धर्म शास्त्रों का कोई औचित्य नहीं है, यदि वह शुद्ध नहीं हैं !

हमारा प्राचीनतम इतिहास राजा परीक्षित के राज्यारोहण तक का पुराणों और थोडा बहुत महाकाव्यों में पाया जाता है ! लेकिन पुराण जैसे कि आज पाये जाते हैं वैसा गुप्त-काल से पहले नहीं पाये जाते थे ! गुप्त-काल के बाद उनमें मिलावट और विशेष कर धार्मिक दलबंदी भी बहुत की गयी है !

जिसका पूरा पूरा लाभ अंग्रेज इतिहासकारों ने उठाया और उन्होंने साक्ष्यों के आभाव में इसे मिथ अर्थात काल्पनिक घोषित कर दिया ! किन्तु अंग्रेज विद्वान पार्जिटर के गहन अध्ययन के पश्चात यह माना जाने लगा कि पुराणों में हमारा क्रम बध्य इतिहास दिया गया है ! अब तो यह भी सिद्ध हो गया है कि पुराणों दिया गया इतिहास वेदों के पूर्व का भी माना जा सकता है ! हमारी प्राचीनतम परम्परा उसमें सुरक्षित है तथा उसकी सामग्री पुरानी एवं मूल्यवान है !

आज अठारह महापुराण और अनेक उप-पुराण हैं, लेकिन शुरू में पुराण एक था, जिसे वैष्णव परम्परा के लोगों ने तैयार किया था ! बीच में वैष्णव परम्परा के पतन होने के कारण इसका तारतम्य टूट गया ! सूत्र खो गये और पुरानी परम्परायें टूट गयी, जो कुछ थोडा बहुत याद रहा, वह सब कुछ वेदव्यास द्वारा पुनः एकत्रित कर दिया गया ! जिसकी सामग्री वेद व्यास ने एकत्रित करके अपने शिष्य वैशम्पायन को दी थी ! जिसे पृथु के काल से सूत जी को यह कर्त्तव्य सौंपा गया था कि वह पुराण याद करें और वैष्णव परम्परा के विस्तार के लिये लोगों को सुनायें !

कलांतर में धर्म और क्षेत्र के अनुसार धर्म की दुकान चलने वाले संस्कृत के विद्वानों ने अपने-अपने पुराणों की रचना कर ली ! इस तरह आज अठारह महापुराण और अनेक उप-पुराण हैं ! महाभारत युद्ध के बाद जब धर्म राजाओं के युद्ध में मर जाने के कारण धर्म का क्षय हुआ तो विकृत स्व निर्मित पुराण का जितनी तेजी से प्रचालन हुआ उतना पहले कभी नहीं हुआ था !

पहले पुराण वेद आदि को याद किया जाता रहा है ! अपनी विशालता के कारण पाठ मुंह दर मुंह बदलता रहा है और पुराना पुराण खोता रहा एवं नया जुड़ता रहा ! बाद में भारत के भिन्न-भिन्न भागों में रहने वाले विद्वानों ने आर्थिक कारणों से पुराणों में अपने-अपने क्षेत्र के राजाओं को अत्यधिक महत्त्व दिया तथा दूसरों को कम ! इसके बाद जब हिन्दू धर्म में अनेक मत प्रचलित हुये तो हर मतानुयायी ने अपने मत को प्रमुखता देने के कारण पुराण को उसी के अनुसार परिवर्तित कर दिया !

तथ्य कम होता चला गया, और धार्मिक आडम्बर बढ़ता चला गया ! प्रदेश और धर्म के कारण मूल पुराण के अठारह मुख्य भाग तथा सौ से ऊपर उप-भाग हो गये ! विद्वानों ने परिश्रम किया और इन सब के पाठों को मिलाकर खोज निकाला कि मूल पुराण एक ही था और इन सबमें एक ही इतिहास पाया जाता है, किसी में अधिक, किसी में कम और किसी में अव्यवस्थित ! यही हाल रामायण और महाभारत का है और जहाँ पुराण, महाकाव्यों एवं वेदों का वर्णन बिलकुल मिल जाता है, वहां तो हम ठोस भूमि पर खड़े हैं ! शेष सब मिलावटी ग्रन्थ हैं !

पुराण में वर्णित है कि पांडवों पांचवें वंशज निचक्षु के समय ह्स्त्नापुर पर टिड्डियों का आक्रमण हुआ था तथा गंगा में बाढ़ आने के कारण वह नष्ट हो गया पांडवों का राज्य नष्ट हो गया और कुरुओं ने गंगा नदी से तीन सौ मील नीचे जाकर प्रयाग के निकट कौशाम्बी में नई राजधानी बसाई, जो बुद्ध के समय तक बहुत प्रसिद्ध थी ! 1956 में हस्तिनापुर की खुदाई ने यह सिद्ध कर दिया है कि बाढ़ के कारण यह विनष्ट हुआ था ! यह उदाहरण पुराण में इतिहास की सत्यता को इंगित करता है !

