छात्र नहीं शिक्षण संस्थान ही अयोग्य होते हैं !! Yogesh Mishra

भारत में बढ़ती बेरोजगारी पर चिन्तन

कल सायंकाल में एक कार्यक्रम में गया था ! वहां पर युवाओं की योग्यता को लेकर चर्चा होने लगी ! चर्चा में शामिल अधिकांश लोगों का यह मत था कि आज के शिक्षित छात्र अयोग्य होते हैं, इसलिये वह बेरोजगारी है ! मैंने इस संदर्भ में अपनी आपत्ति उस कार्यक्रम में दर्ज करायी ! जिसे आज मैं सार्वजनिक मंच पर कहना चाहता हूं !

मेरा यह मत है कि भारत के अंदर बेरोजगारी इसलिये नहीं है कि युवाओं में योग्यता नहीं है बल्कि भारत के अंदर बेरोजगारी इसलिये है कि जो हमारी राष्ट्रीय और संवैधानिक शैक्षिक संस्थायें हैं ! उनके अंदर कोई व्यवस्थित, योजनाबद्ध तरीके से ईमानदारी के साथ राष्ट्रहित में, शिक्षा हित में कार्य करने की इच्छा नहीं है !

जो लोग इन शिक्षण संस्थानों में नीति निर्धारक हैं उनकी रुचि राष्ट्र हित में कार्य करने से ज्यादा अपने वेतन-भत्ते में है और धरातल पर बिना किसी व्यवहारिक शोध के वह लोग वातानुकूलित कमरों में बैठकर युवाओं से चर्चा किये बिना ही युवाओं के भविष्य के लिये नीति निर्धारण का कार्य करते हैं !

जिससे भारत के अंदर अपने जीवन के 25-30 वर्ष लगाने के बाद भी लाखों रुपए खर्च करके युवा अपने भविष्य को सुरक्षित और व्यवस्थित नहीं कर पाते हैं !

एक सच्चाई यह है कि जिन शिक्षण संस्थानों के पास युवाओं के भविष्य निर्माण का दायित्व है, उन शिक्षण संस्थानों में अधिक धन कमाने की लालसा के कारण यथा योग्य वेतन न देने से योग्य शिक्षकों का ही अभाव है ! आज यह शिक्षण संस्थायें शिक्षा के नाम पर मात्र युवाओं को ठगने के अलावा और कोई कार्य नहीं कर रही हैं !

इन शिक्षण संस्थाओं को नियंत्रित और मार्गदर्शक करने के लिये, जिन अधिकारियों की नियुक्ति शासन सत्ता द्वारा की जाती है ! उन पदाधिकारियों की इन शिक्षण संस्थाओं के साथ सांठ-गांठ होती है और युवाओं को ठगने वाली शिक्षण संस्थायें अपनी ठगी की धनराशि से एक अंश इन शिक्षण संस्थाओं को नियंत्रित करने वाले संस्थानों के पदाधिकारियों को पहुंचा कर अपना ठगी का धंधा धड़ल्ले से चलाती हैं !

इसी का परिणाम है कि आज माता पिता अपने जीवन की समस्त जमा पूंजी अपने बच्चे के भविष्य निर्माण के लिये इन शिक्षण संस्थाओं को देने के बाद भी छात्र की शिक्षा पूरी होने के उपरांत अपने बच्चों में वह प्रतिभा और योग्यता नहीं पाते हैं ! जिस कार्य के लिये माता-पिता ने इन शिक्षण संस्थाओं को बहुत बड़ी रकम शिक्षा देने हेतु दी थी !

मैं चुनौती देता हूं भारत में यदि कोई भी ऐसी शिक्षण संस्था हो तो आप मुझे अवश्य बताइये जो पिछले 10 सालों में अपने यहां के पढ़े हुये छात्रों के भविष्य को शत-शत सुरक्षित कर पाई हो !

