अग्नि पुराण के अनुसार तंत्र के षट्कर्म में मारण के द्वारा बिना किसी अस्त्र-शस्त्र के शत्रु को समाप्त किया जा सकता है ! इसके लिए विपरीत प्रत्यंगिरा देवी की आराधना भी की जाती है, किंतु देवियों की आराधना व्यक्ति को अत्यंत सतर्कता के साथ करनी पड़ती है !
अतः तिब्बत के काला जादू पर काम करने वाले मनीषियों ने देव ऊर्जाओं से इतर अन्य ऐसी विधियां खोज निकाली थी ! जिनसे शत्रुओं को समाप्त किया जा सकता है ! इसी में एक विद्या है कुंभ मारण क्रिया !
इस विधि के अंतर्गत शमशान पर जब चिता जलाई जाती है, तो उस चिता के चारों जल देने के लिए घड़े का प्रयोग किया जाता है ! शरीर के जल जाने के बाद आत्मा प्राय: अपने प्यास को बुझाने के लिए उसी घड़े के अंदर निवास करने लगती है !
बाद में यही घड़ा किसी पीपल के पेड़ पर टांग दिया जाता है और उसमें 10 दिन तक निरंतर पानी भरा जाता है जिससे आत्मा अपनी प्यास बुझाती है !
ऐसी स्थिति में यदि शमशान पर भूलवश कोई घड़ा छोड़ गया हो, तो उस घड़े को अपने तंत्र स्थल पर ले आना चाहिए और उस घड़े में मात्र एक बार जल भरकर रख देना चाहिए तथा अपनी मानसिक शक्तियों से उस आत्मा को यह निर्देश देना चाहिए कि जो आपका शत्रु है उस घड़े के अंदर की आत्मा जब समाप्त कर देगी तभी उसे दुबारा पीने के लिये पानी दिया जाएगा !
यह तंत्र के हठयोग की प्रक्रिया है ! आप देखेंगे कि घड़े का पानी भी बहुत तेजी से सूखना शुरू हो जाएगा और उस पानी के सूखने के साथ ही आपके शत्रु की भी विभिन्न रोगों से मृत्यु होने लगेगी ! डाक्टर कुछ भी नहीं समझ पाएंगे और कुछ ही समय में आपका शत्रु मृत्यु को प्राप्त हो जायेगा !
इसका विधान, मंत्र और प्रक्रिया आदि जानबूझ कर गोपनीय रखी गयी है ! किन्तु यदि इस तरह की किसी समस्या में कोई व्यक्ति फंस जाये तो सर्व प्रथम योग्य व्यक्ति से संपर्क कीजिये ! यदि ऐसा संभव न हो तो उस व्यक्ति को अपने स्पर्श से 13 दिन तक एक घड़े में जल रखकर उस जल की पूर्ति निरंतर करते रहना चाहिए और इसके बाद वह घड़ा तालाब या बहते हुए पानी में मीठे बतासे रखकर प्रवाहित कर देना चाहिए ! इससे इस तंत्र से बचा जा सकता है !!