विदेशी कहते हैं कि हिन्दू इतिहास लिखना नहीं जानते थे ! किन्तु यह बात ठीक नहीं है, जिन हिन्दुओं ने लाखों पुस्तकें धर्म, दर्शन, अर्थशास्त्र, नाट्य आदि अनेक शास्त्रों पर लिखीं, वे इतिहास से अछूते कैसे रह सकते हैं ? विदेशी आक्रमणों के समय हमारा सारा साहित्य जला दिया गया ! ये ज्ञान-विज्ञान की पुस्तकें अधितर, चीन और बृहत्तर भारत में मिलीं या भारत के गांवों में जहाँ जनता ने प्राण पर खेलकर धर्म-शास्त्रों को छिपाए रखा ! बाहर वाले हमारे इतिहास में क्या रूचि रख सकते हैं ? तथा देश में इतिहास की पुस्तकों के साथ वह मान्यता नहीं थी, जो धर्मशास्त्र आदि की थी ! हुएन त्सांग ने लिखा है कि हर राजा के दरबार में इतहास-लेखक रहता था !

कौटिल्य ने भी अर्थशास्त्र में इतिहास-लेखन पर बल दिया है और वायु पुराण में कहा गया है—- प्राचीन महापुरुषों के अनुसार, सूत का प्रमुख कर्त्तव्य था कि वह देवों की, ऋषियों की तथा महापराक्रमी राजाओं की वंशावली रखे और महापुरुषों कि परम्परा का यथा-तथ्य रखे ! पार्जिटर तथा अन्य कई इतिहास ज्ञाता मानते हैं कि इन्हीं सूतों की वंशावली को एकत्र करके महर्षि वेदव्यास ने असली पुराण लिखा था !

बाद कई लेखकों ने अपने देवी-देवताओं की स्तुति में असली पुराण का भाग लेकर तथा अपनी ओर से नई-नई बातें मिलाकर अलग-अलग पुराण रचे ! जो एक इतिहास की पुस्तक थी, वह बंटकर धर्म के ढ़कोसलों में जा छिपी ! इस समय स्थित सब पुराणों का अध्ययन तुलनात्मक दृष्टि से करके प्राचीन इतिहास का कलेवर खोज निकाला गया है ! यह प्राचीन इतिहास पर्याप्त विश्वसनीय है और अनेक स्थानों पर वेदों से अनुमत होता है !

वेद में जीवन और धर्म के विषय में मनुष्य ने आरम्भ से जो सोचा एवं सीखा है, वेद उसका संकलन है ! सभ्यता के सुदूर क्षितिज से जीवन कैसे जीया जाता था, कैसे वह धारण किया जाता था, इस विषय पर मन्त्र-द्रष्टा ऋषियों ने जो सोचा और कहा, वह उनकी पीढ़ियों ने मौलिक और मौखिक रूप से सुरक्षित रखा ! स्थान की कमी के कारण जब वेद चारों ओर फैले तो उन्होंने एक विशेष वैष्णव ऋषि-वर्ग को यह मन्त्र और सूक्तों को स्मृति में संजोये रखने का कार्य सौंपा ! जिससे उनमें एकरूपता बनी रहे !

इनको सर्व प्रथम रावण ने बाद में वेदव्यास ने एकत्रित करके चार भागों में विभाजित किया और अपने चार शिष्यों को पढ़ाया ! पुराण वैष्णव मनु-पुत्रों का इतिहास है ! स्वायम्भुव मनु के साथ जो देव पर्वतों से समतल भूमि पर उतर कर आये, उनमें सप्तर्षियों ने वेद को स्मरण रखा तथा सूत जी और मगध परम्परा वादियों ने उनका इतिहास एवं उन्हें सुरक्षित रखा !

अंग्रेज भारत में लंबे समय तक स्थाई शासन करना चाहते थे किंतु “अंग्रेज विदेशी हैं और इनका भारत में रहना भारतीय संस्कृति के लिये खतरा है !” इस विचारधारा को समाप्त करने के लिए अंग्रेजों ने एक बड़ी रणनीति का सहारा लिया !

अंग्रेजों के शासन काल तक अनेकों धर्म ग्रंथ तक्षशिला और नालंदा जैसे विश्वविद्यालय के पुस्तकालयों में जलकर जलाकर मुसलमानों द्वारा नष्ट कर दिये गये थे ! जिसका लाभ अंग्रेजों ने खूब उठाया ! उन्होंने भाड़े पर संस्कृत के विद्वानों को एक मोटी रकम देकर नये धर्म ग्रंथों का निर्माण करवाया और छपा तकनीक के विकसित हो जाने के बाद उन धर्म ग्रंथों को पुस्तक रूप में छाप कर समाज में बटवाया !

और उस समय जिन भारतीयों ने अंग्रेजों के इस धर्म ग्रंथ के विकृत करने में सहयोग किया, उन्हें अंग्रेजों ने बहुत ही सस्ते दामों पर कागज उपलब्ध करवाया और मशीनें आदि लगवाने के लिये आर्थिक मदद की ! उन सेठों की समाज में सम्मान प्रतिष्ठा स्थापित करवाई ! जिससे भारत के धर्म ग्रंथों को आसानी से विकृत किया जा सके !

आज जिन धर्म ग्रंथों पर हम शास्त्रार्थ या युद्ध कर रहे हैं ! इनमें से अधिकांशत: वही विकृत धर्म ग्रंथ है, जो पूर्व में या तो सुख के लोभी लेखकों द्वारा लिखे गये या धन के लालच में अंग्रेजों द्वारा लिखवाये गये थे !!

अपने बारे में कुण्डली परामर्श हेतु संपर्क करें !

योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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