भारतीय परंपरागत कृषि पर कार्पोरेट का षडयंत्रकारी कब्ज़ा : Yogesh Mishra

परम्परागत भारतीय कृषि पर कार्पोरेट का जिस तरह से कब्ज़ा हो रहा है, उससे जो तस्वीर उभरकर आ रही है, वह अत्यंत ही भयावह है ! दुनिया भर में खेती का कार्पोरेटीकरण किया जा रहा है ! इसी की चपेट में भारतीय कृषि भी है !

अब उद्योग, व्यापार और खेती सब कुछ कार्पोरेट्स ही करेंगे ! वह इन सभी पर एक के बाद एक अपना कब्जा करते जा रहे है ! प्राकृतिक संसाधन, उद्योग और व्यापार पर तो उन्होंने पहले ही कब्जा कर लिया ! अब देश की परंपरागत खेती और किसानों के सर्वनाश की बारी है ! जो पहले ही दरिद्रता और गुलामी की जिंदगी जी रहे है ! अब तो कार्पोरेट्स उनका अस्तित्व ही मिटाना चाहते है !

वह चाहते हैं कि किसानों के पैतृक खेती पर अब उनका कब्जा हो ताकि कार्पोरेट उद्योगों के लिये कच्चा माल और दुनिया में व्यापार के लिये जरूरी उत्पादन अपनी सुविधाओं और नीतियों के अनुसार वह लोग पैदा कर सकें !

इस छल कपट के लिये उन्होंने तर्क गढा है कि परंपरागत पद्धति से की जा रही खेती में पूंजी की कमी, छोटे-छोटे जोतो में खेती अलाभप्रद है ! इस पद्धति से यांत्रिक और तकनीकी खेती के आभाव में परंपरागत खेती करने वाले किसान खेती में अपना उत्पादन बढ़ाने में सक्षम नहीं हैं !

जबकि कार्पोरेट खेती का मुख्य उद्देश कृषि क्षेत्र में लूट की व्यवस्था का वैश्विक विस्तार करना और गुणवत्ता व मात्रा के आधार पर अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिये खुले बाजार में पर्याप्त मात्रा में कृषि उत्पादन के आपूर्ति श्रृंखला को विकसित करना है !

जैसा कि कार्पोरेट्स कहते हैं कि वह प्रत्यक्ष स्वामित्व या पट्टा या लंबी लीज पर जमीन लेकर खेती करेंगे या किसान समूह से अनुबंध करके किसानों को बीज, क्रेडिट, उर्वरक, मशीनरी और तकनीकी आदि उपलब्ध करवा कर खेती करेंगे !

लेकिन वास्तव में वह लोग खेती की जमीन, कृषि उत्पादन, कृषि उत्पादों की खरीद, भांडारण, प्रसंस्करण, विपणन, आयात निर्यात आदि सभी पर अपना नियंत्रण करना चाहते है !

अब वह लोग दुनिया के विशिष्ट वर्ग की भौतिक ज़रूरतों को पूरा करने के लिये जैव ईंधन, फलों, फलों या खाद्यान्न खेती भी दुनिया के बाजार को ध्यान में रखकर करना चाहते है ! वह फसलें, जिनमें उन्हे अधिकतम लाभ मिलेगा उन्हे पैदा करेंगे और अपनी शर्तों व कीमतों पर बेचेंगे ! उन्हें राष्ट्र की आवश्यकता से कोई सरोकार नहीं होगा !

इसीलिये आज कल हमारे द्वारा चयनित राजनीतिज्ञ सदनों में बैठ कर अनुबंध खेती और कार्पोरेट खेती के अनुरूप नीतिगत विनाश के लिये उत्पादन प्रणालियों को पुनर्गठित करने और कार्पोरेट को सुविधाएं देने के लिये नीतियां और कानून बना रहे हैं !

दूसरी ओर तथाकथित हरित क्रांति के द्वारा कृषि में आधुनिक तकनीक, पूंजी निवेश, कृषि यंत्रीकरण, जैव तकनीक और जी.एम. फसलों, ई-नाम आदी के माध्यम से अनुबंध खेती, कार्पोरेट खेती के लिये भी राजनीतिज्ञ जी जान से नित नयी व्यवस्था बना रहे हैं !

डब्ल्यूटीओ का समझौता, कार्पोरेट खेती के प्रायोगिक प्रकल्प, अनुबंध खेती कानून, कृषि, रिटेल और फसल बीमा योजना में विदेशी निवेश, किसानों के लिये संरक्षक सीलिंग कानून हटाने का प्रयास, आधुनिक खेती के लिये इजरायल से समझौता, खेती का यांत्रिकीकरण, जैव तकनीक व जीएम फसलों को प्रवेश, कृषि मंडियों का वैश्विक विस्तारीकरण के लिये ई-नाम, कर्ज राशि का विस्तारीकरण, कर्ज चुकाने में अक्षमता पर खेती की गैरकानूनी जब्ती, कृषि उत्पादों की बिक्री के लिये श्रृंखला जाल के प्रायोगिक प्रकल्प, सुपर बाजार की श्रृंखला, जैविक इंधन जेट्रोफा, इथेनॉल के लिये गन्ना और फलों, फूलों की खेती आदि को बढ़ावा देने की सिफारिशें, निर्यातोन्मुखी कार्पोरेटी खेती और विश्व व्यापार संगठन के कृषि समझौते के तहत वैश्विक बाजार में खाद्यान्न की आपूर्ति की बाध्यता आदि सभी को एक साथ जोड़कर देखने से कार्पोरेट खेती के षडयंत्र की विस्तृत तस्वीर उभर कर स्पष्ट सामने आ जाती है ! जो कि भविष्य के पीड़ियों कर लिये अत्यंत भयावह है !

इससे हमें समय रहते सावधान होना होगा ! अन्यथा पैतृक खेती होते हुये भी हम राजनेताओं की कृपा से भुखमरी से ही मरेंगे !!

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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