ध्यान और मेडिटेशन में अंतर है ! : Yogesh Mishra

आजकल मेडिटेशन को ध्यान बतलाकर पूरे विश्व में करोड़ों रुपये का धंधा किया जा रहा है जबकि मेडिटेशन का तात्पर्य मात्र एकाग्रता से है ! जिसको दूसरे शब्दों में कंसंट्रेशन भी कहा जा सकता है और ध्यान भारतीय सनातन अध्यात्म पद्धति की एक समग्र प्रक्रिया है जिसके तहत मनुष्य का संपूर्ण व्यक्तित्व ही परिवर्तित हो जाता है !

आज के तनावपूर्ण जीवन में जब व्यक्ति का मस्तिष्क निरंतर भागदौड़ से थक जाता है तो उसके एकाग्रता में कमी आने लगती है ! जिस कारण उसको अनावश्यक मानसिक तनाव होता है ! ब्लड प्रेशर बिगड़ जाता है, पाचन शक्ति कमजोर हो जाती है और व्यक्ति सही समय पर यह निर्णय नहीं ले पाता है कि उसे कब क्या करना चाहिये !

उस स्थिति में अनेकों दवाइयों का निरंतर प्रयोग करने के बाद भी उसके मानसिक तनाव में कोई विशेष लाभ नहीं होता है ! उस स्थिति में व्यस्तता पूर्ण जीवन में व्यक्ति को अपने मस्तिष्क को विश्राम देने के लिये कुछ देर एकांत में शांत मन से बैठना चाहिये ! इसको ही मेडिटेशन कहते हैं ! इस मैडिटेशन से मस्तिष्क को कुछ विश्राम मिल जाता है और व्यक्ति का शारीरिक स्वास्थ्य अस्थाई रूप से ठीक हो जाता है किंतु कुछ समय बाद व्यक्ति को पुनः अपनी वही पुरानी स्थिति प्राप्त हो जाती है !

किंतु ध्यान इससे सर्वथा भिन्न है “ध्यान” महर्षि पतंजलि द्वारा विरचित योगसूत्र में वर्णित अष्टांगयोग के सातवें चरण का एक आवश्यक अंग है ! यह आठ अंग यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान तथा समाधि है ! ध्यान का अर्थ किसी भी एक ईश्वरीय विषय की धारण करके उसमें मन को एकाग्र करना होता है और ध्यान के पूर्व व्यक्ति को छ: आध्यात्मिक चरणों से गुजरना होता है ! मानसिक शांति, एकाग्रता, दृढ़ मनोबल, ईश्वर का अनुसंधान, मन को निर्विचार करना, मन पर काबू पाना जैसे कई उद्दयेशों के साथ ध्यान किया जाता है ! जो व्यक्ति के सम्पूर्ण व्यक्तित्व को ही बदल देता है ! ध्यान का प्रयोग भारत में अनादि काल से किया जाता है !

ध्यान की पराकाष्ठा का व्यक्ति सीधा सीधा ईश्वरीय व्यवस्था में हस्तक्षेप करने तक का अधिकार प्राप्त कर लेता है ! ध्यान करने के लिये पद्मासन, सिद्धासन, स्वस्तिकासन अथवा सुखासन में बैठा जा सकता है ! शांत और चित्त को प्रसन्न करने वाला स्थल ध्यान के लिए अनुकूल है ! रात्रि, प्रात:काल या संध्या का समय भी ध्यान के लिए अनुकूल है ! ध्यान के साथ मन को एकाग्र करने के लिए प्राणायाम, नामस्मरण (जप), त्राटक का भी सहारा लिया जा सकता है !

ध्यान में ह्रदय पर ध्यान केन्द्रित करना, ललाट के बीच अग्र भाग में ध्यान केन्द्रित करना, स्वास-उच्छवास की क्रिया पे ध्यान केन्द्रित करना, इष्टदेव या गुरु की धारणा करके उसमे ध्यान केन्द्रित करना, मन को निर्विचार करना, आत्मा पे ध्यान केन्द्रित करना जैसी कई पद्धतियाँ है ! ध्यान के साथ प्रार्थना भी कर सकते है ! साधक अपने गुरु के मार्गदर्शन और अपनी रुचि के अनुसार कोई भी पद्धति अपनाकर ध्यान कर सकता है !

सदाचार, सद्विचार, यम, नियम का पालन और सात्विक भोजन से भी ध्यान में सरलता प्राप्त होती है ! ध्यान का अभ्यास आगे बढ़ने के साथ मन तो शांत होता ही है चित्त में शुद्धि भी होती है ! ध्यान में साधक अपने शरीर, वातावरण को भी भूल जाता है और समय का भान भी नहीं रहता ! उसके बाद उसे समाधि दशा की प्राप्ति होती है !

योगग्रंथो के अनुसार ध्यान से कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने की पूर्व आवश्यक प्रक्रिया है और साधक को इससे कई प्रकार की अलौकिक शक्तियाँ प्राप्त होती है ! पतंजलि योग में मुख्य आठ प्रकार की शक्तियों का वर्णन किया गया है !

मेडिटेशन के अभ्यास के दौरान हमारी दिमाग़ी तरंगें धीमी होकर 4-10 हर्ट्ज़ पर काम करने लगती हैं, जिससे कि हमें पूरी तरह से शांत होने का एहसास मिलता है ! इससे हमारे शरीर को भी अनेक लाभ मिलते हैं, जैसे कि बेहतर नींद आना, रक्तचाप में कमी आना, रोग-प्रतिरोधक क्षमता और पाचन प्रणाली में सुधार आना, और दर्द के एहसास में कमी आना ! ये सभी लाभ ध्यान से हमें अपने आप ही मिलने लगते हैं ! तनाव में कमी, ऊर्जा में वृद्धि, और रिश्तों में सुधार आने से हम सांसारिक कार्यों में भी सफलता प्राप्त करते हैं ! हम पहले से अधिक कार्यकुशल और उत्पादक हो जाते हैं ! साथ ही, जीवन की चुनौतियों का सामना पहले से बेहतर ढंग से कर पाते हैं !

जबकि ध्यान द्वारा व्यक्ति का संपर्क सीधा ईश्वरीय ऊर्जाओं से होने लगता है ! जिससे व्यक्ति का संपूर्ण व्यक्तित्व बदल जाता है और व्यक्ति प्रकृति को सीधे निर्देश देने की क्षमता प्राप्त कर लेता है ! ऐसी स्थिति में बहुत सी अप्रत्याशित सिद्धियां भी उसे प्राप्त होने लगती हैं ! जिसके कारण वह अपना और समाज दोनों का कल्याण कर सकने में सक्षम हो जाता है !

ध्यान के उपरांत अंतिम चरण समाधि का ही शेष रह जाता है जब व्यक्ति की जीवनी ऊर्जा का ईश्वरी ऊर्जा में विलय हो जाता है और व्यक्ति मोक्ष को प्राप्त कर लेता है

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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