स्वामी अष्टावक्र के अनुसार भगवान ने जीव को सदैव से बंधन से मुक्त कर रखा है ! किंतु अपनी वासना और कामना के तहत नकारात्मक संस्कारों के प्रभाव से जीव ने स्वयं संसार को पकड़ रखा है ! अष्टावक्र के अनुसार यदि व्यक्ति अपने नकारात्मक संस्कारों को नष्ट कर दे तो वह तत्क्षण मोक्ष को प्राप्त कर सकता है !
हमारी पांच काम इंद्रियां और पांच ज्ञानेंद्रियां मन के आधीन निरंतर भोगों में रसास्वाद करती रहती हैं और आनंद की प्राप्ति के उपरांत फिर उस आनंद को प्राप्त करने की इच्छा से पुनः भोग में लिप्त हो जाती हैं ! यह प्रक्रिया जब निरंतर सत्त चलती रहती है, तो व्यक्ति में धीरे-धीरे इसी आनंद प्राप्ति के संस्कार विकसित हो जाते हैं और व्यक्ति बार-बार संस्कारों के प्रभाव में आकर आनंद प्राप्ति की कामना से निरंतर मन के अधीन रहकर अपनी इंद्रियों से भोग करता रहता है !
एक समय वह आता है जब व्यक्ति इन कामनाओं में ही आनंद ढूंढने लगता है ! यही भोग में आनंद ढूंढने की कामना ही बंधन का कारण !
अतः यदि व्यक्ति मोक्ष को प्राप्त करना चाहता है तो उसे सर्वप्रथम अपनी इंद्रियों को नियंत्रित करना चाहिये जोकि संसार में रहते हुये एक अत्यंत कठिन कार्य है ! इसीलिए इस कठिन कार्य को सुगम और सरल बनाने के लिए “ब्रह्मास्मि क्रिया योग” का सहारा सदियों से हमारे ऋषि, मुनि, मनीष आदि लेते रहे हैं !
यह बहुत ही सरल प्रक्रिया है ! मन को कामना विहीन कर सहज अवस्था में छोड़ देने से मन वापस ईश्वर की तरफ लगने लगता है !
श्रीमद भगवत गीता के अनुसार व्यक्ति मृत्यु के समय जो कामना करता है ! उसी के अनुसार उसे अगला जीवन प्राप्त होता है ! लेकिन यदि व्यक्ति ने “ब्रह्मास्मि क्रिया योग” साधना के द्वारा अपने इस जीवन में अपनी सभी कामनाओं का परित्याग कर दिया है ! तो स्वाभाविक है कि मृत्यु के समय जब उसके पास कोई कामना न होगी तो उसे अगला जीवन नहीं लेना पड़ेगा !
और व्यक्ति के संस्कार जल जाने के कारण व्यक्ति की मन बुद्धि भी उन्हीं संस्कारों के साथ समाप्त हो जाती है ! ऐसी स्थिति में शुद्ध चेतन आत्मा वापस अपने “कारण शरीर” की ओर प्रस्थान करती है और कारण शरीर को साथ लेकर उस परमपिता परमात्मा में विलीन हो जाती है ! यही मोक्ष है !
इसके लिए किसी बहुत बड़ी पूजा, उपासना, साधना आदि को करने की कोई आवश्यकता नहीं है ! बस सिर्फ “मन का निग्रह” कर व्यक्ति को अपनी इंद्रियों से भोग की कामना का परित्याग करना है ! यह सारी चीज है “ब्रह्मास्मि क्रिया योग” की साधना द्वारा संभव है !
जिन लोगों ने “ब्रह्मास्मि क्रिया योग” की साधना मोक्ष की कामना से की है, उन सभी को मोक्ष प्राप्त हुआ है ! इसका सबसे बड़ा उदाहरण ज्ञान योगी कबीर दास थे ! ऐसे ही अनेक संतों का नाम लिया जा सकता है जिन्होंने मोक्ष की कामना से “ब्रह्मास्मि क्रिया योग” की सहायता ली है ! क्योंकि इससे सरल और सहज मोक्ष प्राप्ति का और कोई भी अन्य मार्ग नहीं है ! ऐसा मेरा मानना है !