जानिए । रत्नों को धारण करने से संबंधित कौन-कौन सी गलत धारणाएं फैली हुई है । Yogesh Mishra

रत्नों धारण करने से संबंधित गलत धारणाएं

दुनिया भर में लोगों के द्वारा रत्न धारण करने का प्रचलन बहुत पुराना है तथा प्राचीन समयों से ही दुनिया के विभिन्न हिस्सों में रहने वाले लोग इनके प्रभाव के बारे में जानने अथवा न जानने के बावज़ूद भी इन्हें धारण करते रहे हैं। आज के युग में भी रत्न धारण करने का प्रचलन बहुत जोरों पर है तथा भारत जैसे देशों में जहां इन्हें ज्योतिष के प्रभावशाली उपायों और यंत्रों की तरह प्रयोग किया जाता है वहीं पर पश्चिमी देशों में रत्नों का प्रयोग अधिकतर आभूषणों की तरह किया जाता है।
वहां के लोग भिन्न-भिन्न प्रकार के रत्नों की सुंदरता से मोहित होकर इनके प्रभाव जाने बिना ही इन्हें धारण कर लेते हैं। किन्तु भारत में रत्नों को अधिकतर ज्योतिष के उपाय के तौर पर तथा ज्योतिषियों के परामर्श के अनुसार ही धारण किया जाता है। किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली के अनुसार उसके लिए उपयुक्त रत्न चुनने को लेकर दुनिया भर के ज्योतिषियों में अलग-अलग तरह के मत एवम धारणाएं प्रचलित हैं। तो आइए आज इन धारणाओं के बारे में तथा इनकी सत्यता एवम सार्थकता के बारे में चर्चा करते हैं।

सबसे पहले पश्चिमी देशों में प्रचलित धारणा के बारे में चर्चा करते हैं जिसके अनुसार किसी भी व्यक्ति की सूर्य राशि को देखकर उसके लिए उपयुक्त रत्न निर्धारित किए जाते हैं। इस धारणा के अनुसार एक ही सूर्य राशि वाले लोगों के लिए एक जैसे रत्न ही उपयुक्त होते हैं जो कि व्यवहारिकता की दृष्टि से बिल्कुल भी ठीक नहीं है। सूर्य एक राशि में लगभग एक मास तक स्थित रहते हैं तथा इस धारणा के अनुसार किसी एक मास विशेष में जन्में लोगों के लिए शुभ तथा अशुभ ग्रह समान ही होते हैं।

इसका मतलब यह निकलता है कि प्रत्येक वर्ष किसी माह विशेष में जन्में लोगों के लिए शुभ या अशुभ फलदायी ग्रह एक जैसे ही होते हैं जो कि बिल्कुल भी व्यवहारिक नहीं है क्योंकि कुंडलियों में ग्रहों का स्वभाव तो आम तौर पर एक घंटे के लिए भी एक जैसा नहीं रहता फिर एक महीना तो बहुत लंबा समय है। इसलिए मेरे विचार में इस धारणा के अनुसार रत्न धारण नहीं करने चाहिएं।

इस धारणा से आगे निकली एक संशोधित धारणा के अनुसार किसी भी एक तिथि विशेष को जन्में लोगों को एक जैसे रत्न ही धारण करने चाहिएं। पहली धारणा की तरह इस धारणा के मूल में भी वही त्रुटी है। किसी भी एक दिन विशेष में दुनिया भर में कम से कम हज़ारों अलग-अलग प्रकार की किस्मत और ग्रहों वाले लोग जन्म लेते हैं तथा उन सबकी किस्मत तथा उनके लिए उपयुक्त रत्नों को एक जैसा मानना मेरे विचार से सर्वथा अनुचित है।

पश्चिमी देशों में प्रचलित कुछ धारणाओं पर चर्चा करने के पश्चात आइए अब भारतीय ज्योतिष में किसी व्यक्ति के लिए उपयुक्त रत्न निर्धारित करने को लेकर प्रचलित कुछ धारणाओं पर चर्चा करते हैं। सबसे पहले बात करते हैं ज्योतिषियों के एक बहुत बड़े वर्ग की जिनका यह मत है कि किसी भी व्यक्ति की जन्म कुंडली में लग्न भाव में जो राशि स्थित है जो उस व्यक्ति का लग्न अथवा लग्न राशि कहलाती है, उस राशि के स्वामी का रत्न कुंडली धारक के लिए सबसे उपयुक्त रहेगा।

