राम राज्य से भी बेहतर था भरत का शासन : Yogesh Mishra

सामान्यतया जब कभी क्षेष्ठ शासन व्यवस्था की बात चलती है तो कहा जाता है कि समाज को राम राज्य चाहिए क्योंकि भगवान श्री राम के शासन नीतियों को इतना आदर्श माना गया है कि आज तक उन नीतियों की असहजता समाज को आकर्षित करती है ! यदि समाज में अमन-चैन, अभय, विकास, सुरक्षा, स्वास्थ्य और शिक्षा चाहिये तो राम राज्य ही सर्वश्रेष्ठ शासन व्यवस्था हो सकती है ! जबकि शासन तो सम्राट विक्रमादित्य, भगवान श्री कृष्ण, चाणक्य आदि का भी रहा है !

किंतु वाल्मीकि रामायण के अनुसार भगवान राम की शासन व्यवस्था से भी श्रेष्ठ शासन व्यवस्था भरत की थी ! एक लोक नीति के अनुसार यथा राजा तथा प्रजा अर्थात प्रजा का आचरण राजा के चरित्र के अनुसार होता है और भरत का राजनैतिक चरित्र राम से भी श्रेष्ठ था !

क्योंकि जब भगवान श्री राम को वनवास हुआ तब भरत अपने ननिहाल में थे ! राम के वन गमन और राजा दशरथ की मृत्यु के उपरांत अंत्येष्टि क्रिया करने के लिये भरत को ननिहाल से बुलाया गया था ! भरत ने अयोध्या आकर राजा दशरथ की अंत्येष्टि क्रिया की और माता द्वारा रचित कूटनीति के तहत प्राप्त अवध की राज सत्ता सम्हालने के स्थान पर भरत भगवान श्री राम को मनाने के लिये चित्रकूट के घनघोर जंगलों में गये किंतु भगवान श्रीराम ने अपने पिता को दिये हुये वचन को पूरा करने के लिये भरत को समझा बुझा कर वापस भेज दिया !

और भरत को अपनी खड़ाऊ दी ! भरत ने भगवान श्री राम की उन्हीं खड़ाऊ को राजगद्दी पर रख कर 14 वर्ष तक शासन चलाया और अयोध्या के निकट “नंदीग्राम” में जो स्थान आज भी सुल्तानपुर जिले में मौजूद है ! वहां रहकर भगवान श्री राम के राम राज्य से भी अच्छी प्राकृतिक सिद्धांतों पर आधारित सर्वश्रेष्ठ शासन व्यवस्था चलायी !

चूँकि भगवान श्रीराम वन में भूमि पर सोते थे इसलिये भरत भूमि के नीचे गड्डा बना कर उसमें 14 वर्ष तक निरंतर तप किया तथा वह वहीँ सोते भी थे और शत्रुघ्न उस गड्डे से बाहर निकलने के मार्ग पर भरत के आदेश की प्रतीक्षा में निरंतर बैठे रहते थे !

भरत अपने भोजन के लिये गाय को मात्र चार मुट्ठी “जौ” खिलाया करते थे और वह जौ जब गाय के गोबर में निकल कर बाहर आता था ! तब उन्हें बीन कर मात्र एक मुट्ठी दलिया 24 घंटे में खाया करते थे ! इसी तरह शत्रुघ्न का भी आहार बहुत ही सीमित था !

अपने राजा के तप को देखकर अयोध्या की जनता ने भी विचार किया कि उन्हें भी संयमित जीवन जीना चाहिए तब उन्होंने खेतों में जो अनाज पैदा होता था ! उसमें से मात्र अपने निर्वाह के लिए ही वह लोग अनाज घर लाते थे ! शेष अधिक अनाज दूसरे राज्यों को बेच कर उनसे प्राप्त संपूर्ण धन को राजकोष में जमा कर दिया करते थे ! उसी का परिणाम था कि राजा दशरथ की मृत्यु के उपरांत जो राजकोष भरत को प्राप्त हुआ था ! वह भगवान श्री राम के वन आगमन के उपरांत 10 गुना बढ़ चुका था ! अत: सभी तरह के “कर” समाप्त कर दिये गये थे ! देश के विकास का कार्य जनता स्वत: अपने धन से करती थी !

इसके अतिरिक्त भरत के तप के प्रभाव को देखकर काल ने भी अयोध्या राज्य में अपनी गति को रोक दिया था ! उसी का परिणाम था कि 14 साल के तपस्वी जीवन में अवध की रक्षा के लिये भरत को कभी कोई युद्ध नहीं करना पड़ा और शास्त्र तो यह भी बतलाते हैं कि भरत के तप के प्रभाव के कारण इस दौरान उसके राज्य में एक भी मृत्यु नहीं हुई !

जिससे प्रेरित होकर अवध की आम जनता ने कठोर ब्रह्मचर्य का पालन किया और भरत के 14 साल के शासन काल की अवधि में अवध में किसी भी घर में कोई भी संतान पैदा नहीं हुई ! यहां तक कि पशु पक्षियों ने भी अपने प्रजनन चक्र को रोक दिया था !

भरत के शासनकाल में कभी अवध क्षेत्र में कोई सूखा नहीं पड़ा ! कभी बाढ़ नहीं आई जबकि अयोध्या सरजू नदी के तट पर ही विकसित हुई थी ! कोई भूकंप, महामारी नहीं हुई ! अकाल मृत्यु दुर्घटना बीमारी आदि से किसी भी नागरिक की मृत्यु नहीं हुई ! यह सब भरत के तप का ही प्रभाव था !

लोगों में त्याग और तप इस पराकाष्ठा पर था कि भरत के शासनकाल में एक भी विवाद राजा के समक्ष न्याय प्राप्त करने हेतु प्रस्तुत नहीं हुआ ! अवध के सभी नागरिक अपने त्याग की प्रवृत्ति के कारण किसी भी विवाद को विकसित ही नहीं होने देते थे !

भरत के शासनकाल में सत्ता के विरुद्ध कभी कोई भी धरना, प्रदर्शन, आंदोलन, हत्या या सार्वजनिक राज संपत्ति को नुकसान आदि पहुंचने वाला कोई भी कार्य कभी नहीं हुआ !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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