गर्भ में आत्मा का प्रवेश गर्भ धारण के साथ ही होता है ! : Yogesh Mishra

व्यवहार में मन, बुद्धि और चित्त का एक सा ही अर्थ बतला देते हैं ! किन्तु ध्यान से देखें तो इन सब में बहुत बड़ा भेद है ! प्रपञ्चसार तन्त्र के अनुसार मन, इंद्रियों की तन्मात्रा के द्वारा विषयों को ग्रहण करता है ! उसका काम संकल्प और विकल्प, समर्थन एवं विरोध का निर्णय लेना है ! जबकि चित्त साक्षी भाव से केवल इन विचार और संस्कारों का संरक्षण और संचय करता है ! एक द्रष्टा की भांति ! बुद्धि संकल्प और विकल्प के मध्य पूर्वस्मृति और संस्कारों से प्रभाव से निर्णय का चयन करती है ! अर्थात सब अलग अलग हैं और सबके कार्य अलग अलग हैं !

जीव संसार का अंश है ! इसका अर्थ यह नहीं कि जीव जड़ है ! अपितु संसार में क्रियाशील आत्मा को जीव भले कह दें ! किन्तु यह मानव शारीर को संचालित करने वाली ईश्वरीय ऊर्जा है ! क्योंकि यह ईश्वरीय ऊर्जा सभी में एक ही है अत: मनुष्य और मनुष्य में भेद नहीं किया जा सकता है !

इसका एकदम सरल उत्तर है उपनिषदों में है ! जैसे स्फटिक के पास लाल, पीले, नीले, पुष्प या वस्त्र रखने से स्फटिक भी वैसे ही वर्ण का दिखने लगता है ! ठीक वैसे ही आत्मा निर्लिप्त होने पर भी अंतःकरण में संचित संस्कारों के प्रभाव से वह अलग अलग भास्ती है किन्तु होती नहीं ! इसीलिये तत्वबोध द्वारा इस भ्रम का नाश अनिवार्य है और इस भ्रम का नाश होने पर व्यक्ति कर्मबन्धन से मुक्त ही जाता है !

इसलिये कहा गया है कि यदि मोक्ष पाना है तो मन को निर्मल बनाओ, चित्त को शुद्ध करो ! क्योंकि आत्मा तो पूर्व से ही सदा और सर्वदा शुद्ध है ! उसमें दूषित संस्कारों के अंतःकरण के कारण दोष का भाव दिखता है ! किन्तु आत्मा कभी दूषित होती नहीं है !

बर्फ से ढका कोयला भी सफेद ही दिखता है और मैल से ढका दर्पण भी काला दिखता है, जो दिखता है, वह भ्रम है ! इसलिये सत्य को जानना है तो ऊपर के आवरण को हटाने के लिये तप करो !

भ्रूण में आत्मा गर्भाधान के साथ ही स्थित हो जाती है ! किन्तु शरीर के अवयवों की अव्यवस्था और अपूर्णता के कारण उसकी अभिव्यक्ति सम्भव नहीं हो पाती है ! जैसे जैसे भ्रूण का विकास होता है वैसे वैसे वह शारीर के माध्यम से अभिव्यक्ति प्रगट करने लगता है ! जब अभिव्यक्ति सम्भव हुई, तभी प्राय: लोग जीव का प्रवेश मानते हैं ! जबकि यह अभिव्यक्ति के पूर्व से ही मौजूद है !

जीवात्मा वायुमंडल से जल, जल से अन्न, अन्न से शुक्र और वहां से गर्भ में जाता अवश्य है, किन्तु अन्न के बीज और शुक्राणु को अलग अलग ही समझें ! ऐसे ही आत्मा तो गर्भाधान के ही समय गर्भ और फिर भ्रूण में समाहित हो जाती है, लेकिन उसका नामांकन, या सक्रियता और अभिव्यक्ति न होने से जब तीसरे या चौथे महीने में मूलभूत देह निर्माण के बाद अभिव्यक्ति होती है, तब प्रायः लोग आत्मा का प्रवेश हुआ कहते हैं ! किन्तु ऐसा है नहीं !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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