चीन से इतना काल्पनिक भय क्यों : Yogesh Mishra

चीन भारत का पड़ोसी देश है ! भारत की सभ्यता, संस्कृति, धर्म, विचारधारा सभी का चीन पर गहरा प्रभाव पड़ा है ! जिसके बदले में चीन ने सदियों से भारत को अधिक से अधिक समझने का प्रयास किया है !

अलग-अलग समय में अलग-अलग चीनी यात्री भारत भ्रमण पर आया करते थे ! जब अमेरिका का नामोनिशान नहीं था और यूरोप के तथाकथित सभ्य लोग भूखे नंगे लोग हाथ में पत्थर लेकर शिकार करने की इच्छा से यूरोप की बर्फीली पहाड़ियों में घूमा करते थे ! तब चीन भारत के ज्ञान को आत्मसात करने के लिये तत्पर था और चीनी यात्री भारतीय जीवन शैली का अपने देश चीन में प्रचार प्रसार किया करते थे !

भारत की सभ्यता, संस्कृति, धर्म, विचारधारा आदि का प्रभाव चीन पर इतना गहरा पड़ा कि चीन आज तक उससे नहीं उबर पाया है ! जब संपूर्ण भारत पैसे के लिए मुगलों और अंग्रेजों की गुलामी कर रहा था ! उस समय भी चीन ने भारतीय धर्म, सभ्यता,संस्कृति, विचारधारा, चिकित्सा पद्धति आदि को अपने देश में संजोकर रखा था ! जिसका उपयोग चीन आज भी कर रहा है !

चीन ने भारतीय शासकों की कार्यशैली से प्रेरित होकर को अपने साम्राज्य का विस्तार प्रारंभ किया और आज अपने आकार को उसने 10 गुना से अधिक बड़ा कर लिया और अधिक बड़ा करने का उसका प्रयास आज भी जारी है ! आज वह विश्व में वह महाशक्ति है, जिसने यूरोप और अमेरिका के साम्राज्यवादी सपनों को चकनाचूर कर दिया !

किन्तु अमेरिका और ब्रिटेन की गोद में पलने वाला भारत आज यूरोप और अमेरिका की राजनीति का हिस्सा बनते हुए अपने पड़ोसी भाई चीन से झगड़ा मोल लेने के लिए यूरोप और अमेरिका से सैन्य गुंडे बुलाकर अपनी सुरक्षा का दम भर रहा है !

लेकिन भारत के मूर्ख राजनीतिज्ञ यह नहीं समझ रहे हैं कि पूरी दुनिया में गुंडई करने वाले राजनीतिज्ञ लफंगे यदि भारत में अपना सैन्य अड्डा बना लेंगे तो चीन का क्या होगा यह पता नहीं लेकिन भारत का सर्वनाश सुनिश्चित है !

इससे बेहतर है कि चीन के साथ कूटनीतिक नीति से दोस्ती और सहयोग का हाथ बढ़ाया जाये किन्तु यूरोप और अमेरिका के कुछ दलाल आरोप लगाते हैं कि चीन तकनीकी की मदद से भारत की जासूसी कर रहा है !

इसी आरोप से भारत ने चीन के साथ अपने व्यावसायिक संबंध समाप्त कर दिये ! चीन के 54 ऐप आज भारत में अवैध घोषित कर दिए गए हैं और भी बहुत से मुद्दों पर यूरोप और अमेरिका के परामर्श पर भारत ने चीन से पर्याप्त दूरी बना रहा है !

पर अब प्रश्न यह है कि क्या अमेरिका और यूरोप में बने हुये गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, व्हाट्सएप, फेसबुक आदि के माध्यम से अमेरिका और यूरोप भारत की जासूसी में नहीं लगे हुये हैं बल्कि सच्चाई तो यह है कि अमेरिका और यूरोप के तकनीक की मदद से भारत के एक-एक व्यक्ति की आधार कार्ड के नाम से डिजिटल कोडिंग हो रही है !

आज हम क्या खाते हैं, कहां रहते हैं, हमारे अकाउंट में कितना पैसा है, हमारे आय का क्या स्रोत हैं, हम क्या सोचते हैं, हम क्या क्या लिखते पढ़ते हैं ! किस तरह के व्यक्तियों से दोस्ती रखते हैं ! समाज में हमारी संपत्ति कहां-कहां है ! हम विश्व में किन किन देशों में यात्रा करते हैं ! उस यात्रा का उद्देश्य क्या है तथा उस यात्रा का क्या परिणाम निकलता है ! यह सभी कुछ जानकारी आज यूरोप और अमेरिका के अंदर बैठे हुए योजनाकार हर भारतीय के विषय में जानते हैं !

