ब्रह्मांड का सबसे बड़ा रहस्य-एंटीमैटर : Yogesh Mishra

खुद को आईने में देखियह ! वहां भी आप ठीक आपने सामने आपने को वैसे ही पाते हैं ? तब आप कहेंगे कि यह मेरा प्रतिबिम्ब है ! ठीक इसी तरह कभी सोंचा है कि जिस पृथ्वी पर आप रहते हैं ! शास्त्रों के अनुसार उसी पृथ्वी जैसी हू-ब-हू दर्जनों पृथ्वीयां हैं !

बस कालक्रम में अंतर होने के कारण वहां के घटनाक्रम में समय का अंतर होता है ! अर्थात जो घटना आज यहां अभी आपके साथ घट रही होती है ! वहीं घटना पूर्व में किसी जगह घट चुकी होती है या आपके साथ घटने के बाद किसी अन्य जगह घटने वाली होती है !

पहले विज्ञान इसे नहीं मानता था ! किंतु जब से विज्ञान में ब्रह्मांड में प्रतिकण की खोज की है ! तब से विज्ञान भी इस सत्य को स्वीकार देने लगा है ! जो हमारे ऋषि-मुनियों ने योग शक्ति से देखकर हजारों साल पहले धर्म ग्रंथों में लिख दिया था !

अब एंटीमैटर से जुड़ी एक ताजा खबर यूरोपियन सेटेलाइट पामेला ने हमारी धरती के चारों ओर पहली बार एंटीमैटर की बेल्ट खोजी है ! यह खोज इतनी अनोखी है कि साइंस की दुनिया में इसे अब तक हुई सबसे महत्वपूर्ण खोजों में से एक समझा जा रहा है ! दुनिया की सबसे बड़ी पार्टिकिल कोलाइडर प्रयोगशाला सर्न और फर्मीलैब में वैज्ञानिक एंटीमैटर पैदाकर उसे समझने की कोशिशों में जुटे हैं !

लेकिन धरती के करीब ही एंटीमैटर की खोज ने विज्ञान जगत में एक नई हलचल पैदा कर दी है ! एंटीमैटर की खोज से घबराने की जरूरत नहीं ! इससे हमारी धरती को कोई खतरा भी नहीं है क्योंकि धरती के चारों ओर मौजूद इस बेल्ट में एंटीमैटर की मात्रा काफी कम है !

यह दुनिया और इस ब्रह्मांड में दो विपरीत शक्तियों का एक अनोखा संयोग भरा पड़ा है ! प्रकाश-अंधकार, निर्माण-विध्वंस-पुनर्निमाण, दिन-रात, अच्छाई-बुराई, शिव-शक्ति, ऋणावेश-धनावेश, इनर्जी-डार्क इनर्जी आदि आदि ! इसी तरह मैटर-एंटीमैटर भी प्रकृति की व्यवस्था का अंग हैं !

आइए, अब समझते हैं कि एंटीमैटर आखिर है क्या ? पदार्थ के तीन स्वरूप हैं, ठोस, द्रव और गैस और हमारे चारों ओर मौजूद सभी चीजें और हम खुद पदार्थ के इन्हीं तीनों स्वरूपों से रचे हैं ! लेकिन पदार्थ की यह ऊर्जा इतनी सूक्ष्म हैं कि इन्हें हम सामान्य आंखों से नहीं देख सकते ! यह सूक्ष्म अणु के रूप में हैं ! जिनकी संरचना परमाणुओं से हुई है और परमाणुओं के भीतर एक और दुनिया है ! जहां केंद्र में प्रोटान और न्यूट्रान का नाभिक है !

जैसे हमारे सौरमंडल का केंद्र सूरज और ग्रहों की तरह इसकी रिक्रमा करते हुए इलेक्ट्रान्स ! परमाणु की सूक्ष्मतम दुनिया और सौरमंडल के विस्तार वाली प्रकृति की इस अनोखी व्यवस्था में एक अदभुत आध्यात्मिक और दार्शनिक समानता है ! परमाणु के भीतर झांकने में हमें बस एक दशक पहले ही सफलता मिली है और पता चला है कि परमाणु के भीतर केवल प्रोटान, न्यूट्रान और इलेक्ट्रान ही नहीं, बल्कि 16 या शायद इससे भी ज्यादा अलग-अलग गुण-धर्म वाले ऊर्जा कण मौजूद हैं !

