मित्रो जैसा की आप जानते है, इस्लाम धर्म के संस्थापक हजरत मोहम्मद थे। और मोहम्मद का जन्म 570 ई0 में मक्का सऊदी अरब में हुआ था। मोहम्मद के पिता का नाम `अब्द अल्लाह इब्न `अब्द अल-मुत्तलिब ( अब्दुल ) व माता का नाम अमीना बिन्त वहाब था । 24 सितम्बर 622 ई0 को इस्लाम धर्म दुनिया में आया । हजरत मोहम्मद की मृत्यु 8 जून 632 ई0 में हुई ।
मोहम्मद पैगम्बर के मरने के बाद इस्लाम मे दो गुट थे,और उनमे से एक गुट का यह मानना था कि खलीफा (जो सत्ता संभालेगा ) वही बनना चाहिए जिसे मोहम्मद पैगम्बर ने खुद चुना हो और जो पैगम्बर के खानदान का ही हो जबकि दूसरा गुट ख़लीफ़ा (सत्ता संभालने वाले को) बहुमत के आधार पर चुनना चाहते थे |
अब इन दोनों मे से जिस गुट के लोग ये कहते थे कि ख़लीफ़ा (सत्ता संभालने वाला) पैग़म्बर हजरत मोहम्मद का चुना हुआ हो या उनके खानदान का कोई व्यक्ति हो अर्थात जो हजरत मोहम्मद व उनके परिवार के प्रति वफादार थे वो ‘शिया'(इस्लाम का एक समुदाय) हुए और जो लोग ख़लीफ़ा बहुमत के आधार पर चुनना चाहते थे वो सुन्नी (इस्लाम का दूसरा समुदाय) हुए |
शिया और सुन्नी दोनों ही इस्लाम को मानने वाले थे | शिया और सुन्नी की लड़ाई राजनीतिक वर्चस्व से शुरू हुई | सुन्नी जनबल (संख्या) में ज्यादा थे और मतभेद के अत्यधिक बिगड़ने पर सुन्नी समुदाय ने पैग़म्बर के खानदान को ही एक एक करके ख़त्म करना शुरू कर दिया “कि न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी” | इस तरह से इस्लाम दो हिस्सों में बंट गया | एक तो वो जो पैग़म्बर की बातों और उनके आल औलाद को मानने वाला था शिया ! और दूसरा इस्लाम वो जो राजनैतिक दांवपेंच से बने खलीफाओं का इस्लाम था सुन्नी |
कालांतर में शिया अल्पसंख्यक मात्र 15 % रह गये और कमजोर हो गये और सुन्नी सशक्त होते चले गये | यहीं से सुन्नीयों ने इस्लाम के मूल सिद्धांत ( शांति का संदेश, दूसरों भावनाओं का सम्मान करना, करुणा, दया, प्रेम, आदि ) मानवीय मूल्यों को भुलाकर वर्चस्व की लड़ाई के लिये इस्लाम के मानवीय सिद्धांतों का अपहरण कर लिया और आज जो लोग पूरी दुनिया में इस्लाम के नाम पर हिंसा, आतंकवाद, लूटपाट, कत्लेआम, धर्म परिवर्तन, दूसरे की संपत्ति को हड़प लेना, आदि कार्यों में लगे हुए हैं वह लोग मोहम्मद साहब द्वारा दिखाए गए मार्ग से अलग हटकर अपनी स्वनिर्मित इस्लाम की परिभाषा गठित करते हैं और अपने वर्चस्व को बढ़ाने के लिये लड़ते हैं और उसका प्रचार प्रसार करते हैं |