श्रीमद्भागवत गीता का ज्ञान कब अव्यवहारिक है : Yogesh Mishra

क्या आपने कभी विचार किया कि भारत के सभी तत्व ज्ञानियों का सबसे अधिक जोर श्रीमद्भगवद्गीता पर ही है ! क्योंकि इसे भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को ऐसे समय पर दिया था, जब अर्जुन अपने जीवन का निर्णायक युद्ध लड़ने जा रहे थे !

यह अवधारणा है कि अर्जुन जो अपने क्षत्रिय कर्म को त्याग चुके थे ! वह भगवान श्री कृष्ण द्वारा दिये गये श्रीमद्भागवत गीता के प्रवचन के बाद युद्ध में तत्पर ही नहीं हुए बल्कि उस युद्ध को जीतने में कृष्ण के छल और बल का मुख्य कारण भी बने !

अब प्रश्न यह है कि यदि कोई व्यक्ति श्रीमद्भागवत गीता सुनकर इतना आत्मज्ञानी हो सकता है कि वह अपने स्व धर्म अर्थात क्षत्रिय धर्म के निर्वहन के लिये अपने ही गुरु, पितामह, मित्र, भाई आदि की हत्या कर सकता है, जिनकी उसे वास्तव में रक्षा करनी चाहिये ! तो क्या यह श्रीमद्भगवद्गीता को सुनने का प्रयोजन व्यवहारिक है ?

इसका स्पष्ट उत्तर है कि जब किसी भी भक्त का समर्पण इस स्तर तक भगवान के प्रति हो कि भगवान स्वयं परिवार और संसार का विरोध करके उसे अपनी बहन दे दें और स्वेच्छा से स्वयं उस व्यक्ति को महा युद्ध में दिशा निर्देश दे रहे हों, तब भी उस व्यक्ति का विश्वास अपने सामने खड़े भगवान के प्रति दृण न हो रहा हो !

और भगवान को स्वयं उस व्यक्ति को श्रीमद्भगवद्गीता के ज्ञान की आवशयकता पड़े और फिर भी अर्जुन को विश्वास न हो, तब कृष्ण को अपना विराट रूप दिखाना पड़े और अन्तः ऊब कर अर्जुन से कहना पड़े “यथेच्छसि तथा कुरु” अर्थात “तेरी जो इच्छा है तू कर” !!

तो इसी से समझ लीजिये कि अर्जुन का विश्वास कृष्ण के प्रति कैसा रहा होगा !

अब प्रश्न है गीता के ज्ञान की उपयोगिता का !

तो जब भगवान कृष्ण अपने जीजा रिश्तेदार अर्जुन को स्वयं साक्षात् खड़े होकर गीता का रहस्य नहीं समझा पाये तो क्या संसार के आम आदमी को यह भगवा पहने आडम्बरी ज्ञानी पंडित गीता का रहस्य बतला पायेंगे !

इसीलिये मैं कहता हूँ कि गीता का ज्ञान आम व्यक्तियों के लिये नितांत अव्यवहारिक और व्यर्थ का ज्ञान है ! इसीलिये इसको सुनने के बाद व्यक्ति में ज्ञान तो नहीं पैदा होता है, हां ज्ञानी होने के अहंकार जरुर पैदा हो जाता है ! यही ब्राह्मणों के अहंकार का कारण भी है !

और व्यवहारिक रूप में यह देखा भी जाता है कि श्रीमद्भगवद्गीता पर प्रवचन देने वाले कथावाचक स्वयं ही अपने संपन्नता और ज्ञान के अहंकार में इतना डूबे हुए हैं कि वह स्वयं ही भगवान के अस्तित्व पर विश्वास न करते हुये स्वयं इस सांसार के दांव पेंच के कर्म में लगे रहते हैं !

श्रीमद्भगवद्गीता के ज्ञानियों की यह स्थिति ईश्वर के प्रति संपूर्ण समर्पण की नहीं है और यदि व्यक्ति ईश्वर के प्रति संपूर्ण रूप से समर्पित नहीं है और उसके अंदर स्वार्थ और अहंकार का स्थित छोटा सा भी अंश यदि मौजूद है तो उसके लिये श्रीमद्भगवद्गीता का नितांत अव्यवहारिक ज्ञान है !

इसलिए श्रीमद्भागवत गीता की दुहाई देने से पहले यह परम आवश्यक है कि श्रीमद्भगवद्गीता के उद्देश्य को समझ कर अपने आप को मानसिक और शारीरिक रूप से श्रीमद्भगवद्गीता के उपदेशों के प्रति तैयार करना चाहिये !

क्योंकि स्वार्थ और अहंकार में डूबा हुआ व्यक्ति शब्दों से तो श्रीमद्भगवद्गीता को जान समझ सकता है लेकिन अनुभूति के स्तर पर उसके लिये श्रीमद्भगवद्गीता का ज्ञान अव्यवहारिक ज्ञान है और श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान के उस ज्ञान के पीछे दिया हुआ सूक्ष्म सन्देश वह व्यक्ति कभी भी प्राप्त नहीं कर पायेगा !

इसलिए श्रीमद्भगवद्गीता के मूल उद्देश्य को जानने के लिए व्यक्ति को स्वार्थ और अहंकार से उभरना होगा ! तभी वह श्रीमद्भगवद्गीता के ज्ञान को आत्मसात कर सकेगा वरना तो श्रीमद्भगवद्गीता का ज्ञान इस संसार में हर स्वार्थी और अहंकारी व्यक्ति के लिये अव्यावहारिक ज्ञान ही है !!

अपने बारे में कुण्डली परामर्श हेतु संपर्क करें !

योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

 -: सम्पर्क :-
-090 444 14408
-094 530 92553

Check Also

प्रकृति सभी समस्याओं का समाधान है : Yogesh Mishra

यदि प्रकृति को परिभाषित करना हो तो एक लाइन में कहा जा सकता है कि …