशद्वनम्’ सरस्वती नदी के तटवर्ती सभी तीर्थों का वर्णन महाभारत में शल्यपर्व के 35 वें से 54 वें अध्याय तक सविस्तार दिया गया है ! इन स्थानों की यात्रा बलराम ने की थी ! जिस स्थान पर मरूभूमि में सरस्वती लुप्त हो गई थी उसे विनशन कहते थे !महाभारतमहाभारत में तो सरस्वती नदी का उल्लेख कई बार किया गया है ! सबसे पहले तो यह बताया गया है कि कई राजाओं ने इसके तट के समीप कई यज्ञ किये थे ! वर्तमान सूखी हुई सरस्वती नदी के समान्तर खुदाई में 5500 – 4000 वर्ष पुराने शहर मिले है जिनमे कालीबंगा और लोथल भी है यहाँ कई यज्ञ कुण्डों के अवशेष भी मिले है जो महाभारत में कहे तथ्य को प्रमाणित करती है ! महाभारत में यह भी वर्णन आता है कि निषादों और मलेच्छों से द्वेष होने के कारण सरस्वती नदी ने इनके प्रदेशों मे जाना बंद कर दिया जो इसके सुखने की प्रथम अवस्था को दर्शाती है ! साथ ही यह भी वर्णन मिलता है कि सरस्वती नदी मरुस्थल में विनाशन नामक स्थान पर लुप्त हो फिर पुन किसी स्थान पर प्रकट होती है ! महाभारत मे आता है कि ऋषि वसिष्ठ सत्लुज में कुदकर आत्महत्या का प्रयास करते है जिससे नदी 100 धाराओं मे टूट जाती है यह तथ्य सतलुज नदी के अपने पुराने मार्ग को बदलने की घटना को प्रमाणित करता है क्योंकि प्राचिन वैदिक काल में सतलुज नदी सरस्वती में ही जाकर अपना प्रवाह छोड़ती थी ! बलराम जी द्वारा इसके तट के समान्तर प्लक्ष पेड़ (प्लक्षप्रस्त्रवण !यमुनोत्री के पास) से प्रभास क्षेत्र (वर्तमान कच्छ का रण) तक तीर्थयात्रा का वर्णन भी महाभारत में आता है ! महाभारत के अनुसार कुरुक्षेत्र तीर्थ सरस्वती नदी के दक्षिण और दृष्टावती नदी के उत्तर में स्थित है ! पुराण में संदर्भसिद्धपुर (गुजरात) सरस्वती नदी के तट पर बसा हुआ है ! पास ही बिंदुसर नामक सरोवर है जो महाभारत का विनशन हो सकता है ! यह सरस्वती मुख्य सरस्वती ही की धारा जान पड़ती है ! यह कच्छ में गिरती है किंतु मार्ग में कई स्थानों पर लुप्त हो जाती है !’सरस्वती’ का अर्थ है सरोवरों वाली नदी जो इसके छोड़े हुए सरोवरों से सिद्ध होता है !श्रीमद् भागवत “श्रीमद् भागवत (5.19.18)” में यमुना तथा दृषद्वती के साथ सरस्वती का उल्लेख है ! “मंदाकिनीयमुनासरस्वतीदृषद्वदी गोमतीसरयु” “मेघदूत पूर्वमेघ” में कालिदास ने सरस्वती का ब्रह्मावर्त के अंतर्गत वर्णन किया ह ! “कृत्वा तासामभिगममपां सौम्य सारस्वतीनामन्त:शुद्धस्त्वमपि भविता वर्णमात्रेण कृष्ण:” सरस्वती का नाम कालांतर में इतना प्रसिद्ध हुआ कि भारत की अनेक नदियों को इसी के नाम पर सरस्वती कहा जाने लगा ! पारसियों के धर्मग्रंथ अवेस्ता में भी सरस्वती का नाम हरहवती मिलता है !