सच्चाई तो यह है कि देश की आजादी के 70 साल बाद भी आज शिक्षण संस्थाओं में पाठ्यक्रम के नाम पर निरंतर नये-नये शोध हो रहे हैं ! सरकार में बैठे हुये लोग सरकार परिवर्तन के साथ अपनी विचारधारा के अनुरूप पाठ्यक्रम इन शिक्षा संस्थानों में विकास के नाम पर थोपना चाहते हैं और जब शासन सत्ता बदलती है तो नये लोग जो शासन सत्ता में आते हैं, वह पुराने पाठ्यक्रम को अनुपयोगी और निरर्थक घोषित कर देते हैं !

अब प्रश्न यह है कि 70 साल में जो देश अपने शिक्षण संस्थानों का स्थाई पाठ्यक्रम ही निर्धारित नहीं कर पाया हो ! वह देश यह कैसे दावा कर सकता है कि उसकी शिक्षण संस्थायें सही और व्यवस्थित तरीके से चल रही हैं ! आये दिन उच्च शिक्षा में देखा जाता है कि विश्वविद्यालय के अंदर प्रश्न पत्र परीक्षा के पूर्व ही लीक हो जाते हैं ! जिसका पूरा का पूरा खामियाजा छात्रों को भुगतना पड़ता है ! जिस विश्वविद्यालय के अंदर या जिस विभाग का प्रश्न पत्र लीक होता है उस विभाग के पदाधिकारी को दंडित करने के लिये क्यों नहीं एक सेमेस्टर का पूरा वेतन रोक देना चाहिये !

शिक्षक के तौर पर बैठे हुये नाकारा और निकम्मे लोग जो बहुत जल्दी ही बड़े आदमी बन जाना चाहते हैं ! वह शिक्षण संस्थानों की ओट में आज हमारी अगली पीढ़ी के साथ शिक्षा के नाम पर धोखाधड़ी कर रहे हैं ! वही मूल कारण है कि आज देश को योग्य युवा प्राप्त नहीं हो रहे है !

इसमें एक तर्क यह भी है कि जब शिक्षण संस्थान किसी भी छात्र को अपने यहां प्रवेश देता है, तो उस छात्र की योग्यता का निर्धारण करने के लिये प्री एडमिशन एग्जामिनेशन लेता है ! इसके बाद छात्रों की योग्यता अनुसार मेरिट बनती है और जो क्रीम योग्य छात्र होते हैं उन्हें ही प्रवेश दे दिया जाता है शेष को मना कर दिया जाता है !

अर्थात शिक्षण संस्थान में जो छात्र पढ़ने गया है ! वह निश्चित रूप से उस शिक्षण संस्थान के मानक के अनुरूप प्रवेश के समय योग्यता रखता है ! किंतु शिक्षण संस्थानों के अव्यवस्थित पाठ्यक्रम और नकारा शिक्षा पद्धति, लापरवाह शिक्षकों के होने के कारण यह शिक्षण संस्थायें उस युवा में वह योग्यता विकसित नहीं कर पाती हैं ! जिसके लिये उस युवा के माता-पिता ने इन शिक्षण संस्थायों को अपने जीवन की जमा पूंजी देकर प्रवेश दिलाया था और अंततः वह युवा जीवन 25-30 साल बर्बाद करने के बाद अयोग्यता के कारण बेरोजगार घूमता रहता है !

यदि देश की शिक्षण संस्थायें अपने दायित्व का निर्वहन नहीं कर रही हैं और इन शिक्षण संस्थाओं को नियंत्रित करने वाले सरकारी संस्थान भी अपने दायित्व का निर्वहन नहीं कर रही हैं ! तो यह कैसे कहा जा सकता है कि युवाओं के अंदर योग्यता नहीं है बल्कि दूसरे शब्दों में तो यह कहा जाना चाहिये कि भारत में युवा नहीं शिक्षण संस्थायें ही अयोग्य हैं !!

अपने बारे में कुण्डली परामर्श हेतु संपर्क करें !

योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

 -: सम्पर्क :-
-090 444 14408
-094 530 92553

Check Also

प्रकृति सभी समस्याओं का समाधान है : Yogesh Mishra

यदि प्रकृति को परिभाषित करना हो तो एक लाइन में कहा जा सकता है कि …