मिस्र के पिरामिड लाशों की कब्रगाह नहीं बल्कि वास्तु यंत्र है जरूर पढ़ें पूरा इतिहास ।

आज से 3000 वर्ष पूर्व समस्त प्रथ्वी पर एकमात्र सनातन धर्म ही था | गौतमबुद्ध के बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार के उपरांत बौद्ध धर्म से जब राजनीतिक सत्ताओं में हलचल हुई, बौद्ध धर्म की ओट में राजनीतिक लाभ, प्रतिष्ठा का लाभ और आर्थिक लाभ बौद्ध विहारों को प्राप्त होने लगा और उससे आर्थिक लाभ होता देखा तब पृथ्वी के अन्य अभावग्रस्त क्षेत्रों में लोगों ने बौद्ध धर्म के अनुरूप राजनीतिक सामाजिक और आर्थिक लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से अलग-अलग धर्म पद्धतियों का प्रचार-प्रसार प्रारंभ किया | उनमें से कुछ लोगों ने अपने धर्म का प्रचार प्रसार छल, बल, हिंसा, धूर्तता से भी किया और समस्त पृथ्वी पर अपने अधिकार को जमाने के उद्देश्य से इन नये धर्म वालों ने या तो समाज को गुमराह किया या पूरी पृथ्वी को हिंसक युद्ध में झौँक दिया |

हमारी सनातन पूजा पद्धति तीन तरह से समाज में प्रचारित थी मंत्र, तंत्र और यंत्र | भारत जैसे बौद्धिक संपन्न राष्ट्र मंत्र शक्ति का प्रयोग करते थे, यहां के ऋषि मुनि मंत्र शक्ति पर शोध करते थे और उन मंत्र शक्तियों से विभिन्न लौकिक और परालौकिक शक्तियों को प्राप्त करते थे और समाज को भी लाभांवित करवाते थे |

जो जगह कम विकसित बौद्धिक स्तर के लोग थे | जहां का खान-पान दूषित था | उन जगहों पर मंत्र शक्ति का उतना विकास नहीं हुआ परिणामत: मंत्र शक्ति के स्थान पर वे लोग तंत्र शक्ति पर शोध और प्रयोग करने लगे | उस समय के समाज में एक क्षेत्र ऐसा भी था, जहां पर व्यक्ति का बौद्धिक स्तर लगभग शून्य था | वहां पर उस समय के ऋषि मुनियों ने जब देखा कि यह न तो मंत्र साधनाओं के योग्य हैं और न ही तांत्रिक विधान करने के योग्य हैं तब उन्होंने नील नदी के तट पर उस क्षेत्र वास्तु यंत्रों की स्थापना की | वह क्षेत्र वर्तमान में मिस्र कहे जाने वाला क्षेत्र है |
ऋषि मुनियों ने इन वास्तु यंत्रों की उत्पत्ति वहां के लोगों को प्रकृति से लाभांवित करवाने के लिए इजाद की थी किंतु इन यंत्र शक्तियों को वास्तविक रूप देने के लिए अत्यधिक धन की आवश्यकता थी | जिसके लिए उस क्षेत्र के तत्कालीन राजाओं से ऋषि मुनियों ने आग्रह किया और उन राजाओं की मदद से विभिन्न तरह के बड़े-बड़े वास्तु यंत्रों का निर्माण करवाया | इन वास्तु यंत्रों के निर्माण के उपरांत इन यंत्रों के अंदर निवास करके जब उस समय के राजाओं और नागरिकों ने देखा वास्तव में यह अद्भुत वास्तु यंत्र व्यक्ति को लौकिक और परालौकिक शक्तियों से परिपूर्ण कर देते हैं | तब उन यंत्रों का प्रचार प्रसार पूरे विश्व में हुआ और लोग इस तरह के अद्भुत यंत्रों को देखने व उसका लाभ उठाने के लिए पूरी दुनिया से मिस्र की तरफ आने लगे और इन अद्भुत वास्तु यंत्रों की शक्तियों के चमत्कार को देख कर इन्हे ईश्वर से जोड़ दिया |

जिस तरह हम ताजमहल घूमने जाते हैं वहां से प्रतीकात्मक रुप से एक ताजमहल का मॉडल लेकर के अपने घर पर सजा देते हैं | उसी तरह जब पूरी दुनिया से लोग मिस्र के यंत्रों को देखने के लिए जाते थे, तो वहां पर से विभिन्न यंत्रों के मॉडल प्रतीक चिन्हों के रूप में लाकर अपनी पूजा स्थलों में स्थापित कर दिया करते थे | इसी तरह हमारे यहां यंत्रों की पूजा का विधान प्रारंभ हुआ |
आज भी यदि ध्यान से देखा जाए तो मिस्र के क्षेत्र में बने हुए वास्तु यंत्र जिन्हें लोग परमिट भी कहते हैं, उनकी बनावट हमारे पूजा स्थल पर उपस्थित यंत्रों के अनुरूप है | बाद में उन्हीं यंत्रों को प्रतीक मानकर भारतीय मंदिरों में भी मंदिरों की बनावट में भी उन्हीं यंत्रों के अनुसार बड़े प्रतीक मॉडल स्थापित किए जाने लगे तथा कुछ लोगों ने मंजिलों की वास्तु पूरी-पूरी ही वास्तु यंत्र मॉडल के अनुरूप में बनाने का प्रयास करने लगे | इस तरह मंदिरों का अलग वास्तु विकसित हुआ |

