पृथ्वीराज चौहान चौहान वंश के राजा थे ! उनका राज्य वर्तमान राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली, पंजाब, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों तक फैला था ! उनकी राजधानी अजयमेरु आधुनिक अजमेर में स्थित थी !
शुरुआत में पृथ्वीराज ने कई पड़ोसी हिन्दू राजाओं के खिलाफ़ सैन्य सफलता हासिल कर उनकी बेटियों से जबदस्ती विवाह कर लिया था !
इस तरह उनकी चौदह पत्नियाँ थी ! जिनके नाम इस प्रकार हैं ! जम्भावती पडिहारी, पंवारी इच्छनी, दाहिया, जालन्धरी, गूजरी, बडगूजरी, यादवी पद्मावती, यादवी शशिव्रता, कछवाही, पुडीरनी, शशिव्रता, इन्द्रावती और संयोगिता गाहडवाल जो कि कन्नौज के राजा जयचन्द की पुत्री थी !
जो कि पृथ्वीराज चौहान के बहादुरी की चर्चा सुनकर उससे प्रेम करने लगी थी और स्वेच्छा से उनकी चौदहवीं बीबी बनने को तैय्यार थी ! जिसके लिये पृथ्वीराज चौहान से कई गुना अधिक हैसियत रखने वाले जयचंद्र गाहड़वाल ज्योतिषीय परामर्श और पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता की आयु में 20 वर्ष से अधिक का अंतर होने के कारण वह इस विवाह को तैय्यार नहीं थे ! अत: संयोगिता ने गुप्त रूप से पृथ्वीराज चौहान को पत्र लिख कर बुलाया और उनके साथ भाग गयी !
यह बात जयचंद्र गाहड़वाल को पसंद नहीं आयी अत: उन्होंने बेटी से सम्बन्ध तोड़ दिया ! लेकिन यह गलत है कि मात्र पृथ्वीराज चौहान को नीचा दिखने के लिये जयचंद्र ने मोहमद ग़ोरी से हांथ मिलाया था !
जयचंद्र गाहड़वाल राजपूत राजा विजयचंद्र के पुत्र थे ! कन्नौज का साम्राज्य जयचंद्र को अपने दादा गोविंदचंद्र के शाही खिताब विरासत में मिलीं थी !
जयचंद्र भारत का सबसे महान राजा था और उनके पास भारत का सबसे बडे राज्य क्षेत्र था ! उसकी सेना में दस लाख सैनिक थे और 700 हाथी थे ! वह स्वयं पृथ्वीराज चौहान को युद्ध में हरा सकते थे ! इसके लिये उन्हें मोहमद ग़ोरी से सहयोग लेने की आवश्यकता नहीं थी ! बल्कि हिन्दू इतिहासिक स्रोतों के अनुसार पृथ्वी राज चौहान से पहले जयचंद्र ने मोहमद ग़ोरी को कई बार युद्ध में हराया था !
इतना ही नहीं मोहमद ग़ोरी से युद्ध में लड़ते समय ही तीर लगने से जय चंद्र की मौत हुई थी ! बाद में इसका बदला उनके पुत्र हरिश्चंद्र गाहड़वाल ने मोहमद ग़ोरी को हरा कर लिया था और वाराणसी को छीन कर अपने राज्य में मिला लिया था ! इस तरह जय चंद्र की मोहमद ग़ोरी से मिले होने की बात गलत है !
सम्राट जयचंद के लिए इतिहास की पर्याप्त जानकारी के अभाव में उन्हें अपशब्द कहे जाते हैं जबकि ख्याति प्राप्त इतिहासकारों की कन्नौज के राजा सम्राट जयचंद के बारे में कट्टर राष्ट्र भक्त होने की राय बनती है !
यह बात नितांत असत्य है कि जयचंद ने शाहबुद्दीन को पृथ्वीराज पर आक्रमण करने के लिए आमंत्रित किया था ! शहाबुद्दीन अच्छी तरह जानता था कि जब तक उत्तर भारत में महाशक्तिशाली जयचंद को परास्त न किया जायेगा तब तक दिल्ली और अजमेर आदि भू-भागों पर किया गया अधिकार स्थायी न होगा ! क्योंकि जयचंद के पूर्वजों ने और स्वयं जयचंद ने तुर्कों से अनेकों बार मोर्चा लेकर उन्हें हाराया था !
अर्ली हिस्ट्री ऑफ इंडिया नामक इतिहास विषयक पुस्तक में इतिहसाकार स्मिथ ने इस आरोप का कहीं उल्लेख नहीं किया है !
यह धारणा कि मुसलमानों को पृथ्वीराज पर चढ़ाई करने के लिए जयचंद ने आमंत्रित किया, निराधार है ! उस समय के कतिपय ग्रन्थ प्राप्य हैं किन्तु किसी में भी इस बात का उल्लेख नहीं है ! पृथ्वीराज विजय, हमीर महाकाव्य, रंभा मंजरी, प्रबंध कोश व किसी भी मुसलमान यात्री के वर्णन में ऐसा उल्लेख नहीं है ! इतिहास इस बात का साक्षी है कि जयचंद ने चन्दावर में मोहम्मद गौरी से शौर्य पूर्ण युद्ध किया था ! इस तरह कभी भी जयचंद का मोहम्मद गौरी के साथ किसी भी समझौते या मित्रता का प्रश्न ही नहीं उठता है ! मुसलिम तुष्टीकरण के तहत इतिहास को गलत बतलाया गया है !!