आर्यों से बहिस्कृत करोड़ों व्यक्तियों को जब पूरी दुनियां में किसी ने आश्रय नहीं दिया, तब उन्हें आश्रय और संरक्षण ही नहीं, सम्मान के साथ भर पेट भोजन और आधुनिकतम सुविधा देकर “रक्ष संस्कृति” का निर्माण करने वाला रावण खलनायक कैसे हो सकता है ! वैष्णव लेखकों द्वारा रचित साहित्य में भले ही आर्य एवं रक्ष संस्कृति के युद्ध को ‘धर्म’ और ‘अधर्म’ का युद्ध कहा गया हो ! पर यह वैष्णव लेखक किसी भी तरह से रावण के सैद्धान्तिक चरित्र को छोटा नहीं कर सकते हैं !
महर्षि बाल्मीकि के अनुसार युद्ध भूमि में राम को बिना रथ का खड़ा देख कर रावण अपने आयुद्धों से पूर्ण सुसज्जित युद्ध रथ को त्याग दिया था ! जबकि वह जानता था कि उसके मित्र दशरथ के पुत्र राम मात्र विलासी इन्द्र के बहकाने पर 300 से अधिक क्षत्रिय राजाओं की सेना लेकर उससे युद्ध करने आये हैं और इसमें उसकी मौत सुनिश्चित है !
क्या यह ब्राह्मण पुत्र रावण का परिवार के स्वाभिमान की रक्षा के लिये क्षत्रियोचित युद्ध जैसे कर्म में वृद्ध अवस्था के होते हुये भी धर्म नीति के साथ रत होना उसके सैद्धान्तिक चरित्र का अनुकरणीय अंश नहीं है !
रावण एक अति बुद्धिमान तेजस्वी ब्राह्मण पुत्र था ! उसने अपने तप से परम वैरागी भगवान शिव को प्रसन्न ही नहीं किया था बल्कि उनसे वरदान भी लिये थे ! वह महा तेजस्वी, महा प्रतापी, महा पराक्रमी, रूपवान तथा विद्वान व्यक्ति था ! रावण के कठोर अनुशासन के कारण जिन निर्णयों के कारण उसे क्रूर और अनैतिक चारित्र का बतलाया जाता है, वह वास्तव में पूरी पृथ्वी के साम्राज्य पर अनुशासन बनाये रखने के लिये उठाये गये आवश्यक राजनैतिक निर्णय थे !
राम-रावण युद्ध के पीछे जो यथार्थ कारण था, उसे वैष्णव लेखकों ने अपने स्वरचित ग्रंथों में क्यों छुपा लिया ! जिसे मैने अपने कई शोध लेखों में उजागर किया है ! रावण को बुरा कहने वाले कथावाचक बाली की हत्या, मेघनाथ की पूजा करते समय शास्त्र विहीन अवस्था में लक्ष्मण द्वारा हत्या, रावण की नानी तड़का की बिना किसी कारण हत्या, सुबाहु जैसे अबोध तपस्वी बालक की तप करते समय निर्मम हत्या, बिना किसी कारण के एक रूपवती स्त्री के नाक, कान काट कर उसे कुरूप बना देने का दुसाहस, विभीषण को कूटनीति से अपनी तरफ मिला लाना, सीता द्वारा विभीषण की बेटी त्रिजटा द्वारा विभीषण में राजा बनने की इच्छा जागृत करना, हनुमान द्वारा रावण के राजवैध सुषेण की दो जवान बेटियों का अपरहण करके बाली और सुग्रीव से जबरदस्ती विवाह करावा देना, हनुमान द्वारा अपनी पत्नी जो कि रावण की भांजी थी, उसका और उसके पुत्र मकरध्वज का भरी जवानी में त्याग कर देना, जैसे विषयों पर यह वैष्णव कथावाचक आखिर झूठ का सहारा क्यों लेते हैं !
और कहते हैं कि रावण दुश्चरित्र और अहंकारी था ! क्या इन्द्र जैसे अय्याश षडयंत्रकारी के उकसाने पर किसी का वंश मूल सहित उसकी हत्या कर देना, चाहे भले ही बाद में राम को धर्म गुरु वशिष्ठ द्वारा दुकराये जाने पर उन्हें “हत्याहराणी” नामक स्थान पर जा कर प्राश्चित करना पड़ा हो या भाई-भाई में फूट डालकर युद्ध को छल से जीत लेना ही ‘धर्म’ है !
रावण ज्ञानी था ! इसके अनेकों प्रमाण आज भी हमारे धर्म ग्रंथों में मिलते हैं ! यजुर्वेद में तंत्र के कृष्ण पक्ष का निर्माण रावण ने ही किया था ! जिसे अंततः वैदिक आर्यों ने स्वयं मान्यता दी ! रावण ज्योतिष ग्रंथों और अदभुत तात्रिक ग्रंथों का भी रचैता था ! जो बाद में समस्त तंत्र और ज्योतिष का आधार बना !
रावण कृत शिव ताण्डव स्तोत्र का सस्वर गायन पुरातन काल से आज तक लगातार हो रहा है ! इसका कोई विकल्प वैष्णव लेखक आज नहीं लिख पाये ! आप स्वयं बतलाईये क्या मात्र त्याग और परिश्रम पर आधारित “रक्ष संस्कृति” की स्थापना के कारण रावण “राक्षस” हो गया और हमने उसके गुणों को भुला दिया !
फिर भी राम द्वारा कदम-कदम पर ज्ञानी और तपस्वी ब्राह्मण के साथ किये गये छल के बाद भी हमने उन्हें भगवान बना दिया ! जबकि राम को अपने कृत्यों के कारण सामाजिक बहिष्कार से जूझते-जूझते अंतत: अनिंद्र का रोगी हो जाने के कारण सरयू नदी में कूद कर आत्महत्या करनी पड़ी थी ! क्योंकि छली व्यक्ति को ईश्वरीय विधान कभी माफ़ नहीं करता है !!