काल के प्रवाह में जब इन वास्तु यंत्रों का महत्व कम होने लगा तब वहां के तत्कालीन पथभ्रष्ट शासकों ने ऋषि मुनियों द्वारा स्थापित वास्तु यंत्रों पर कब्ज़ा करके उन्हें अपने शव को सुरक्षित रखने के लिए प्रयोग करने लगे और उन शवों के साथ अपने सम्मान और क्षमता के अनुसार मूल्यवान धन-संपत्ति आदि भी दफना कर सुरक्षित और संरक्षित करने लगे जैसे भारत के अंदर शिव मंदिर को ताजमहल का नाम देकर उसने बुरहन मध्य प्रदेश में दफनाई गई मुमताज के शव को सुरक्षित कर दिया गया है |

कालांतर में इतिहासकारों ने मिस्र के वास्तु यंत्रों को परामिड के निर्माण का नाम दिया और उसके अंदर रखी हुई शव और मूल्यवान धन संपत्ति को देखकर यह लिख दिया कि तत्कालीन राजाओं ने अपने शवों को दफनाने के लिए इस तरह के परमिट का निर्माण करवाया था जबकि सोचने वाली बात है कि एक परामिड के निर्माण में कई –कई वर्ष लगते थे तब तक मरे हुये व्यक्ति की लाश को लेकर क्या परामिड के निर्माण इंतजार किया जाता रहा होगा | वास्तविकता यह है कि सनातन पूजा पद्धति के मंत्र तंत्र और यंत्र में से यंत्र वास्तु सिद्धांतों के अनुरूप तत्कालीन ऋषि मुनियों ने वहां के प्रभावशाली राजाओं के सहयोग से समाज को लाभांवित करने के लिए इन वास्तु यंत्रों (परामिड) का निर्माण करवाया था न कि लाश दफ़न करने के लिये |

संसार के 7 आश्चर्यों में से एक मिस्र के पिरामिडों को भी माना जाता है |मिश्र में १३८ पिरामिड हैं | यह पिरामिड ४५० फुट तक ऊंचे है । ४३ सदियों तक यह विश्व की सबसे ऊंची संरचना थे । १९वीं सदी में ही इसकी ऊंचाई का कीर्तिमान टूटा । इसका आधार १३ एकड़ में फैला है जो करीब १६ फुटबॉल मैदानों जितना है। यह २५ लाख चूनापत्थरों के खंडों से निर्मित हैं | जिनमें से हर एक का वजन २ से ३० टनों के बीच है। ग्रेट पिरामिड को इतनी बारीकियों के साथ बनाया गया है उसे वर्तमान तकनीक भी शायद दोबारा नहीं बना सकती । कुछ साल पहले तक (लेसर किरणों से माप-जोख का उपकरण ईजाद होने तक) वैज्ञानिक इसकी सूक्ष्म सममिति (सिमट्रीज) का पता नहीं लगा पाये थे, प्रतिरूप बनाने की तो बात ही दूर है | इसका निर्माण करीब २५६० वर्ष ईसा पूर्व मिस्र के शासकों द्वार कराया गया था। इसे बनाने में करीब २३ साल लगे थे ।

विशेषज्ञों के अनुसार पिरामिड के पाषाण खंडों को इतनी कुशलता से तराशा और फिट किया गया है कि उनके जोड़ों में एक ब्लेड भी नहीं घुसायी जा सकती । मिस्र के पिरामिडों के निर्माण में कई खगोलीय आधार भी पाये गये हैं, जैसे कि तीनों पिरामिड आ॓रियन राशि के तीन तारों की सीध में हैं। वर्षों से वैज्ञानिक इन पिरामिडों का रहस्य जानने के प्रयत्नों में लगे हैं किंतु अभी तक कोई सफलता नहीं मिली है।

यही नहीं इन पर अंकित चिन्हों के द्वारा विभिन्न राशियों की संख्या व आकाशीय सौर केलेंडर का भी ज्ञान संभव है |यही निशान व चिन्हों विक्रमादित्य के समय में वराहमिहिर द्वारा निर्मित सौर विष्णु स्तंभ (कुतुब मीनार) पर भी अंकित है | सौर विष्णु स्तंभ यानी (कुतुब मीनार) का निर्माण सौरमंडल सम्बन्धी गणनाओं और पंचाग तैयार करने के लिए किया गया था. जंतर मंतर तो एक वेधशाला है ही इसके विभिन्न यंत्र विशेष कर सम्राट यंत्र आज भी उपयोगी है और आंकलन करने पर नक्षत्रों के विषय में जानकारी एक सही देते हैं रजा जयसिंह द्बारा जंतर मंतरजैसी ही कई अन्य वेधशालाओं का निर्माण कराया गया था जो अब नष्ट हो चुकी है |

पिरामिड बनाने की परम्परा सिर्फ मिस्त्र में नहीं थी इन्का में भी कुशल शिल्पकार द्वारा पिरामिड बनाये गये थे उनके बनाए पिरामिडों के खंडहरों में आज भी खगोलीय गणना देखी जा सकती है इसके अलावा पेरू में भी हुई खुदाई में परामिड जैसी सरंचना मिली है जिसकी सीढियों को गिन कर व शीर्ष स्थान की लम्बाई चौडाई जान कर प्रत्येक परामिड के निर्माण के वर्ष, दिनों, घंटों. मिनटों को सेकंड तक को गिना जा सकता है |

वर्तमान समय में फ्रांस, कनाडा और जापान के विशेषज्ञ तथा वैज्ञानिक एकसाथ नए सिरे से पिरामिडों के रहस्य को जानने की कोशिश कर रहे हैं |

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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