लेकिन इस अमेरिका और यूरोप की जासूसी पर भारतीय समाज में आज कोई भी चर्चा नहीं होती है क्योंकि भारतीय समाज में चर्चा फैलाने वाले यूरोप और अमेरिका की गोद में पलने वाले वह देश के गद्दार हैं, जो भारत में पैदा तो हुए लेकिन दिल दिमाग और संपन्नता से पूरी तरह यूरोपीय या अमेरिकन होकर रह गए हैं ! जिनका असर इतना व्यापक है कि यह लो भारत की राजनीति को सीधे-सीधे प्रभावित करते हैं !

ऐसे ही लोगों के प्रभाव से आज भारत के शासकों ने भारतीय समाज में चीन को लेकर अज्ञात और काल्पनिक है व्याप्त कर भारतीयों को चीन से दूरी बनाने के लिए बाध्य कर दिया है ! क्योंकि अमेरिका यह नहीं चाहता कि विश्व में और कोई दूसरी महाशक्ति बन कर अमेरिका के समानांतर खड़ी हो जाये ! रहीं रूस की बात तो वह तो पहले से ही यूरोपीय अमेरिकन सिक्के का दूसरा पहलू है ! अर्थात यूरोपीय सिक्के के एक तरफ अगर साम्राज्यवादी दृष्टिकोण का अमेरिका दिखलाई देता है तो दूसरी तरफ दिखने वाला देश समाजवादी दृष्टिकोण का रूसी ही है !

और विश्व का कल्याण न साम्राज्यवादी दृष्टिकोण से होगा और न कभी समाजवादी दृष्टिकोण से होगा ! विश्व के कल्याण के लिए भारतीय मनीषियों द्वारा स्थापित किया गया “वसुधैव कुटुम्बकम्” ही एकमात्र मार्ग है ! जो नीति सिद्धांत सनातन धर्म ग्रंथ महोपनिषद्, अध्याय 4 के 71वें श्‍लोक में वर्णित है !

आज काल के प्रभाव में अब दो महा शक्तियां उभर कर सामने आ रही हैं ! पहला अरब देश के छोटे-छोटे कबीले जो अब पेट्रोलियम की ताकत से महाशक्ति बनते दिखाई दे रहे हैं ! तो दूसरी तरफ चीन जिसने निरंतर अपना साम्राज्य विस्तार करके तकनीकी और उद्योग के द्वारा पूरे विश्व के साम्राज्यवादी शक्तियों को अपने आगे घुटने टेकने के लिए बाध्य कर दिया है !

किंतु हम भारत की बात करते हैं ! भारत के लिए सदा सर्वथा उचित होगा कि वह यूरोप और अमेरिका की गोद में खेलना अब बंद करके अपने पड़ोसी अपने भाई चीन से हाथ मिलाले और चीन से राजनैतिक संबंध स्थापित करे !

यदि एशिया में चीन और भारत यह दोनों मिलकर एक महाशक्ति के रूप में अपने को प्रस्तुत करें, निश्चित रूप से पूरे विश्व की आधी आबादी जो चीन और भारत में रहती है ! यह विश्व के सभी राजनैतिक समीकरण ध्वस्त कर सकेगी और विश्व की सत्ता यूरोप और अमेरिका के हाथों से निकलकर भारत और चीन के हाथ में आ जायेगी ! वह भी मात्र कुछ ही समय में !

क्योंकि भारत के पास अपार जनसंख्या है और चीन के पास आधुनिकतम तकनीकी है ! आज यूरोप और अमेरिका भी भारत के ही बौद्धिक मजदूरों के दम पर अपने को महाशक्ति घोषित किए हुए हैं !

यदि भारत के बौद्धिक मजदूर जो आज अमेरिका और यूरोप के समाज में चंद्र पैसों के लिए नाक रगड़ रहे हैं ! यदि वह बौद्धिक वर्ग अपने पड़ोसी देश चीन के साथ कार्य करना आरंभ कर दे, तो भारत और चीन की संयुक्त ताकत अमेरिका और यूरोप के साम्राज्य को समाप्त कर देगी और भारत पुन: सर्वशक्तिमान विश्व गुरु बन जाएगा !

शायद इसीलिए चीन के विरुद्ध भारत में कुछ राजनीतिज्ञों द्वारा काल्पनिक भय का माहौल बनाया जा रहा है,क्योंकि भारतीय राजनीतिज्ञों की चाबी अमेरिका और यूरोप से चलाई जाती है !

इसे आम भारतीयों को समझना होगा ! चिंतन करना होगा और आत्मरक्षा के लिए चीन से हाथ मिलाना होगा ! नहीं तो यूरोप और अमेरिका की साम्राज्यवादी शक्तियां भारत को बहुत जल्द भारत के प्राकृतिक संसाधनों को लूटने के लिए पुनः गुलाम बना लेंगी !!

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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