उदाहरण के लिए यदि किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली में लग्न भाव यानि कि पहले भाव में मेष राशि स्थित है तो ऐसे व्यक्ति को मेष राशि के स्वामी अर्थात मंगल ग्रह का रत्न लाल मूंगा धारण करने से बहुत लाभ होगा। इन ज्योतिषियों की यह धारणा है कि किसी भी व्यक्ति की कुंडली में उसका लग्नेश अर्थात लग्न भाव में स्थित राशि का स्वामी ग्रह उस व्यक्ति के लिए सदा ही शुभ फलदायी होता है। यह धारणा भी तथ्यों तथा व्यवहारिकता की कसौटी पर खरी नहीं उतरती तथा मेरे निजी अनुभव के अनुसार लगभग 50 से 60 प्रतिशत लोगों के लिए उनके लग्नेश का रत्न उपयुक्त नहीं होता तथा इसे धारण करने की स्थिति में अधिकतर यह कुंडली धारक का बहुत नुकसान कर देता है। इसलिए केवल इस धारणा के अनुसार उपयुक्त रत्न का निर्धारण उचित नहीं है।

ज्योतिषियों में प्रचलित एक और धारणा के अनुसार कुंडली धारक को उसकी कुंडली के अनुसार उसके वर्तमान समय में चल रही महादशा तथा अंतरदशा के स्वामी ग्रहों के रत्न धारण करने का परामर्श दिया जाता है। उदाहरण के लिए यदि किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली के अनुसार उसके वर्तमान समय में शनि ग्रह की महादशा तथा बुध ग्रह की अंतरदशा चल रही है तो ज्योतिषियों का यह वर्ग इस व्यक्ति को शनि तथा बुध ग्रह के रत्न धारण करने का परामर्श देगा जिससे इनकी धारणा के अनुसार उस व्यक्ति को ग्रहों की इन दशाओं से लाभ प्राप्त होंगे। यह मत लाभकारी होने के साथ-साथ अति विनाशकारी भी हो सकता है।

किसी भी शुभ या अशुभ फलदायी ग्रह का बल अपनी महादशा तथा अंतरदशा में बढ़ जाता है तथा किसी कुंडली विशेष में उस ग्रह द्वारा बनाए गए अच्छे या बुरे योग इस समय सबसे अधिक लाभ या हानि प्रदान करते हैं। अपनी दशाओं में चल रहे ग्रह अगर कुंडली धारक के लिए सकारात्मक हैं तो इनके रत्न धारण करने से इनके शुभ फलों में और वृद्दि हो जाती है, किन्तु यदि यह ग्रह कुंडली धारक के लिए नकारात्मक हैं तो इनके रत्न धारण करने से इनके अशुभ फलों में कई गुणा तक वृद्धि हो जाती है तथा ऐसी स्थिति में ये ग्रह कुंडली धारक को बहुत भारी तथा भयंकर नुकसान पहुंचा सकते हैं। मेरे पास अपनी कुंडली के विषय में परामर्श प्राप्त करने आए ऐसे ही एक व्यक्ति की उदाहरण मैं यहां पर दे रहा हूं।

यह सज्जन बहुत पीड़ित स्थिति में मेरे पास आए थे। इनकी कुंडली के अनुसार मंगल इनके लग्नेश थे तथा मेरे पास आने के समय इनकी कुंडली के अनुसार मंगल की महादशा चल रही थी। इन सज्जन ने अपने दायें हाथ की कनिष्का उंगली में लाल मूंगा धारण किया हुआ था। इनकी कुंडली का अध्ययन करने पर मैने देखा कि मंगल इनकी कुंडली में लग्नेश होने के बावजूद भी सबसे अधिक अशुभ फलदायी ग्रह थे तथा उपर से मगल की महादशा और इन सज्जन के हाथ में मंगल का रत्न, परिणाम तो भंयकर होने ही थे। इन सज्जन से पूछने पर इन्होने बताया कि जब से मंगल महाराज की महादशा इनकी कुंडली में शुरु हुई थी, इनके व्वयसाय में बहुत हानि हो रही थी तथा और भी कई तरह की परेशानियां आ रहीं थीं।

