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मानव शरीर पाँच तत्वों से बना है जिन सभी तत्वों की प्रकृति नाशवान है। वेदों में स्पष्ट लिखा है
कि मनुष्य शरीर तथा ब्रहमाण्ड का सृजन एक समान हुआ है और सम्पूर्ण ब्रहमाण्ड प्रत्येक मनुष्य शरीर के अंदर समान मात्रा में मौजूद है।
प्रत्येक तत्व शरीर में अपने विशिष्ट स्थान पर स्थित हैं और ये अपनी प्रकृति के साथ मानव शरीर में देखें जा सकते हैं। प्रत्येक तत्व एक शब्द से अस्तित्व में आया, जिसके पाँच रूप हैं जो हमें मानव शरीर के पाँच तत्वों की प्रकृति की आधारभूत स्थिति को समझने में मदद करते हैं।
पृथ्वी
शब्द – सत्त
केंद्र – गुदा
रंग – पीला
स्वाद – मीठा
रूप – हड्डी, मांस, त्वचा, रंध्र, नाखून
जल
शब्द – ओंकार
केंद्र – लिंग
रंग – सफ़ेद
स्वाद – खारा
रूप – खून, लार, पसीना, मूत्र, वीर्य
अग्नि
शब्द – ज्योति निरंजन
केंद्र – मुख
रंग – लाल
स्वाद – तीखा
रूप – भूख, प्यास, आलस्य, निंद्रा, जंभाई
वायु
शब्द – सोहंग
केंद्र – नाभि
रंग – नीला
स्वाद – खट्टा
रूप – बोलना, सुनना, सिकुड़ना, फैलना, बल लगाना
आकाश
शब्द – ररांकार
केंद्र – सुषमना नाड़ी
रंग :-काला
स्वाद – स्वादहीन
रूप – शब्द, आविर्भाव, रस, गंध, स्पर्श
मानव शारीर में पाँच कर्म इंद्रियाँ , पाँच ज्ञानेंद्रियाँ व चार सूक्षम इंद्रियाँ भी हैं । जो इस प्रकार हैं।
कर्म इंद्रियाँ : पैर, गुदा, लिंग, मुंह, हाथ
ज्ञानेंद्रियाँ : आंख, नाक, कान, मुंह, त्वचा
सूक्ष्म इंद्रियाँ : मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार
पच्चीस रूपों के साथ पाँच तत्व और चौदह इंद्रियों के योग से मनुष्य के सम्पूर्ण शरीर का ढांचा बना है जिसे शरीर (माया- पिंजरा जिसमे आत्मा कैद है) कहते हैं। जो पूरी तरह मन के नियंत्रण में है। मन का निवास सुषमना नाड़ी में है। यह नाड़ी नाक के दोनों छिद्रों की नाड़ियों इडा तथा पिंगला के बीच की नाड़ी होती है। मन इसी सुषमना नाड़ी में बैठकर मस्तिष्क को आदेश देता है। यहीं से मन आत्माओं के ध्यान में असीमित इच्छायेँ, ज्ञान, स्मृति और क्रियाओं को नियंत्रित करता है। यही मन इस नाशवान संसार की हर गतिविधि को नियंत्रित करता है। प्रत्येक मानव अपनी असीमित इच्छाओं की पूर्ति के लिए आजीवन मन का गुलाम बना रहता है, लेकिन इच्छाओं का संबंध केवल शरीर से है तथा आत्मा से नहीं है।