आखिर ईश्वर हमारी रक्षा कर क्यों नहीं रहा है ! : Yogesh Mishra

चारों तरफ त्राहि-त्राहि मची हुई है ! बड़े से बड़े संपन्न योद्धा भी आज अपने घरों में छिपे बैठे हैं ! लाशों के ढेर सड़कों पर बिखरे पड़े हैं ! जिन्हें बटोरने वाला भी कोई नहीं है ! सभी के मन में एक ही प्रश्न बार-बार खड़ा होता है कि ईश्वर तू मेरी रक्षा क्यों नहीं कर रहा है ?

इसका जवाब है कि हम सभी अपने आहार-विहार, विचार, संस्कार, जीवन शैली से दूषित होकर नर पिशाचों की तरह अब ईश्वर का भी अंश खा रहे हैं ! सनातन जीवन शैली में प्रत्येक परिवार में पूर्व में चार दान अवश्य रूप में निकलते थे ! दोनों एकादशी, अमावस्या और पूर्णिमा ! इसके अलावा जो प्रमुख तीज त्योहार होते थे ! उनको भी प्राय: ब्राह्मणों या कन्याओं को बुलाकर भोजन करवाया जाता था ! लोगों में अहंकार की जगह दया और प्रेम था !

घर में एक रोटी गाय को, एक रोटी कौवे को तथा एक रोटी कुत्ते को नियमित रूप से दी जाती थी ! प्रत्येक घर में जो भी खाद्य सामग्री बनती थी ! उसका एक अंश ईश्वर को भोग के रूप में निश्चित रूप से दिया जाता था !

ठीक इसी तरह पूर्व में शायद ही कोई ऐसा घर हो ! जिसमें दैनिक यज्ञ न होता हो अर्थात कहने का तात्पर्य यह है कि ब्रह्मांड में व्याप्त ईश्वरी ऊर्जाओं का पोषण हर आम जनमानस अपनी सुविधा, संस्कार, क्षमता और ज्ञान के अनुसार किया करता था !

उसका परिणाम यह था कि रोगों का प्रकोप कम था ! लोग स्वस्थ और निरोगी होकर लंबी आयु तक जिया करते थे ! व्यक्ति का बौद्धिक चातुर्य जीवन के अंतिम समय तक उसका साथ देता था ! परिवार संयुक्त होते थे ! अतः बुजुर्गों को अपने जीवन यापन के लिये किसी भी वृद्धा आश्रम में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ती थी !

बच्चों को संस्कार देने के लिये घर में ही दादी, नानी का गुरुकुल प्राप्त था ! किन्तु जब से हमने पश्चिम की पैशाचिक संस्कृति का अनुपालन किया ! तब से संयुक्त परिवार बिखर गये ! घरों से दिये जाने वाला ईश्वर अंश समाप्त हो गया ! जिससे नित्य प्रति हमारे संस्कारों का ह्रास्य होने लगा ! ईश्वर अंश ईश्वर को मिलना बंद हो गया ! जिससे हम टूटते चले गये !

आज स्थिति यह है कि हम चाह कर भी सारे सांसारिक भोग उपलब्ध होने के बाद भी कुछ भी कर पाने में अक्षम हैं ! आज हमारे निकट पैशाचिक संस्कृत का हर सुख पड़ा है लेकिन हम उसका भोग नहीं कर पा रहे हैं !

ऐसी स्थिति में यदि हम अपने जीवन को सुख में बनाना चाहते हैं ! तो हमें पुनः ईश्वर में आस्था रखकर उसके अंश को उसे प्रदान करना होगा ! जो सनातन जीवन शैली की मान्यताएं हैं ! उनका निर्वहन करना होगा और ब्रह्मांड में व्याप्त ईश्वरीय ऊर्जा को पोषित करने के लिये उनको उनका अंश देना होगा !

इसकी शुरुआत हमें सर्वप्रथम किसी एक नियमित व्रत से करनी पड़ेगी ! क्योंकि हमारे शरीर और मस्तिष्क के अंदर इतनी विकृतियां भर गई हैं कि हम उनके शोधन के लिये जब तक नियमित रूप से निश्चित व्रत नहीं रहेंगे ! तब तक हमारा शरीर और मस्तिष्क दोनों ही ईश्वर से नहीं जुड़ पायेगा !

विचार कीजिये कि ज्ञान का जो दान कभी निःशुल्क दिया जाता था ! उसकी अब ज्ञान के बाजार में बोली लग रही है ! गोवंश जिसके रक्षा के लिये बड़े-बड़े युद्ध हुये ! आज वह खुलेआम क़त्ल खानों में काटे जा रहे हैं ! बेटियां जिन्हें लक्ष्मी का रूप मानकर कभी कन्यादान होता था ! आज उनकी हत्या गर्भ में ही कर दी जा रही है !

स्वर्ग से अवतरित मां गंगा में आज मल मूत्र बहाया जा रहा है ! श्रीमद भगवत गीता सेकुलरिज्म का शिकार हो गया है ! गुरुकुल उजाड़ दिये गये हैं और ईश्वर के मंदिरों पर बुलडोजर चलाये जा रहे हैं ! मंदिरों से ईश्वर के खजाने लूटे जा रहे हैं !

आखिर हम जब इतना सब कर रहे हैं तो ईश्वर हमारी रक्षा क्यों करेगा ? उसे हमें नष्ट कर ही देना चाहिये ! क्योंकि आज हम अपने हवस और सुख के लिये उसके घर को उजाड़ रहे हैं !!

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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