परमाणु के भीतर की यह अनोखी दुनिया लंबे वक्त तक रहस्यों में लिपटी रही है ! वैज्ञानिक प्रोटान, न्यूट्रान और इलेक्ट्रान के बारे में कुछ भी नहीं जानते थे ! तब ब्रिटिश भौतिकशास्त्री पॉल एड्रियन मॉरिस डाइरेक ने परमाणु के भीतर प्रोटान, न्यूट्रान और इलेक्ट्रान की बात सामने रखी और खासतौर पर इलेक्ट्रान के व्यवहार और उसके गुणधर्म का पता लगाया !

लेकिन पॉल डाइरेक जो कह रहे थे ! वह कुछ अधूरा सा ही था ! यह कमी तभी पूरी हो सकती थी अगर वहां इलेक्ट्रान से मिलता-जुलता, बिल्कुल किसी मिरर इमेज यानि प्रतिबिम्ब की तरह लेकिन विपरीत आवेश वाला कोई जुड़वां ऊर्जा कण भी मौजूद हो ! पॉल डाइरेक ने इसे ‘एंटीइलेक्ट्रान’ या ‘पॉजिट्रॉन’ कहा !

इलेक्ट्रॉन ऋणात्मक आवेश वाला ऊर्जा कण है ! जबकि इसका प्रतिबिम्ब पॉजिट्रॉन धनावेशित ऊर्जा कण ! पॉजिट्रॉन की तरह प्रोटान के एंटीप्रोटान और न्यूट्रान के एंटीन्यूट्रान होने की बात भी सामने आई ! पॉजिट्रॉन, एंटीप्रोटान और एंटीन्यूट्रान की अवधारणा इतनी अनोखी थी कि पॉल डाइरेक खुद हतप्रभ रह गए कि आखिर ऐसा अनोखा विचार उन्हें सूझा कैसे? क्योंकि प्रोटान, न्यूट्रान और इलेक्ट्रान के संयोग से पदार्थ बनता है ! इसका मतलब यह हुआ कि एंटीप्रोटान, एंटीन्यूट्रान और पॉजिट्रॉन के संयोग से जो चीज बनती है वह पदार्थ की मिरर इमेज या प्रतिबिम्ब यानि एंटीमैटर या प्रतिपदार्थ है !

ठीक इसी तरह हमारे ऋषियों, मुनियों, महात्माओं ने योग साधना द्वारा ब्रह्मांड की अलौकिक शक्तियों का जब अध्ययन किया तब उन्होंने पाया कि हमारे पृथ्वी के प्रतिबिंबि स्वरूप अन्य भी बहुत सी पृथ्वीयां हैं ! लेकिन उन्हें अपनी क्षमताओं की कमी के कारण देख समझ जान नहीं पाते हैं !

उन प्रतिबिंबित पृथ्वीयों पर भी इसी पृथ्वी की तरह जीवन है ! किंतु कालक्रम के परिवर्तन के कारण उन में घटने वाली घटनाओं में समय की समानता नहीं होती है ! जो घटना आज हमारी पृथ्वी पर घट रही है ! वह किसी अन्य पृथ्वी पर इससे पूर्व घट चुकी होती है या भविष्य में घटने वाली होती है !

इस बात की सत्यता को इस तरह भी समझा जा सकता है कि जब हमारे साथ कोई अनिष्ट होने वाला होता है तो हमें उस अनिष्ट की सूचना प्रकृति द्वारा पूर्व में ही दे दी जाती है ! अब हम अपनी हठधर्मिता के कारण या प्रकृति के प्रति संवेदनशील न होने के कारण उस पर ध्यान नहीं देते हैं ! लेकिन प्रकृति हर संभावित होने वाली घटना से हमें अवगत करती है !

यही ब्रह्मांड के प्रतिकण का विज्ञान है ! जिसको हमारे शास्त्र भी प्रमाणित करते हैं !!

अपने बारे में कुण्डली परामर्श हेतु संपर्क करें !

योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

 -: सम्पर्क :-
-090 444 14408
-094 530 92553

Check Also

प्रकृति सभी समस्याओं का समाधान है : Yogesh Mishra

यदि प्रकृति को परिभाषित करना हो तो एक लाइन में कहा जा सकता है कि …