योग्य गुरु को योग्य शिष्यों की आवश्यकता क्यों होती है : Yogesh Mishra

गुरू ब्रह्मा गुरू विष्णु, गुरु देवो महेश्वरा !
गुरु साक्षात परब्रह्मा, तस्मै श्री गुरुवे नमः !!

अर्थात गुरु ही ब्रह्मा है, गुरु ही विष्णु है और गुरु ही भगवान शिव हैं ! गुरु ही साक्षात परब्रह्म हैं, ऐसे गुरु को मैं प्रणाम करता हूं !

अब प्रश्न यह उठता है कि यदि गुरु ही साक्षात परब्रह्म हैं, तो वह व्यवस्था को स्वयं परिवर्तित क्यों नहीं कर देता है ! इसके लिए उन्हें शिष्यों की आवश्यकता क्यों पड़ती है !

एक योग्य गुरु के लिये तंत्र के सहयोग से किसी भी व्यवस्था को बदल देना मात्र उसके मानसिक तरंगों का खेल है और प्रकृति भी उसके आदेशों को मानने के लिये बाध्य होती है !

किंतु काल की गति में उस गुरु द्वारा दिये गये प्रकृति को निर्देश धीरे-धीरे क्षय को प्राप्त होते हैं और कालांतर में व्यवस्थायें पुनः विकृत होना शुरू हो जाती हैं !

इसलिए संवेदनशील योग्य गुरु सदैव यह चाहता है कि वह लोक कल्याण के लिये जो व्यवस्था स्थापित कर रहा है, वह उसके भौतिक शरीर में न रहने के बाद भी निरंतर चलती रहें !

इसलिए एक दूरदर्शी, योग्य गुरु सदैव ऐसे शिष्यों की टोली खड़ी कर देता है, जो गुरु के भौतिक शरीर में न रहने के बाद भी समाज में नव उदित विकृतयों की अनुभूतियों को इकट्ठा कर गुरु की दी हुई परंपरा गत विद्या के द्वारा समाज को सुरक्षित तथा लाभान्वित करता रहता है !

योग्य गुरु वही है जो मात्र अपने निजी हित या निजी कल्याण की चिंता नहीं करता है बल्कि वह यह चाहता है कि जिस तरह मैं सुखी हूं ! उसी तरह दुनिया के सभी प्राणी सुखी रहें !
इसीलिए एक योग गुरु यदि स्वयं अकेले किसी व्यवस्था परिवर्तन की बात करेगा तो उससे वह स्वयं अपने जीवन काल में तो लाभान्वित होगा और समाज के कुछ लोगों को लाभान्वित करेगा किंतु समाज को प्राप्त होने वाला यह लाभ अल्पकालीन और अस्थाई होगा !

इसीलिए समाज को प्राप्त होने वाले लाभ में स्थिरता देने के लिए सदैव योग्य गुरु अपने जीवन काल में ही अपने शिष्यों की एक टोली बनाकर समाज को दे देता है ! जो शिष्यों की टोली गुरु के भौतिक शरीर में न रहने के उपरांत भी गुरु की बनाई हुई उस व्यवस्था को निरंतर जारी रखता है !

और बाद में उस योग्य गुरु द्वारा निर्मित वह शिष्यों की टोली ही गुरु शिष्य परंपरा के तहत अन्य शिष्यों को जागृत कर व्यवस्था को सुव्यवस्थित बनाये रखते हैं ! यही सत्य सनातन गुरु शिष्य परंपरा है !
इसीलिए योग्य गुरु को भी योग्य शिष्यों की आवश्यकता होती है !!

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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