उद्गम स्थल तथा विलुप्त होने के कारण: महाभारत में मिले वर्णन के अनुसार सरस्वती नदी हरियाणा में यमुनानगर से थोड़ा ऊपर और शिवालिक पहाड़ियों से थोड़ा सा नीचे आदि बद्री नामक स्थान से निकलती थी ! आज भी लोग इस स्थान को तीर्थस्थल के रूप में मानते हैं और वहां जाते हैं ! किन्तु आज आदि बद्री नामक स्थान से बहने वाली नदी बहुत दूर तक नहीं जाती एक पतली धारा की तरह जगह-जगह दिखाई देने वाली इस नदी को ही लोग सरस्वती कह देते हैं ! वैदिक और महाभारत कालीन वर्णन के अनुसार इसी नदी के किनारे ब्रह्मावर्त था ! कुरुक्षेत्र था ! लेकिन आज वहां जलाशय हैं ! जब नदी सूखती है तो जहां-जहां पानी गहरा होता है ! वहां-वहां तालाब या झीलें रह जाती हैं और ये तालाब और झीलें अर्ध्दचन्द्राकार शक्ल में पायी जाती हैं ! आज भी कुरुक्षेत्र में ब्रह्मसरोवर या पेहवा में इस प्रकार के अर्ध्दचन्द्राकार सरोवर देखने को मिलते हैं ! लेकिन ये भी सूख गए हैं ! लेकिन ये सरोवर प्रमाण हैं कि उस स्थान पर कभी कोई विशाल नदी बहती थी और उसके सूखने के बाद वहां विशाल झीलें बन गयीं ! भारतीय पुरातत्व परिषद् के अनुसार सरस्वती का उद्गम उत्तरांचल में रूपण नाम के हिमनद (ग्लेशियर) से होता था ! रूपण ग्लेशियर को अब सरस्वती ग्लेशियर भी कहा जाने लगा है ! नैतवार में आकर यह हिमनद जल में परिवर्तित हो जाता था ! फिर जलधार के रूप में आदि बद्री तक सरस्वती बहकर आती थी और आगे चली जाती थी !

वैज्ञानिक और भूगर्भीय खोजों से पता चला है कि किसी समय इस क्षेत्र में भीषण भूकम्प आए ! जिसके कारण जमीन के नीचे के पहाड़ ऊपर उठ गए और सरस्वती नदी का जल पीछे की ओर चला गया ! वैदिक काल में एक और नदी दृषद्वती का वर्णन भी आता हैं ! यह सरस्वती नदी की सहायक नदी थी ! यह भी हरियाणा से होकर बहती थी ! कालांतर में जब भीषण भूकम्प आए और हरियाणा तथा राजस्थान की धरती के नीचे पहाड़ ऊपर उठे ! तो नदियों के बहाव की दिशा बदल गई ! दृषद्वती नदी ! जो सरस्वती नदी की सहायक नदी थी ! उत्तर और पूर्व की ओर बहने लगी ! इसी दृषद्वती को अब यमुना कहा जाता है ! इसका इतिहास 4,000 वर्ष पूर्व माना जाता है ! यमुना पहले चम्बल की सहायक नदी थी ! बहुत बाद में यह इलाहाबाद में गंगा से जाकर मिली ! यही वह काल था जब सरस्वती का जल भी यमुना में मिल गया ! ऋग्वेद काल में सरस्वती समुद्र में गिरती थी ! प्रयाग में सरस्वती कभी नहीं पहुंची ! भूचाल आने के कारण जब जमीन ऊपर उठी तो सरस्वती का पानी यमुना में गिर गया ! इसलिए यमुना में यमुना के साथ सरस्वती का जल भी प्रवाहित होने लगा ! सिर्फ इसीलिए प्रयाग में तीन नदियों का संगम माना गया जबकि यथार्थ में वहां तीन नदियों का संगम नहीं है ! वहां केवल दो नदियां हैं ! सरस्वती कभी भी इलाहाबाद तक नहीं पहुंची !

सरस्वती नदी के तट पर बसी सभ्यता को जिसे हड़प्पा सभ्यता या सिन्धु-सरस्वती सभ्यता कहा जाता है ! यदि इसे वैदिक ऋचाओं से हटाकर देखा जाए तो फिर सरस्वती नदी मात्र एक नदी रह जाएगी ! सभ्यता खत्म हो जाएगी ! सभ्यता का इतिहास बताते हैं सरस्वती नदी तट पर बसी बस्तियों से मिले अवशेष त्था इन अवशेषों की कहानी केवल हड़प्पा सभ्यता से जुड़ती है ! हड़प्पा सभ्यता की 2,600 बस्तियों में से वर्तमान पाकिस्तान में सिन्धु तट पर मात्र 265 बस्तियां है ! जबकि शेष अधिकांश बस्तियां सरस्वती नदी के तट पर मिलती हैं ! अभी तक हड़प्पा सभ्यता को सिर्फ सिन्धु नदी की देन माना जाता रहा था ! लेकिन अब नये शोधों से सिद्ध हो गया है कि सरस्वती का इस सभ्यता में बहुत बड़ा योगदान था !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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