फिर इन सज्जन ने किसी ज्योतिषि के परामर्श पर इन मुसीबतों से राहत पाने के लिए मंगल ग्रह का रत्न लाल मूंगा धारण कर लिया। मैने इन सज्ज्न को यह बताया कि आपकी कुंडली के अनुसार मंगल ग्रह का यह रत्न आपके लिए बिल्कुल भी शुभ नहीं है तथा यह रत्न आपको इस चल रहे समय के अनुसार किसी भारी नुकसान या विपत्ति में डाल सकता है। मेरे यह कहने पर इन सज्जन ने बताया कि यह रत्न इन्होंने लगभग 3 मास पूर्व धारण किया था तथा इसे धारण करने के दो मास पश्चात ही धन प्राप्ति के उद्देश्य से किसी आपराधिक संस्था ने इनका अपहरण कर लिया था तथा कितने ही दिन उनकी प्रताड़ना सहन करने के बाद इनके परिवार वालों ने किसी सम्पत्ति को गिरवी रखकर उस संस्था द्वारा मांगी गई धन राशि चुका कर इन्हें रिहा करवाया था। अब यह सज्जन भारी कर्जे के नीचे दबे थे तथा कैद के दौरान मिली प्रताड़ना के कारण इनका मानसिक संतुलन भी कुछ हद तक बिगड़ गया था।

मुख्य विषय पर वापिस आते हुए, ज्योतिषियों का एक और वर्ग किसी व्यक्ति के लिए उपयुक्त रत्न निर्धारित करने के लिए उपर बताई गई सभी धारणाओं से कहीं अधिक विनाशकारी धारणा में विश्वास रखता है। ज्योतिषियों का यह वर्ग मानता है कि प्रत्येक व्यक्ति को उसकी कुंडली के अनुसार केवल अशुभ फल प्रदान करने वाले ग्रहों के रत्न ही धारण करने चाहिएं। ज्योतिषियों के इस वर्ग का मानना है कि नकारात्मक ग्रहों के रत्न धारण करने से ये ग्रह सकारात्मक हो जाते हैं तथा कुंडली धारक को शुभ फल प्रदान करना शुरू कर देते हैं। क्योंकि मैं रत्नों की कार्यप्रणाली से संबंधित तथ्यों पर अपने पिछ्ले लेखों में विस्तारपूर्वक प्रकाश डाल चुका हूं, इसलिए यहां पर मैं अपने पाठकों को यही परामर्श दूंगा कि यदि आप में से किसी भी पाठक का संयोग ऐसे किसी ज्योतिषि से हो जाए जो आपको यह परामर्श दे कि आप अपनी कुंडली में अशुभ फल प्रदान करने वाले ग्रहों के रत्न धारण करें तो शीघ्र से शीघ्र ऐसे ज्योतिषि महाराज के स्थान से चले जाएं तथा भविष्य में फिर कभी इनके पास रत्न धारण करने संबंधी परामर्श प्राप्त करने न जाएं।

चलिए अब अंत में इन सारी धारणाओं की चर्चा से निकलते सार को देखते हैं। रत्न केवल और केवल उसी ग्रह के लिए धारण करना चाहिए जो आपकी जन्म कुंडली में सकारात्मक अर्थात शुभ फलदायी हो जबकि उपर बताई गई कोई भी धारणा रत्न धारण करने के इस मूल सिद्धांत को ध्यान में नहीं रखती। इसलिए केवल उपर बताई गईं धारणाओं के अनुसार रत्न धारण नहीं करने चाहिएं तथा रत्न केवल ऐसे ज्योतिषि के परामर्श पर ही धारण करने चाहिएं जो आपकी कुंडली का सही अध्ययन करने के बाद यह निर्णय लेने में सक्षम हो कि आपकी कुंडली के अनुसार आपके लिए शुभ फल प्रदान करने वाले ग्रह कौन से हैं तथा उनमें से किस ग्रह का रत्न आपको धारण करना चाहिए।

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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