जानिये: कौन से राजयोगों से व्यक्ति बन जाता है युग पुरुष,क्या आपकी कुंडली में भी है ऐसे योग ? जरूर पढ़ें ! Yogesh Mishra

कुण्डली के उपचय – त्रिषडाय तथा त्रिक भावों से बनने वाले राजयोग भी जातक ग्रंथों में पाये जाते है। ये राजयोग भी वास्तविक हैं तथा समाज में उच्च स्थान प्राप्त विशिष्ट व्यक्तियों की कुण्डलियों में देखे जा सकते हैं।

लग्र से उपचय स्थानों में समस्त शुभ ग्रह हों तो अति वसुमान् (धनाढ्य) योग शुभ योग होता है। यही फल चन्द्र से उपचय स्थानों में भी होता है। जितने अधिक से अधिक ग्रह (शुभ) स्थित होंगे उतना ही अच्छा योग होगा।

तृतीय भाव में शुभ ग्रह हो या शुभ ग्रह देखते हों और तृतीयेश अस्त न होकर अपनी स्व या उच्च राशि में सुस्थानों में स्थित हो तो शौर्य योग व्यक्ति को श्री राम के समान पराक्रमी बनाता है।

रात्रि का जन्म हो, चन्द्रमा दशम में कर्क राशि का हो, नीच या शत्रुराशि में स्थित ग्रह लग्न से त्रिषडाय (3,6,11) में स्थित हो तो छत्रपति राजयोग होता है।

कोई ग्रह तृतीय में उच्च में बैठा हो तथा शुक्र वर्गोत्तम में होकर नवम भाव में किसी अन्य ग्रह के साथ बैठा हो तो लक्ष्मी योग होता है।

वृष लग्न में तृतीयेश लग्न में, सूर्य चतुर्थ में स्वग्रही हो, लाभेश सप्तम में, दशम शनि स्वग्रही हो तो प्रतापी व बलवान राजा होता है।

मीन लग्र में चन्द्रमा लग्र में, षष्ठेश षष्ठ में एकादश में मंगल, एकादशेश द्वादश में हो तो राजा हो।

कन्या लग्न हो, दशमेश बुध लग्न में हो, सप्तम में गुरु हो, तृतीय भाव में सूर्य हो, तृतीयेश मंगल स्वग्रही तृतीय में ही हो, षष्ठïमभाव में शनि स्वग्रही हो और चतुर्थ में शुक्र हो तो राजयोग होता है।

जिस जिस भाव का स्वामी तृतीय अथवा एकादश में स्थित हो और जिस राशि अथवा नवांश में वहाँ स्थित हो वे यदि उसकी मित्र, स्वराशि हो अथवा शुभ ग्रहों से युत या दृष्टï हो तथा जिस तृतीय अथवा एकादश में वह स्थित है उसका स्वामी उच्च में हो तो शीघ्र ही अतुल सम्पति प्रदान करता है।

गुरु तीसरे भाव का स्वामी होकर शुभ होता है।

जो त्रिषडायाधीश यदि कन्देश होकर त्रिकोणेश से संबंध करे अथवा त्रिकोणेश होकर लग्रेश से संबंध करे तो योगकारी हो जाते हैं।

जिन भावों के स्वामी केन्द्र, त्रिकोण, तृतीय अथवा एकादश में अपने मित्र, स्व, उच्च या नवांशदि में स्थित होकर बलवान होकर सौम्य हों तथा उन स्थित स्थानों के स्वामी यदि अपनी उच्च राशि में स्थित हो तथा शुभ ग्रहों से दृष्टï हो तो वे ग्रह (अभीष्ट भावों में स्वामी) अपने भाव के फल में क्रमश: अतुल वृद्घि करते हैं।

जन्म काल में षष्ठभाव में सूर्य हो तथा शुक्र या बृहस्पति केन्द्र में हो तो वह मनुष्य अपने कुल में प्रसिद्घ, गुणी, हाथी घोडे आदि युक्त, जरीदार (उच्च स्तरीय मंहगे) कपडे पहनने वाला, जज्जावान्, धनवान् और दीर्घायु होता है।

कर्क लग्न हो, षष्ठेश गुरु लग्न में हो, दशम में सूर्य हो (उच्च का), एकादश भाव में तृतीयेश भाव में तृतीयेश बुध, शुक्र, (लाभेश स्वग्रही) व चन्द्र हो तो राजा हो।

मकर लग्न हो, लग्र में शनि हो, तृतीय में चन्द्रमा हो, षष्ठïभाव में लाभेश मंगल हो, षष्ठेश बुध कन्या (स्वराशि) में नवम में हो और तृतीयेश व्यय भाव में हो तो इन्द्र समान राजा हो।

कर्क लग्न में पूर्ण चन्द्रमा हो, तृतीयेश बुध सप्तम में हो, षष्ठï में सूर्य हो, लाभेश (शुक्र) चतुर्थ में हो, दशम में षष्ठेश गुरु हो, तृतीय में  शनि हो तथा दशमेश मंगल हो तो राजा हो।

शुक्र तथा चन्द्रमा तृतीय व लाभ में हो या परस्पर तृतीय-एकादश में बैठकर परस्पर देखते हो (राशि दृष्टिï से) अथवा कहीं भी बैठकर परस्पर देखते हो तो यह राजयोग कारी है।

लग्नेश यदि बली होकर एकादश भाव में हो तो जातक राजा होता है।

यदि अकेला शुक्र तृतीय अथवा एकादश में हो तो जातक राजा होता है।

यदि अकेला गुरु एकादश भाव में हो तो अनेकों निर्बल ग्रह क्या करेंगे जातक अवश्य राजा होता है।

ग्यारहवें भाव में चन्द्रमा हो तो राजा होता है।

लग्नेश यदि तृतीय भाव में अपने मित्र से युत या मित्र के घर में हो तो शत्रुरहित पृथ्वीपति होता है।

लग्न से ग्यारहवें भाव में कोई शुभ ग्रह हो और क्रूर ग्रह की राशि का चन्द्रमा हो, और दशम भाव में सौम्य ग्रह हो तो उसको राज्य प्राप्त होता है।

यदि तृतीय भाव में शुभ राशि हो उसमें शुभ ग्रह हो अथवा शुभ दृष्टï हो तो तद्भावोक्त सभी कार्यों में मंगल सुख होता है।

दूसरे और एकादश भाव के स्वामी आपस में स्थान परिवर्तन करें या केन्द्र में स्थित हों तो धन लाभकारी होते हैं।

लाभेश जिस भाव में हो उसका स्वामी शुभ ग्रह दृष्ट अथवा शुभ ग्रहों के बीच में होवे तो धन लाभ होता है।

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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