भगवान शिव की बहन मां सरस्वती जो कि ब्रह्म संस्कृति की जननी और पालनकर्ता थी ! जिनके प्रतीक रूप में अफगानिस्तान में प्राचीन काल में सरस्वती नदी बहा करती थी अर्थात सरस्वती जल के समान निर्मल थी ! जो विद्या, बुद्धि, संगीत, कला, वाणी, मातृत्व, आध्यात्मिकता, विद्या, ज्ञान, ग्रंथ, मन्त्र, तंत्र, ज्ञान, और नदियों की अधिष्ठात्री देवी हैं ! यह दक्षिण मार्ग, वैदिक मार्ग और तंत्र (वाम) मार्ग की देवी हैं !
इसी तरह देवी लक्ष्मी जोकि महाराज सागर की पुत्री थी ! जिनका विवाह विष्णु के साथ हुआ था ! महाराज सागर दक्षिण भारत समुद्र के देवता थे अर्थात माता लक्ष्मी का भी सीधा संबंध जल से ही है !
इसी तरह मां भगवती का अंश काली भी भगवान शिव के शरीर में प्रवेश कर उनके कंठ में स्थित विष से अपना आकार धारण करके प्रगट हुई !
विष के प्रभाव से वह काले वर्ण में परिवर्तित हुआ ! भगवान शिव ने उस अंश को अपने भीतर महसूस कर अपना तीसरा नेत्र खोला ! उनके नेत्र द्वार के जल से भयंकर-विकराल रूपी काले वर्ण वाली मां काली उत्तपन हुई ! अर्थात वह भी विषाक्त जल से उत्पन्न हुई हैं !
अब प्रश्न यह है कि यह तीनों अनादि देवी जल से ही क्यों उत्पन्न हुई हैं ! इसमें कोई अग्नि, वायु, पृथ्वी या आकाश से उत्पन्न क्यों नहीं हुई हैं !
इसका सीधा जवाब है स्त्री जल तत्व से निर्मित हुई है ! यह देश, काल, परिस्थिति के अनुसार अपने स्वरूप को बदल सकती है ! यदि अग्नि के संपर्क में आ जाएं तो अधिक गर्मी होने पर वाष्पीकृत हो सकती हैं ! अर्थात एक गतिशील ऊर्जा में बदल सकती हैं ! ऐसी स्त्रियां प्रायः योद्धा प्रवृति की होती हैं ! इन्हें काली कहा गया है !
और यदि इनका सानिध्य सामान्य व्यक्ति से हो जाए तो यह स्थित प्रज्ञ होती हैं ! अर्थात जिस स्थिति में इन्हें जीवन निर्वाह करने की सुविधा हो वैसा बन जाती हैं ! यह उसमें हठ नहीं करती हैं ! अपने आपको उसी परिस्थिति में ढालने का पूरा प्रयास करती हैं ! इन्हें लक्ष्मी कहा गया है !
और तीसरा यदि कोई शांत प्रवृति के व्यक्ति के साथ इनका सानिध्य हो जाए तो यह स्वयं में स्थिर हो जाती हैं जैसे जल ठंडी जगह पर रह कर लाखों साल तक बर्फ बनकर वही पड़ा रहता है, ठीक इसी तरह यह ऊपर से स्थिर और अंदर से अपने को निरंतर अनुभूति के आधार पर ज्ञान की और विकसित करती रहती हैं ! यह अपने ज्ञान का प्रदर्शन अनावश्यक कहीं नहीं करती हैं ! इसीलिए ऐसी स्त्रियों को सरस्वती कहा गया है !
यही स्त्रियों का सत. रज. तम. सवरूप है !
अतः कहने का तात्पर्य यह है कि जिस तरह जल के तीन रूप होते हैं ! वैसे ही जल की तरह तीन रूप वाष्प, जल और ठोस अर्थात बर्फ रूप में स्त्रियाँ भी होती हैं और यह तीनों स्वरूप सानिध्य और आवश्यकता के सापेक्ष होते हैं इसीलिए स्त्री को जल का प्रतीक माना गया है !!
विशेष ! स्त्रियों की व्याख्या सभी पुराणों के बाद भी नहीं की जा सकती है ! इसीलिये वह मातृ रूप में ही श्रेष्ठ है !