ईसाई बाहुल्य क्षेत्र में इस्कॉन मंदिर क्यों नहीं बनता है ? Yogesh Mishra

इस्कॉन अर्थात अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ (अंग्रेज़ी: International Society for Krishna Consciousness – ISKCON;), को “हरे कृष्ण आन्दोलन” के नाम से भी जाना जाता है ! इसे 1966 में न्यूयॉर्क नगर में भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद ने प्रारंभ किया था !

इस्कॉन का अर्थ अंतर राष्ट्रीय कृष्ण भावनामृत संघ है ! उनका उद्देश अपने गुरुदेव की आज्ञा का अक्षरशः पालन करना था कि भगवान श्रीकृष्ण और श्रीराम भक्ति का पूरी दुनिया में प्रसार प्रचार हो और यही इस संस्था का भी उपदेश व उद्देश् है ! आज देश-विदेश में इसके अनेक मंदिर और विद्यालय है !

श्रील प्रभुपाद जी की इच्छा थी की उनके बाद उनके दुनियाभर के शिष्य इस संस्था को आगे बढ़ाये और कृष्ण भक्ति का प्रसार प्रचार पूरी दुनिया में फैलाये ! इस्कॉन संस्था के पदाधिकारियों का कहना है कि इस्कॉन संस्था में किसी भी देश का अत्याधिकार विशेषाधिकार नहीं हैं ! किसी भी दृष्टि से इस्कॉन अमेरिकी या विदेशी संस्था नहीं है अपितु अंतर्राष्ट्रीय संस्था हैं ! स्वामी श्रील प्रभुपाद जी एक मंदिर का अन्य मंदिरों पर निर्भर रहना पसंद नहीं करते थे, क्योकि इससे आलस्य को बढ़ावा मिलता है ! इसलिए उन्होंने पहले से ही यह योजना बनाई थी की कोई भी इस्कॉन का मंदिर दुसरे इस्कॉन के मंदिर पर निर्भर नहीं रहेगा !

श्रील प्रभुपाद जी चाहते थे की वृंदावन और मायापुर धाम में भगवान् कृष्ण के भव्य मंदिरो का निर्माण हो जिससे दुनियाभर के लोग भव्य मंदिरो के दर्शन करने आयें और वृंदावन/ मायापुर, भगवान् कृष्ण और चैतन्य महाप्रभु के बारे में अधिक से अधिक जान सकें ! उदहारण के तौर पर हम देख सकते हैं अमेरीका के प्रसिद्ध उद्योगपती हैनरी फ़ोर्ड जो अब अम्बरीष दास) के सुपुत्र अल्फेड फ़ोर्ड कलकत्ता के पास चैतन्य महाप्रभु की जन्मभुमि श्रीधाम मायापुर में जो इस्कॉन का प्रमुख केंद्र है दुनिया का सबसे विशाल मंदिर बनवाने में सहायता कर रहे है !

आप इंटरनेट पर इस्कॉन मायापुर लिख कर इस विशाल मंदिर का वीडियो देख सकते है ! इस्कॉन की धनराशि बाहर नहीं जाती बल्कि बाहर देशों के लोग जितना हो सकता है धनराशि से इन दो मंदिरो (वृन्दावन व् मायापुर) में सहायता करते हैं !

प्रभुपाद जी ने स्वयं हज़ारों शिष्य बनाये और अब उन शिष्यो के लाखों शिष्य व अनुयायी संसारभर मे कृष्ण भक्ति का जोर शोर व प्रमाणिकता से प्रचार कर रहे हैं ! आज लगभग दो करोड़ से अधिक विदेशी भगवान कृष्ण के शुद्ध भक्त बन चुके हैं और लाखों की संख्या में आजीवन ब्रह्मचारी ! जो गुरु शिष्य परम्परा द्वारा केवल शास्त्रोक्त कृष्ण भक्ति विदेशी स्कूल कालेज व विश्व विद्यालयों मे शिखा रहे हैं !

जब कि ज्योतिष और द्वारका पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी का दावा है कि इस्कॉन के मंदिरों से चढ़ावे की राशि अमेरिका भेजी जा रही है, क्योंकि इस्कॉन भारत में नहीं बल्कि अमेरिका में पंजीकृत संस्था है !

उन्होंने इस्कॉन अनुयायियों से पूछा कि वृंदावन में ‘राधे-राधे’ कहा जाता है और मंदिर बनवाए जाते हैं, लेकिन झारखंड, केरल, गोवा, अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, सिक्किम और त्रिपुरा में जाकर अनुयायी क्यों नहीं मंदिर बनाते हैं ! उन्होंने कहा, ‘अनुयायी वहां इसलिए नहीं जाते हैं कि वहां पर ईसाई उनके बंधु बनकर बैठे हुये हैं !’ शंकराचार्य ने सरकार से मांग की है कि इन मंदिरों से जो चढ़ावा विदेश जाता है, उसकी जांच की जाये !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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